By पं. अमिताभ शर्मा
जानें कैसे आषाढ़ विनायक चतुर्थी व्रत से संतान प्राप्ति, बाधा निवारण और आत्मिक कल्याण संभव है
आषाढ़ मास की विनायक चतुर्थी न केवल भगवान गणेश की उपासना का पर्व है, बल्कि यह जीवन में संतान सुख, बाधा निवारण और आध्यात्मिक कल्याण का भी अद्भुत अवसर है। इस दिन गणेश जी के “कृष्णपिङ्गल” स्वरूप की विशेष पूजा का विधान है। आइए विस्तार से जानते हैं इस पर्व से जुड़ी पौराणिक कथा, वैदिक महत्व, ज्योतिषीय संकेत और इसका गहरा भावनात्मक संदेश।
आषाढ़ विनायक चतुर्थी की कथा अत्यंत प्रेरणादायक, भावपूर्ण और जीवन के गूढ़ रहस्यों को उजागर करने वाली है। यह कथा केवल एक राजा और उसकी प्रजा की नहीं, बल्कि हर उस व्यक्ति की है, जो जीवन में किसी अभाव, बाधा या दुःख से जूझ रहा है और ईश्वर की शरण में समाधान खोजता है।
द्वापर युग में महिष्मति नामक समृद्ध नगरी थी, जहां महीजित नामक राजा राज्य करते थे। राजा महीजित धर्मपरायण, सत्यवादी, दयालु और प्रजा का पुत्रवत पालन करने वाले शासक थे। उन्होंने अपने जीवन में कभी अन्याय, छल, पाप या अत्याचार नहीं किया। उनकी प्रजा उन्हें पिता के समान मानती थी। किन्तु, राजा के जीवन में एक गहरा दुःख था-वे संतानहीन थे। राजमहल का वैभव, सत्ता, धन-संपत्ति, सब कुछ होते हुए भी उनके मन में एक खालीपन था। वेदों में कहा गया है कि संतान के बिना जीवन अधूरा है, और पितरों को भी संतान के जलदान से ही तृप्ति मिलती है। राजा महीजित इसी चिंता में दिन-रात व्याकुल रहते थे। उन्होंने अनेक यज्ञ, दान, तप, व्रत और अनुष्ठान किए, किंतु संतान की प्राप्ति न हुई। समय बीतता गया, जवानी ढल गई, बुढ़ापा आ गया, लेकिन संतान सुख नसीब न हुआ।
राजा महीजित ने एक दिन दरबार में ब्राह्मणों, मंत्रियों और प्रजाजनों को बुलाया और अपनी पीड़ा साझा की - "मैंने जीवन में कभी पाप नहीं किया, प्रजा का सदैव पुत्रवत पालन किया, धर्म का पालन किया, फिर भी मुझे संतान क्यों नहीं मिली? क्या मेरे पूर्व जन्म के पापों का फल है या कोई अन्य कारण?" राजा की वेदना सुनकर दरबार में मौन छा गया। प्रजा अपने राजा के प्रति गहरा प्रेम और सम्मान रखती थी। सबने मिलकर निश्चय किया कि वे इस समस्या का समाधान अवश्य खोजेंगे।
राजा, ब्राह्मणों और प्रजाजनों सहित, सभी लोग समाधान की खोज में वन की ओर चल पड़े। घने वन में, वर्षों से तपस्या में लीन एक तेजस्वी मुनि-महर्षि लोमश-का आश्रम था। लोमश ऋषि त्रिकालदर्शी, वेदों के ज्ञाता और अत्यंत तपस्वी थे। उनके शरीर के प्रत्येक रोम के गिरने पर एक कल्प बीत जाता था, इसीलिए उनका नाम लोमश पड़ा था।
सभी ने आदरपूर्वक मुनि को प्रणाम किया और अपनी समस्या बताई। महर्षि लोमश ने राजा और प्रजा की व्यथा को गंभीरता से सुना। उन्होंने कहा-
"हे राजन्! तुम्हारा जीवन धर्ममय है, तुम्हारे दुख का कारण कोई अदृश्य बाधा है। इसका समाधान है-आषाढ़ कृष्ण चतुर्थी के दिन गणेश जी के कृष्णपिङ्गल स्वरूप का व्रत और पूजन। यह व्रत संतानहीन को संतान, निर्धन को धन, और दुखी को सुख देता है।"
महर्षि लोमश ने विस्तार से व्रत की विधि बताई-
राजा महीजित ने महर्षि के निर्देशानुसार श्रद्धापूर्वक व्रत किया। रानी सुदक्षिणा ने भी व्रत का पालन किया। ब्राह्मणों को आदरपूर्वक भोजन कराया, वस्त्र दान किए और पूरे मन से गणेश जी की आराधना की।
कुछ समय बाद, गणेश जी की कृपा से रानी सुदक्षिणा ने एक सुंदर, तेजस्वी और गुणवान पुत्र को जन्म दिया। पूरे राज्य में हर्ष और उल्लास छा गया। राजा महीजित का जीवन पूर्ण हो गया, प्रजा भी प्रसन्न हुई। राजा ने अपने जीवन का शेष समय धर्म, दान और प्रजा-कल्याण में समर्पित कर दिया।
यह कथा केवल राजा महीजित की नहीं, हर उस व्यक्ति की है जो जीवन में किसी अभाव, बाधा, या दुःख से जूझ रहा है। यह हमें सिखाती है कि यदि जीवन में कठिनाई हो, तो धर्म, श्रद्धा और तप से, ईश्वर की शरण में जाकर, हर बाधा को पार किया जा सकता है। गणेश जी विघ्नहर्ता हैं-उनकी पूजा से न केवल सांसारिक सुख, बल्कि आत्मिक शांति, परिवार में प्रेम और जीवन में समृद्धि का मार्ग भी खुलता है। आषाढ़ विनायक चतुर्थी का व्रत हर साधक के लिए यह संदेश है कि सच्ची श्रद्धा और नियमपूर्वक पूजा से भगवान गणेश की कृपा अवश्य प्राप्त होती है।
वैदिक ज्योतिष में चतुर्थी तिथि चंद्रमा से जुड़ी है और गणेश जी को चंद्र दोष निवारक भी माना जाता है। आषाढ़ मास की चतुर्थी, जब विशिष्ट योग या शुभ ग्रह स्थिति हो, तो गणेश पूजन से शनि, राहु-केतु के दोष कम होते हैं, संतान सुख और मानसिक शांति मिलती है।
ग्रहों के शुभ संयोग में किया गया गणेश पूजन साधक के लिए जीवन में नई ऊर्जा, सकारात्मकता और भाग्यवृद्धि का कारण बनता है। यह व्रत विशेष रूप से उन जातकों के लिए लाभकारी है, जिनकी कुंडली में संतान बाधा, ग्रह दोष या पारिवारिक अशांति हो।
आषाढ़ विनायक चतुर्थी से जुड़ी यह कथा केवल एक ऐतिहासिक प्रसंग नहीं, बल्कि हर उस साधक के लिए मार्गदर्शक है, जो जीवन में संतान सुख, बाधा निवारण और समृद्धि चाहता है। वैदिक परंपरा, ज्योतिषीय संकेत और श्रद्धा से किया गया गणेश पूजन साधक के जीवन में सुख, शांति और सफलता का संचार करता है। श्रद्धा और नियमपूर्वक इस व्रत को करने से गणपति बप्पा की कृपा अवश्य प्राप्त होती है-और यही इस कथा का सबसे बड़ा संदेश है।
अनुभव: 32
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