By पं. अमिताभ शर्मा
श्री गणेश की आरती का महत्व, अर्थ और पूजा की विधि – सुख, समृद्धि और कृपा पाने के लिए
गणेश जी को हिन्दू संस्कृति के अनुसार प्रथम पूज्य माना गया है और गणेश जी की आराधना से ही सारे मंगल कार्यों को प्रारम्भ किया जाता है।
वैदिक संस्कृति में गणेश जी प्रथम पूज्य हैं एवं उन्हें गणपति या विघ्नहर्ता कहा जाता है। वे भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र हैं और उनका सिर हाथी का है, जो ज्ञान, विवेक और बुद्धिमत्ता का प्रतीक है। गणेश जी सभी बाधाओं को दूर करते हैं और शुभ कार्यों की शुरुआत में उनकी पूजा अनिवार्य मानी जाती है। वे बुद्धि, ज्ञान, और समृद्धि के देवता हैं, और उनकी पूजा से घर में सुख-शांति आती है। गणेश उत्सव और गणेश चतुर्थी जैसे त्योहार विशेष रूप से उनकी महिमा का गुणगान करते हैं. धार्मिक अनुष्ठानों में गणेश जी का आशीर्वाद सफलता का प्रतीक है। गणेश जी की पूजा के बाद आरती करने से दाम्पत्य जीवन में सुख और सौभाग्य आता है। वहीं घर में समृद्धि भी बढ़ती है। सुबह और शाम दोनों समय गणेश जी की आरती करनी चाहिए।
जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा। माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥
अर्थ: गणेश जी की जय हो, माता पार्वती और पिता शिवजी की संतान की जय हो।
एक दंत दयावंत, चार भुजा धारी। माथे सिंदूर सोहे, मूसे की सवारी॥
अर्थ: एक दांत वाले, दयालु, चार भुजाओं वाले गणेश जी के माथे पर सिंदूर सुशोभित होता है और वे मूषक पर सवारी करते हैं।
जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा। माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥
पान चढ़े, फूल चढ़े, और चढ़े मेवा। लड्डुअन का भोग लगे, संत करें सेवा॥
अर्थ: गणेश जी को पान, फूल और मेवा चढ़ाए जाते हैं. लड्डुओं का भोग लगता है और संतजन उनकी सेवा करते हैं।
जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा। माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥
अंधन को आंख देत, कोढ़िन को काया। बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया॥
अर्थ: गणेश जी अंधों को दृष्टि प्रदान करते हैं, कोढ़ियों को स्वस्थ शरीर देते हैं, निःसंतान महिलाओं को संतान सुख देते हैं और निर्धनों को धन देते हैं।
जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा। माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥
'सूर' श्याम शरण आए, सफल कीजे सेवा। माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥
अर्थ: हम दिन-रात आपकी प्रार्थना करते हैं। कृपया हमें सफलता प्रदान करें। आप माता पार्वती से जन्मे हैं और भगवान शिव आपके पिता हैं।
जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा। माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥
दीनन की लाज रखो, शंभु सुतकारी। कामना को पूर्ण करो, जाऊं बलिहारी॥
अर्थ: हे शंभु के पुत्र, दीन-हीन की लाज रखो. हमारी सभी इच्छाएं पूर्ण करो, हम आपके बलिहारी जाते हैं।
जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा। माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥
आरती के समय कई लोग गलतियां कर देते हैं। गणेश जी की आरती में बत्तियों का प्रकार, उनकी संख्या, वाद्य यंत्र और आरती घूमाने की दिशा जैसी जरूरी बातों का ध्यान रखना चाहिए। आरती शुरू करने से पहले 3 बार शंख बजाएं। शंख बजाते समय मुंह उपर की तरफ रखें। शंख को धीमे स्वर में शुरू करते हुए धीरे-धीरे बढ़ाएं। आरती करते हुए ताली बजाएं। घंटी एक लय में बजाएं और आरती भी सूर और लय का ध्यान रखते हुए गाएं। इसके साथ ही झांझ, मझीरा, तबला, हारमोनियम आदी वाद्य यंत्र बजाएं। आरती गाते समय शुद्ध उच्चरण करें। आरती के लिए शुद्ध कपास यानी रूई से बनी घी की बत्ती होनी चाहिए। तेल की बत्ती का उपयोग करने से बचना चाहिए। कपूर आरती भी की जाती है। बत्तियाें की संख्या एक, पांच, नौ, ग्यारह या इक्कीस हो सकती है। आरती घड़ी के कांटो की दिशा में लयबद्ध तरीके से करनी चाहिए।
अनुभव: 32
इनसे पूछें: जीवन, करियर, स्वास्थ्य
इनके क्लाइंट: छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश
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