By पं. संजीव शर्मा
जानिए नक्षत्रों की उत्पत्ति, पौराणिक कथाएँ, नामकरण की प्रक्रिया और वैदिक ज्योतिष में इनका गहरा प्रभाव
नक्षत्रों की उत्पत्ति: वैदिक और वैज्ञानिक आधार
नक्षत्रों की अवधारणा भारतीय ज्योतिष और संस्कृति में अत्यंत प्राचीन है। वैदिक ग्रंथों-ऋग्वेद, अथर्ववेद, तैत्तिरीय संहिता, शतपथ ब्राह्मण-में नक्षत्रों का उल्लेख मिलता है। नक्षत्र शब्द का अर्थ है "जो न कभी क्षय हो" अर्थात् शाश्वत तारा समूह। नक्षत्रों का मूल उद्देश्य समय की गणना, जीवन के शुभ-अशुभ क्षणों का निर्धारण और ब्रह्मांड के रहस्यों को समझना था। वैदिक मान्यता के अनुसार, नक्षत्रों की रचना ब्रह्मा ने की थी। जब ब्रह्मा सृष्टि की रचना कर रहे थे, तब समय को मापने के लिए उन्होंने आकाश को 27 बराबर भागों में बांटा। प्रत्येक भाग को एक नक्षत्र कहा गया। चंद्रमा की गति के अनुसार, वह हर महीने पृथ्वी की परिक्रमा करते हुए इन 27 नक्षत्रों से गुजरता है। प्रत्येक नक्षत्र का विस्तार 13 डिग्री 20 मिनट का होता है और हर नक्षत्र का अपना अधिष्ठाता देवता और ग्रह स्वामी होता है।
नक्षत्रों की सबसे प्रसिद्ध पौराणिक कथा दक्ष प्रजापति, चंद्रमा और उनकी 27 पुत्रियों से जुड़ी है। कथा के अनुसार:
यही कारण है कि चंद्रमा हर महीने 27 नक्षत्रों में एक-एक दिन बिताता है और उसकी कलाएँ घटती-बढ़ती हैं। यह कथा नक्षत्रों और चंद्रमा के संबंध, चंद्रमा की कलाओं और समय-चक्र के गहरे प्रतीक को दर्शाती है।
प्रत्येक नक्षत्र का नाम उसके प्रमुख तारे, प्रतीक, या उससे जुड़ी पौराणिक कथा के आधार पर रखा गया है। उदाहरण के लिए:
नक्षत्रों की उत्पत्ति ब्रह्मा द्वारा ब्रह्मांड को समय और दिशा में विभाजित करने के लिए की गई थी। उनकी पौराणिक कथा दक्ष, चंद्रमा और 27 पुत्रियों के इर्द-गिर्द घूमती है, जो चंद्रमा की कलाओं, समय-चक्र और जीवन के उतार-चढ़ाव का गहरा प्रतीक है। वैदिक साहित्य में नक्षत्रों को न केवल खगोलीय, बल्कि आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और जीवन के हर क्षेत्र में महत्वपूर्ण माना गया है। नक्षत्रों की यह गाथा हमें सिखाती है कि ब्रह्मांड के हर तारे, हर क्षण और हर संबंध में एक गहरा अर्थ और ऊर्जा छुपी है, जो हमारे जीवन को दिशा और अर्थ देती है।
अनुभव: 15
इनसे पूछें: पारिवारिक मामले, आध्यात्मिकता और कर्म
इनके क्लाइंट: दि., उ.प्र., म.हा.
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