By अपर्णा पाटनी
धर्म, प्रेम और मुक्ति की अद्वितीय कथा जिसने भाई दूज जैसे त्योहार को जन्म दिया
वैदिक संस्कृति में यम और यमुना केवल भाई-बहन नहीं, बल्कि धर्म, न्याय और अमर प्रेम के प्रतीक हैं। यह कथा मानवीय रिश्तों की पवित्रता, नैतिक सीमाओं और आध्यात्मिक मुक्ति का सार संक्षेप है। ऋग्वेद (10.10) से लेकर विष्णु पुराण तक, इस कथा ने भारतीय सनातन परंपरा में यम द्वितीया जैसे त्योहारों को जन्म दिया, जो भाई-बहन के बंधन की अमरता का प्रतीक है।
तत्व | विवरण |
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माता-पिता | सूर्य देव (विवस्वान्) और संज्ञा (सरण्यू) |
जन्म | जुड़वाँ भाई-बहन |
स्थान | सूर्यलोक |
प्रमुख ग्रंथ | ऋग्वेद (10.10), विष्णु पुराण (3.2.4), मार्कण्डेय पुराण (74.4) |
यमुना का स्वरूप | नदी देवी (पृथ्वी पर प्रवाहित) |
यम-यमुना की कथा: भाई-बहन के प्रेम की अमर गाथा
बहुत समय पहले की बात है। सूर्य देव के घर दो जुड़वां संतानें जन्मीं-यम और यमुना। दोनों बचपन से ही एक-दूसरे के सबसे अच्छे मित्र थे। यमुना की हँसी में यम को जीवन की ताजगी मिलती थी और यम की गंभीरता में यमुना को सुरक्षा का एहसास। वे साथ खेलते, साथ खाते और हर त्योहार, हर सुबह एक-दूसरे के बिना अधूरी लगती थी। लेकिन समय के साथ दोनों का जीवन बदलने लगा।
यम को मृत्यु और धर्म का दायित्व मिला, तो यमुना पृथ्वी पर नदी बनकर बहने लगी। यमुना के मन में हमेशा अपने भाई के लिए स्नेह बना रहा। हर साल कार्तिक शुक्ल द्वितीया को वह भाई को अपने घर बुलाने का निमंत्रण भेजती, लेकिन यम अपने कर्मों में इतना व्यस्त रहता कि आ नहीं पाता। यमुना हर साल प्रतीक्षा करती-उसकी आँखों में भाई के स्वागत का सपना पलता रहता।
एक वर्ष, यम ने अपनी बहन के प्रेम और प्रतीक्षा को समझा। वह यमुना के घर पहुँचा। यमुना ने भाई के स्वागत में अपने आँगन को रंगोली से सजाया, तिलक किया, आरती उतारी और अपने हाथों से बना भोजन परोसा। यम ने पहली बार बहन के प्रेम की गहराई को महसूस किया। भोजन के बाद यम ने अपनी बहन से कहा, "यमुना, आज से जो भी भाई अपनी बहन के हाथों से तिलक और भोजन पाएगा, उसे मृत्यु का भय नहीं रहेगा। तुम्हारा प्रेम अमर है-यह वरदान हर युग में जीवित रहेगा।"
यम-यमुना का यह मिलन ही "यम द्वितीया" या "भाई दूज" का आधार बना। आज भी हर साल बहनें भाइयों को तिलक करती हैं, मिठाई खिलाती हैं और भाई बहन की रक्षा का वचन देता है। यह त्योहार केवल एक परंपरा नहीं, बल्कि उस अमर प्रेम की याद है, जिसमें धर्म, कर्तव्य और स्नेह का अद्भुत संगम है।
यम-यमुना की कहानी हमें सिखाती है कि जीवन में प्रेम और धर्म दोनों जरूरी हैं। भाई-बहन का रिश्ता केवल खून का नहीं, बल्कि आत्मा का बंधन है-जिसमें इंतजार, समर्पण और आशीर्वाद की मिठास घुली है। यमुना की प्रतीक्षा और यम का वरदान, दोनों मिलकर यह सिखाते हैं कि सच्चा प्रेम समय और मृत्यु से भी ऊपर होता है।
"प्रेम की प्रतीक्षा कभी व्यर्थ नहीं जाती-कभी न कभी, किसी न किसी रूप में, वह अमर वरदान बनकर लौटती है।"
इस कथा में सिर्फ रिश्तों की मिठास नहीं, बल्कि जीवन के हर मोड़ पर धर्म और प्रेम के संतुलन की शिक्षा भी छुपी है। यही वजह है कि यम-यमुना की कथा आज भी हर भाई-बहन के दिल में अमर है।
क्रिया | अर्थ |
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तिलक | बहन द्वारा भाई के माथे पर चंदन/केसर का टीका |
अर्घ्य | यमुना जल से भाई का स्वागत |
भोजन | हाथ से बना पकवान (खासतौर पर "फरा" या मीठा) खिलाना |
वरदान | भाई द्वारा बहन को सुख-समृद्धि का वचन |
"यम-यमुना की कथा मनुष्य को याद दिलाती है: प्रेम अमर है, किंतु धर्म उसकी सीमा निर्धारित करता है।"
इस कथा का संदेश सदियों से भारतीय संस्कृति में जीवित है - प्रेम नैतिकता के बिना अधूरा है और नैतिकता प्रेम के बिना निर्जीव।
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