By पं. अभिषेक शर्मा
विवाह में नाड़ी दोष के प्रभाव, ज्योतिषीय कारण और प्रमाणिक समाधान
हिंदू वैदिक परंपरा में विवाह सिर्फ सामाजिक अनुबंध नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक संस्कार माना गया है। इसीलिए विवाह से पहले वर-वधु की कुंडलियों का मिलान अनिवार्य माना गया है। वेदिक ज्योतिष में अष्टकूट मिलान के अंतर्गत कुल 8 प्रकार के गुणों का मिलान किया जाता है, जिनमें से नाड़ी कूट अंतिम और सबसे अधिक महत्व वाला (8 अंक) माना गया है। इसका मुख्य संबंध पति-पत्नी के बीच शारीरिक, मानसिक और प्रजनन संतुलन से होता है। यदि नाड़ी दोष बन रहा हो, तो यह जीवनसाथियों के स्वास्थ्य, संतान सुख और वैवाहिक स्थायित्व पर विपरीत प्रभाव डाल सकता है।
कुंडली मिलान में आठ अंग होते हैं: वर्ण, वश्य, तारा, योनि, ग्रह मैत्री, गण, भकूट और नाड़ी। इनमें नाड़ी को सबसे अधिक 8 अंक दिए जाते हैं।
नाड़ी तीन प्रकार की होती है:
जब वर और वधु की नाड़ी समान होती है-चाहे वह आदि, मध्या या अन्त्य में से कोई भी हो-तो उसे नाड़ी दोष कहा जाता है।
ज्योतिष शास्त्र और नारद पुराण के अनुसार, नाड़ी दोष के कारण निम्न समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं:
कुछ अपवाद भी हैं जहाँ समान नाड़ी के बावजूद दोष मान्य नहीं होता:
यदि सामाजिक, पारिवारिक या भावनात्मक कारणों से विवाह अपरिहार्य हो, तो कुछ वैदिक उपायों द्वारा नाड़ी दोष के प्रभाव को कम किया जा सकता है:
1. महामृत्युंजय जाप
2. दान और ब्राह्मण सेवा
3. संकल्पपूर्वक पूजा
नाड़ी दोष को केवल एक ज्योतिषीय तकनीकी दोष मानकर नजरअंदाज करना बुद्धिमानी नहीं है। यह दोष केवल भूतकाल या जन्म समय की यांत्रिकता नहीं, बल्कि शरीर, स्वास्थ्य और ऊर्जा संतुलन की गहराइयों से जुड़ा हुआ है। हालाँकि अपवाद और उपाय उपलब्ध हैं, फिर भी विवाह से पूर्व ज्योतिषी से विधिवत परामर्श अनिवार्य है।
अनुभव: 19
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