By पं. संजीव शर्मा
रामायण, महाभारत और अदिति की संतानों की कथाएँ पुनर्वसु नक्षत्र में छिपे द्वैत और जुड़वाँ संतानों के संकेतों को उजागर करती हैं।
पुनर्वसु नक्षत्र (मिथुन 20°00' - कर्क 3°20') वैदिक ज्योतिष में "पुनः शुभ" या "प्रकाश की वापसी" का प्रतीक है। इसका स्वामी ग्रह बृहस्पति और अधिष्ठात्री देवी अदिति हैं। यह नक्षत्र जुड़वाँ संतानों, अनेक सन्ततियों और द्वैत के सिद्धांत से गहराई से जुड़ा है-जैसे प्रकाश-अंधकार, जन्म-मृत्यु, या भौतिक-आध्यात्मिक जगत का संतुलन।
अदिति को वेदों में "असीम" और "देवताओं की माता" कहा गया है। उनकी कोख से बारह आदित्य (सूर्य, इंद्र, विष्णु आदि) और अष्ट वसु (प्रकृति के आठ तत्वों के देवता) उत्पन्न हुए।
"अदिति का मातृत्व जीवन में बार-बार नवजन्म, नई संभावनाओं और अनेक रूपों में प्रकट होने का स्रोत है।"
श्रीराम का जन्म पुनर्वसु नक्षत्र में हुआ था। उनके जीवन में द्वैत और बहुलता के कई उदाहरण हैं:
"रामायण हमें सिखाती है कि पुनर्वसु जातकों के जीवन में जुड़वाँ संतानों की प्रबल संभावना होती है।"
माद्री ने पुनर्वसु नक्षत्र में अश्विनी कुमारों (दिव्य चिकित्सक जुड़वाँ) का आह्वान किया, जिनसे नकुल-सहदेव का जन्म हुआ:
कथा | जुड़वाँ पात्र | संबंध | विशेषता |
---|---|---|---|
रामायण | लव-कुश | श्रीराम-सीता के पुत्र | वीरता, गायन, अयोध्या के उत्तराधिकारी |
महाभारत | नकुल-सहदेव | पांडव | बहुमुखी प्रतिभा, युद्ध कौशल |
वैदिक | अश्विनी कुमार | दिव्य जुड़वाँ | चिकित्सा, पुनर्जीवन की शक्ति |
पुनर्वसु नक्षत्र का पहला तीन पाद मिथुन राशि में आता है, जो जुड़वाँ (Gemini) का प्रतीक है।
पुनर्वसु नक्षत्र हमें सिखाता है कि जीवन में विरोधी तत्व-जैसे राम-लक्ष्मण का प्रेम, लव-कुश का संघर्ष, या नकुल-सहदेव की पूरक प्रतिभाएँ-एक दूसरे को पूर्ण करते हैं। अदिति की अनेक संतानें, श्रीराम के जुड़वाँ पुत्र और मिथुन राशि का द्वैत सभी इस सत्य की ओर इंगित करते हैं:
"जीवन की समृद्धि द्वैत में छिपी है-प्रकाश और अंधकार, जन्म और मृत्यु, भौतिक और आध्यात्मिक। पुनर्वसु नक्षत्र इस द्वैत को साधकर हमें पूर्णता की ओर ले जाता है।"
पुनर्वसु: जहाँ हर जुड़वाँ जन्म, हर अनेकता और हर द्वंद्व जीवन को नया अर्थ देता है।
अनुभव: 15
इनसे पूछें: पारिवारिक मामले, आध्यात्मिकता और कर्म
इनके क्लाइंट: दि., उ.प्र., म.हा.
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