By पं. सुव्रत शर्मा
भगवान शिव की स्तुति में रचित यह चालीसा न केवल भक्ति भाव जगाती है, बल्कि जीवन के संकटों को भी दूर करती है।
शिव चालीसा भगवान शिव की महिमा, शक्ति और करुणा का अद्भुत स्तुति ग्रंथ है। इसके 40 छंदों में शिव के विविध रूप, उनके चरित्र, भक्तों के प्रति उनकी कृपा और जीवन के हर संकट को दूर करने की उनकी क्षमता का सुंदर वर्णन मिलता है। शिव चालीसा का पाठ न केवल मानसिक शांति, आत्मबल और सकारात्मक ऊर्जा देता है, बल्कि शिव कृपा, पापों के नाश और मोक्ष का मार्ग भी प्रशस्त करता है। आइए, शिव चालीसा का संपूर्ण पाठ और प्रत्येक छंद का सरल अर्थ जानते हैं।
श्री गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान।
कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान॥
हे गणेश, गिरिजा के पुत्र, आप मंगल के मूल और बुद्धिमान हैं। अयोध्यादास (कवि) आपसे अभय और कल्याण का वरदान मांगते हैं।
जय गिरिजा पति दीन दयाला। सदा करत संतन प्रतिपाला॥
भाल चंद्रमा सोहत नीके। कानन कुण्डल नागफनी के॥
अंग गौर शिर गंग बहाए। मुण्डमाल तन छार लगाए॥
वस्त्र खाल बाघंबर सोहे। छवि को देख नाग मुनि मोहे॥
मैना मातु की ह्वै दुलारी। बाम अंग सोहत छवि न्यारी॥
कर त्रिशूल सोहत छवि भारी। करत सदा शत्रुन क्षयकारी॥
गणेश जी और माता पार्वती के पुत्र, मंगल के मूल, बुद्धिमान हैं। कवि अयोध्यादास उनसे अभय और कल्याण की प्रार्थना करते हैं। हे पार्वतीपति शिव, आप दीनों पर दया करने वाले हैं, भक्तों की रक्षा करते हैं। आपके मस्तक पर चंद्रमा, कानों में नागफनी के कुंडल, शरीर गौरवर्ण, सिर पर गंगा, गले में मुंडमाला, शरीर पर भस्म, बाघ की खाल पहनते हैं। आपकी छवि देखकर नाग और मुनि भी मोहित हो जाते हैं। पार्वती (मैना माता की दुलारी) आपके बाईं ओर शोभायमान हैं। आपके हाथ में त्रिशूल सदा शत्रुओं का नाश करता है।
नन्दि गणेश सोहै तहं कैसे। सागर मध्य कमल हैं जैसे॥
कार्तिक श्याम और गणराऊ। या छवि को कहि जात न काऊ॥
देवन जबहीं जाय पुकारा। तब ही दुख प्रभु आप निवारा॥
किया उपद्रव तारक भारी। देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी॥
तुरत षडानन आप पठायउ। लवनिमेष महं मारि गिरायउ॥
आप जलंधर असुर संहारा। सुयश तुम्हार विदित संसारा॥
त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई। सबहिं कृपा कर लीन बचाई॥
किया तपहिं भागीरथ भारी। पुरब प्रतिज्ञा तसु पुरारी॥
दानिन महं तुम सम कोउ नाहीं। सेवक स्तुति करत सदाहीं॥
वेद नाम महिमा तव गाई। अकथ अनादि भेद नहिं पाई॥
आपके समीप नंदी और गणेश ऐसे शोभायमान हैं जैसे सागर में कमल। कार्तिकेय, गण भी आपके पास हैं, आपकी छवि का वर्णन कोई नहीं कर सकता। जब भी देवता संकट में आपको पुकारते हैं, आप तुरंत उनका दुख दूर करते हैं। तारकासुर के उपद्रव से देवता परेशान हुए, आपने कार्तिकेय को भेजा, जिन्होंने तारकासुर का वध किया। जलंधर असुर का भी आपने संहार किया, आपकी कीर्ति संसार में प्रसिद्ध है। त्रिपुरासुर से युद्ध कर सबकी रक्षा की। भागीरथ के तप से गंगा को धरती पर लाने की प्रतिज्ञा पूरी की। दान देने वालों में आप सबसे श्रेष्ठ हैं, आपके सेवक सदा स्तुति करते हैं। वेदों ने आपकी महिमा का गान किया, परंतु आपकी वास्तविकता को कोई नहीं जान सका।
प्रगट उदधि मंथन में ज्वाला। जरे सुरासुर भये विहाला॥
कीन्ह दया तहँ करी सहाई। नीलकण्ठ तब नाम कहाई॥
पूजन रामचंद्र जब कीन्हा। जीत के लंक विभीषण दीन्हा॥
सहस कमल में हो रहे धारी। कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी॥
एक कमल प्रभु राखेउ जोई। कमल नयन पूजन चहं सोई॥
कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर। भये प्रसन्न दिए इच्छित वर॥
जय जय जय अनंत अविनाशी। करत कृपा सब के घटवासी॥
दुष्ट सकल नित मोहि सतावै। भ्रमत रहे मोहि चैन न आवै॥
त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो। यहि अवसर मोहि आन उबारो॥
लै त्रिशूल शत्रुन को मारो। संकट से मोहि आन उबारो॥
समुद्र मंथन में जब विष निकला, तो देवता और दानव संकट में पड़ गए। आपने दया कर विष पिया, जिससे आपका नाम नीलकंठ पड़ा। भगवान राम ने आपकी पूजा की, आपकी कृपा से उन्होंने लंका जीतकर विभीषण को दी। राम ने सहस्र कमल से आपकी पूजा की, जब एक कमल कम पड़ा तो उन्होंने अपनी आंख अर्पित की। उनकी कठिन भक्ति देखकर आप प्रसन्न हुए और उन्हें इच्छित वरदान दिया। हे अनंत, अविनाशी शिव! आप सबके हृदय में वास करते हैं और कृपा करते हैं। दुष्ट मुझे सदा सताते हैं, मैं भटकता रहता हूं, मुझे चैन नहीं मिलता। हे प्रभु! मैं आपकी शरण में हूं, कृपा कर मुझे संकट से उबारें। अपने त्रिशूल से शत्रुओं का नाश करें और मुझे संकट से बचाएं।
मातु पिता भ्राता सब कोई। संकट में पूछत नहिं कोई॥
स्वामी एक है आस तुम्हारी। आय हरहु अब संकट भारी॥
धन निर्धन को देत सदाहीं। जो कोई जांचे वो फल पाहीं॥
अस्तुति केहि विधि करौं तुम्हारी। क्षमहु नाथ अब चूक हमारी॥
शंकर हो संकट के नाशन। मंगल कारण विघ्न विनाशन॥
योगी यति मुनि ध्यान लगावैं। नारद शारद शीश नवावैं॥
नमो नमो जय नमो शिवाय। सुर ब्रह्मादिक पार न पाय॥
जो यह पाठ करे मन लाई। ता पार होत है शम्भु सहाई॥
ऋणिया जो कोई हो अधिकारी। पाठ करे सो पावन हारी॥
पुत्र हीन कर इच्छा कोई। निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई॥
संकट में कोई भी साथ नहीं देता, केवल आप ही मेरे आश्रय हैं। हे स्वामी! अब आप ही मेरी आशा हैं, कृपा कर मेरे संकट दूर करें। आप सदा धनवान और निर्धन, सभी को फल देते हैं। हे प्रभु! मैं आपकी स्तुति किस विधि से करूं, मेरी भूल क्षमा करें। हे शंकर! आप संकटों का नाश करने वाले, मंगल के कारण और विघ्न विनाशक हैं। योगी, यति, मुनि, नारद, सरस्वती सभी आपका ध्यान करते हैं और शीश नवाते हैं। हे शिव! आपको बार-बार नमस्कार है, देवता और ब्रह्मा भी आपकी महिमा नहीं जान सकते। जो भी श्रद्धा से इस चालीसा का पाठ करता है, उस पर शिवजी की कृपा होती है। जो ऋण में डूबा हो, वह इस चालीसा का पाठ करे तो उसे मुक्ति मिलती है। जो संतान की इच्छा रखता है, उसे शिव कृपा से संतान की प्राप्ति होती है।
पण्डित त्रयोदशी को लावे। ध्यान पूर्वक होम करावे॥
त्रयोदशी व्रत करे हमेशा। तन नहीं ताके रहे कलेशा॥
धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे। शंकर सम्मुख पाठ सुनावे॥
जन्म जन्म के पाप नसावे। अन्तवास शिवपुर में पावे॥
कहे अयोध्या आस तुम्हारी। जानि सकल दुःख हरहु हमारी॥
त्रयोदशी के दिन पंडित को बुलाकर ध्यानपूर्वक हवन कराएं। जो हमेशा त्रयोदशी का व्रत करता है, उसके शरीर में कभी कष्ट नहीं रहता। धूप, दीप, नैवेद्य अर्पित कर शिवजी के समक्ष चालीसा का पाठ करें। इस पाठ से जन्म-जन्म के पाप नष्ट होते हैं और अंत में शिवलोक की प्राप्ति होती है। कवि अयोध्या दास कहते हैं - हे प्रभु! आप मेरी आशा हैं, मेरे सारे दुख दूर करें।
नित्त नेम कर प्रातः ही, पाठ करौं चालीसा।
तुम मेरी मनोकामना, पूर्ण करो जगदीश॥
मगसर छठि हेमन्त ऋतु, संवत चौसठ जान।
अस्तुति चालीसा शिवहि, पूर्ण कीन कल्याण॥
जो प्रतिदिन नियमपूर्वक प्रातः काल शिव चालीसा का पाठ करता है, उसकी मनोकामना शिवजी अवश्य पूरी करते हैं। कवि ने अपनी कल्याण की कामना के साथ इस चालीसा की रचना की है।
शिव चालीसा का पाठ श्रद्धा, नियम और भक्ति से करने पर जीवन के सभी संकट, रोग, भय, शत्रु बाधाएं और मानसिक अशांति दूर होती है। यह न केवल धार्मिक लाभ, बल्कि आत्मिक शांति, सकारात्मक ऊर्जा और शिव कृपा का अद्भुत साधन है। हर सोमवार, प्रदोष व्रत या शिवरात्रि के दिन शिव चालीसा का पाठ अवश्य करें-आपके जीवन में भी शिव कृपा और सुख-शांति का संचार होगा।
अनुभव: 27
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