By पं. सुव्रत शर्मा
जानिए वामन पुराण में वर्णित विष्णु के केशों में आर्द्रा नक्षत्र के स्थान की कथा, उसका दार्शनिक और ज्योतिषीय संदेश।
वामन पुराण में आर्द्रा नक्षत्र का संबंध भगवान विष्णु के केशों से बताया गया है। यह कथा न केवल ज्योतिषीय बल्कि आध्यात्मिक दृष्टि से गहरा महत्व रखती है, जो जीवनदायिनी नमी, शीतलता और ब्रह्मांडीय संतुलन का प्रतीक है। आर्द्रा नक्षत्र (मिथुन 6°40' - 20°00') का स्वामी राहु है और अधिष्ठाता रुद्र (शिव) हैं।
वामन पुराण के अनुसार, जब भगवान विष्णु ने वामन अवतार लेकर बलि से तीन पग भूमि माँगी, तब उन्होंने विराट रूप धारण किया। इस विराट रूप में:
प्रतीक | दार्शनिक अर्थ |
---|---|
विष्णु के केश | ब्रह्मांडीय व्यवस्था और संतुलन |
आर्द्रा की नमी | जीवनदायिनी ऊर्जा, शुद्धि, पुनर्जनन |
हीरा का प्रकाश | मानवीय चेतना में दिव्य ज्ञान की चमक |
पहलू | विवरण |
---|---|
स्रोत ग्रंथ | वामन पुराण (अध्याय 50-52) |
नक्षत्र स्थान | विष्णु के मुकुट के समीप केशों में |
मुख्य प्रतीक | नमी, हीरा, शीतलता |
ज्योतिषीय योगदान | ब्रह्मांडीय ऊर्जा का संचार |
मानव जीवन संदेश | संतुलन, धैर्य और जीवनदायिनी शुद्धता |
वामन पुराण की यह कथा बताती है कि आर्द्रा नक्षत्र भगवान विष्णु के केशों में विराजमान है, जो ब्रह्मांड को नमी, शीतलता और संतुलन प्रदान करता है। यह नक्षत्र हमें सिखाता है कि जल ही जीवन है, शुद्धता ही दिव्यता है और संतुलन ही सृष्टि का आधार है।
"विष्णु के केशों में बसा आर्द्रा, ब्रह्मांड की धड़कन है-जो नमी देकर जीवन को, शीतलता देकर चेतना को और संतुलन देकर सृष्टि को बनाए रखती है।"
अनुभव: 27
इनसे पूछें: विवाह, करियर, संपत्ति
इनके क्लाइंट: छ.ग., म.प्र., दि., ओडि
इस लेख को परिवार और मित्रों के साथ साझा करें