By पं. अमिताभ शर्मा
आत्मशुद्धि, पितृ तर्पण और शिव उपासना का दुर्लभ योग
सोमवती अमावस्या का दिन एक दुर्लभ और अत्यंत पावन अवसर होता है। यह दिन सिर्फ पितरों की शांति के लिए नहीं, बल्कि भगवान शिव की कृपा पाने का भी उत्तम अवसर है। कहते हैं कि जो व्यक्ति इस दिन श्रद्धा से पूजा करता है, उसके जीवन में सुख, समृद्धि और शांति बनी रहती है।
हर महीने अमावस्या आती है, लेकिन जब अमावस्या सोमवार के दिन आती है, तो उसे सोमवती अमावस्या कहा जाता है और यह योग साल में बेहद कम बार बनता है। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान, दान, पीपल पूजा और पितृ तर्पण विशेष फलदायी होते हैं। साथ ही भोलेनाथ की आराधना से जीवन की बाधाएं दूर होती हैं।
जय शिव ओंकारा ॐ जय शिव ओंकारा ।
ब्रह्मा विष्णु सदा शिव अर्द्धांगी धारा ॥ ॐ जय शिव…॥
एकानन चतुरानन पंचानन राजे ।
हंसानन गरुड़ासन वृषवाहन साजे ॥ ॐ जय शिव…॥
दो भुज चार चतुर्भुज दस भुज अति सोहे।
त्रिगुण रूपनिरखता त्रिभुवन जन मोहे ॥ ॐ जय शिव…॥
अक्षमाला बनमाला रुण्डमाला धारी ।
चंदन मृगमद सोहै भाले शशिधारी ॥ ॐ जय शिव…॥
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे ।
सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे ॥ ॐ जय शिव॥
कर के मध्य कमण्डलु चक्र त्रिशूल धर्ता ।
जगकर्ता जगभर्ता जगसंहारकर्ता ॥ ॐ जय शिव॥
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका ।
प्रणवाक्षर मध्ये ये तीनों एका ॥ ॐ जय शिव॥
काशी में विश्वनाथ विराजत नन्दी ब्रह्मचारी ।
नित उठि भोग लगावत महिमा अति भारी ॥ ॐ जय शिव॥
त्रिगुण शिवजी की आरती जो कोई नर गावे ।
कहत शिवानंद स्वामी मनवांछित फल पावे ॥ ॐ जय शिव॥
जय शिव ओंकारा हर ॐ शिव ओंकारा
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव अद्धांगी धारा॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥
अर्थ: यह आरती भगवान शिव के विविध रूपों, उनके दिव्य स्वरूप और त्रिगुण स्वरूप की महिमा का गुणगान करती है। इसमें कहा गया है कि शिवजी ओंकार स्वरूप हैं, जिनमें ब्रह्मा, विष्णु और महादेव तीनों शक्तियाँ समाहित हैं। वे कभी एक मुख, चार मुख और पाँच मुख वाले रूपों में प्रकट होते हैं और हंस, गरुड़ और नंदी जैसे वाहन धारण करते हैं। उनके विभिन्न रूप - दो भुजाओं से लेकर दस भुजाओं तक - अत्यंत आकर्षक हैं, जो तीनों लोकों के प्राणियों को मोहित करते हैं। वे रुण्डमाला (मुण्डमाला), अक्षमाला और बनमाला धारण करते हैं, माथे पर चंद्रमा और चंदन-सुगंध लगाए रहते हैं। उनके वस्त्र श्वेत, पीले और बाघम्बर जैसे होते हैं, और वे सनकादिक, गरुण और भूतगणों के संग रहते हैं। उनके हाथों में कमंडल, चक्र और त्रिशूल होते हैं, और वे जगत के रचयिता, पालक और संहारक हैं। ब्रह्मा, विष्णु और शिव - तीनों ही 'ॐ' (प्रणवाक्षर) में एकरूप होकर स्थित हैं। काशी के विश्वनाथ रूप में वे विराजते हैं और प्रतिदिन भक्तों के लिए भोग स्वीकार करते हैं। इस आरती के माध्यम से शिवानंद स्वामी कहते हैं कि जो भी श्रद्धा से यह आरती गाता है, उसे मनवांछित फल की प्राप्ति होती है और भगवान शिव की असीम कृपा मिलती है।
जय जय पितर जी महाराज,
मैं शरण पड़ा तुम्हारी,
शरण पड़ा हूं तुम्हारी देवा,
रख लेना लाज हमारी,
जय जय पितृ जी महाराज, मैं शरण पड़ा तुम्हारी।।
आप ही रक्षक आप ही दाता,
आप ही खेवनहारे,
मैं मूरख हूं कछु नहिं जानू,
आप ही हो रखवारे,
जय जय पितृ जी महाराज, मैं शरण पड़ा तुम्हारी।।
आप खड़े हैं हरदम हर घड़ी,
करने मेरी रखवारी,
हम सब जन हैं शरण आपकी,
है ये अरज गुजारी,
जय जय पितृ जी महाराज, मैं शरण पड़ा तुम्हारी।।
देश और परदेश सब जगह,
आप ही करो सहाई,
काम पड़े पर नाम आपके,
लगे बहुत सुखदाई,
जय जय पितृ जी महाराज, मैं शरण पड़ा तुम्हारी।।
भक्त सभी हैं शरण आपकी,
अपने सहित परिवार,
रक्षा करो आप ही सबकी,
रहूं मैं बारम्बार,
जय जय पितृ जी महाराज, मैं शरण पड़ा तुम्हारी।।
जय जय पितर जी महाराज,
मैं शरण पड़ा हू तुम्हारी,
शरण पड़ा हूं तुम्हारी देवा,
रखियो लाज हमारी,
जय जय पितृ जी महाराज, मैं शरण पड़ा तुम्हारी।।
यदि आप चाहते हैं कि पितृ प्रसन्न हों, पुराने पापों का प्रायश्चित हो और भगवान शिव की कृपा से जीवन में स्थायित्व और तरक्की आए, तो सोमवती अमावस्या पर यह पूजा जरूर करें। यह दिन आत्मा की शुद्धि, पितरों की शांति और ईश्वरीय कृपा पाने का सुनहरा अवसर है।
अनुभव: 32
इनसे पूछें: जीवन, करियर, स्वास्थ्य
इनके क्लाइंट: छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश
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