By पं. अभिषेक शर्मा
जानिये कैसे ग्रहों की मित्रता और शत्रुता आपके जीवन की दिशा और सफलताओं को प्रभावित करती है
ज्योतिष केवल ग्रहों की स्थिति नहीं, बल्कि उनके आपसी रिश्तों की बारीकियों से भी गहराई से काम करता है। जैसा मैंने वर्षों की ज्योतिष-शिक्षा और कुंडली विश्लेषण में सीखा, ग्रह कभी अकेले नहीं चलते-उनका हर प्रभाव आगे-पीछे बैठे ग्रहों के साथ रिश्तों की लय और टकराव से परखता है। आज जब भी किसी का प्रश्न होता है कि "मुझे क्यों लगता है कि मेरी मेहनत रंग नहीं ला रही?" या "ग्रहों का अच्छा योग होते हुए भी सुख क्यों नहीं मिल रहा?"-तो उत्तर अधिकांशतः ग्रह संबंधों में छिपा होता है।
किसी भी कुंडली का प्रभाव केवल एक ग्रह या भाव से नहीं, बल्कि कई ग्रहों के संयुक्त संबंधों से निर्धारित होता है। एक ही ग्रह किसी भाव में शुभ हो सकता है, लेकिन उसके साथ बैठे या दृष्टि डालने वाले ग्रहों की मैत्री या शत्रुता उस शुभता- अशुभता को बढ़ा या घटा सकती है। यही "ग्रह संबंध" का असली मर्म है।
ग्रह | मित्र ग्रह | सम ग्रह | शत्रु ग्रह |
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सूर्य | चंद्रमा, मंगल, बृहस्पति | बुध | शुक्र, शनि, राहु, केतु |
चंद्रमा | सूर्य, बुध | शनि, शुक्र, बृहस्पति, मंगल | राहु, केतु |
मंगल | सूर्य, चंद्रमा, बृहस्पति, केतु | शुक्र, शनि | बुध, राहु |
बुध | सूर्य, शुक्र | मंगल, बृहस्पति, शनि, राहु, केतु | चंद्रमा |
बृहस्पति | सूर्य, चंद्रमा, मंगल | शनि, राहु, केतु | बुध, शुक्र |
शुक्र | बुध, शनि, राहु, केतु | बृहस्पति, मंगल | सूर्य, चंद्रमा |
शनि | बुध, शुक्र, राहु | बृहस्पति | सूर्य, चंद्रमा, मंगल, केतु |
राहु | शुक्र, शनि | बृहस्पति, बुध | सूर्य, मंगल, चंद्रमा, केतु |
केतु | मंगल, शुक्र | बृहस्पति, बुध | शनि, राहु, सूर्य, चंद्रमा |
नैसर्गिक संबंध | तत्काल संबंध | पंचधा फल |
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मित्र | मित्र | परम मित्र |
मित्र | तटस्थ | मित्र |
मित्र | शत्रु | तटस्थ |
शत्रु | तटस्थ | शत्रु |
तटस्थ | शत्रु | शत्रु |
शत्रु | अति शत्रु | — |
इसे उदाहरण से समझें: अगर आपकी कुंडली में बुध और शुक्र एक ही भाव में बैठे हैं, तो
लेकिन यदि मंगल (Mangal) और शनि (Shani) दोनों पास-पास हों, और ग्रह संबंधों में नैसर्गिक तौर पर शत्रु तथा तत्काल भी शत्रु हों, तो पंचधा मैत्री 'अति शत्रु' हो जाती है-ऐसी स्थिति में उन भावों का फल काफी समस्यापरक या संघर्षपूर्ण देखने को मिलता है।
ग्रहों की मित्रता या शत्रुता जीवन के हर पहलू पर-धन, करियर, पारिवारिक सुख, वैवाहिक समरसता, स्वास्थ्य आदि-असर डालती है। कई बार एक महान योग होने के बावजूद जीवन में फल नहीं मिलता, क्योंकि आसपास के ग्रह शत्रु-दृष्टि से उस योग की शुभता को दबा देते हैं।
ऐसा अनुभव में बार-बार आता है-जो साधक इन संबंधों की गहराई समझ लेते हैं, वे ग्रहों की अनुकूलता के लिए छोटे-छोटे उपाय करके भी श्रेष्ठ फल पा लेते हैं।
संबंध का प्रकार | कैसे बनता है | क्या दर्शाता है |
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नैसर्गिक मैत्री | राशि स्वामित्व, तत्व, मूल त्रिकोण | जन्मजात मित्रता/शत्रुता |
तत्काल मैत्री | भाव-स्थिति (कुंडली में नजदीकी) | अस्थायी दोस्ती या शत्रुता |
पंचधा मैत्री | ऊपर दोनों का संयुक्त मूल्यांकन | कुंडली फलादेश का अंतिम मिश्रित प्रभाव |
अनुभव: 19
इनसे पूछें: विवाह, संबंध, करियर
इनके क्लाइंट: छ.ग., म.प्र., दि., ओडि, उ.प्र.
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