By पं. अभिषेक शर्मा
जन्मकुंडली के माध्यम से जीवन के रहस्यों और भविष्यवाणी की वैज्ञानिक व्याख्या
होरा शास्त्र वैदिक ज्योतिष की वह विशिष्ट शाखा है, जो किसी जातक की जन्मकुंडली के माध्यम से उसके जीवन की घटनाओं, प्रवृत्तियों और भविष्यवाणी को समझने का मार्ग प्रशस्त करती है। 'होरा' शब्द संस्कृत के 'अहोरात्र' (अह: दिन + रात्रि) से लिया गया है, जो जीवन के कालचक्र को दर्शाता है। यह शास्त्र विशेष रूप से जन्म समय के आधार पर ग्रहों की स्थिति, भावों (हाउस) और राशियों की व्याख्या करता है। होरा शास्त्र न केवल फलित ज्योतिष का आधार है, बल्कि विवाह, आयु, संतान, स्वास्थ्य, धन और कर्मफल जैसे जीवन के महत्वपूर्ण पक्षों की वैज्ञानिक दृष्टिकोण से विवेचना करता है। इसके सिद्धांत बृहद पाराशर होरा शास्त्र, जातक पारिजात, फलदीपिका, सरावली आदि ग्रंथों में विस्तृत रूप से वर्णित हैं। आज के युग में भी जब व्यक्ति अपनी जन्मकुंडली का गूढ़ रहस्य जानना चाहता है, तो होरा शास्त्र ही वह आधार है जो उसके जीवन के अनेक अनुत्तरित प्रश्नों का समाधान प्रस्तुत करता है।
परिचय होरा शास्त्र वैदिक ज्योतिष की वह शाखा है जो समय की गहराई में जाकर हमारे जीवन की दिशा और दशा को समझाने का कार्य करती है। 'होरा' शब्द 'अहोरात्र' (दिन और रात) से लिया गया है, जिसका अर्थ है 24 घंटे का एक चक्र। इन 24 घंटों को विभिन्न ग्रहों के प्रभाव में बांटा गया है जिन्हें 'होरा' कहा जाता है। हर होरा का प्रभाव हमारे कार्यों, निर्णयों और परिणामों पर पड़ता है। अतः किसी भी शुभ या महत्वपूर्ण कार्य को करने से पहले उपयुक्त होरा का चयन करना अत्यंत आवश्यक होता है।
एक दिन और रात मिलाकर 24 घंटे होते हैं, जिन्हें 24 होराओं में विभाजित किया जाता है। प्रत्येक होरा एक घंटे की होती है और इसकी गणना सूर्योदय से प्रारंभ होती है। सप्ताह के प्रत्येक दिन की पहली होरा उस दिन के स्वामी ग्रह की मानी जाती है:
जैसे मुहूर्त किसी कार्य विशेष के लिए उपयुक्त समय है, वैसे ही होरा कार्य की सूक्ष्मता को निर्धारित करता है। यदि कार्य का चयन शुभ मुहूर्त में किया गया है, किंतु होरा अशुभ है, तो परिणाम बाधित हो सकते हैं। इसीलिए वैदिक पंचांग में तिथि, वार, योग, करण, नक्षत्र के साथ होरा का भी विचार आवश्यक होता है।
ज्योतिषीय दृष्टिकोण से जब कोई व्यक्ति जन्म लेता है, उस समय की लग्न राशि और उसकी डिग्री के आधार पर यह तय किया जाता है कि वह सूर्य होरा में जन्मा है या चंद्र होरा में। सम राशि और विषम राशि के आधार पर यह वर्गीकरण किया जाता है।
इसका गहरा प्रभाव जातक के स्वभाव, स्वास्थ्य, धन और भाग्य पर पड़ता है।
होरा शास्त्र सिर्फ समय निर्धारण तक सीमित नहीं है। इसमें शामिल हैं:
जब जातक का सही जन्म समय ज्ञात न हो, तब भी होरा कुंडली द्वारा उसके प्रश्न या जीवन की स्थिति का विश्लेषण किया जा सकता है। इसके अलावा जन्म के समय की होरा को देखकर यह तय किया जा सकता है कि जातक पर दिन के ग्रहों (सूर्य, गुरु, शुक्र) या रात्रि के ग्रहों (चंद्र, मंगल, शनि) का प्रभाव अधिक रहेगा।
होरा शास्त्र एक अत्यंत उपयोगी और सूक्ष्म प्रणाली है जो वैदिक ज्योतिष को गहराई और व्यावहारिकता प्रदान करती है। यह केवल शास्त्रीय ज्ञान नहीं बल्कि जीवन की दैनिक गतिविधियों में मार्गदर्शन देने वाला साधन है। जो व्यक्ति होरा का ज्ञान रखता है, वह जीवन के हर मोड़ पर उचित समय और दिशा का चयन कर सफलता प्राप्त कर सकता है।
अनुभव: 19
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