By पं. अभिषेक शर्मा
लक्षण, असर, शास्त्रीय समाधान, सामाजिक प्रभाव, ग्रह, FAQs

भारतीय संस्कृति और वैदिक ज्योतिष में पितृ दोष को जीवन के दुख, रुकावट और बारंबार संघर्ष का सार माना गया है। हर परिवार जिसकी जड़ें भारतीय परंपरा में हैं, वहां कभी न कभी पितृ दोष की चर्चा होती है-चाहे वह अशुभ मिथक हो या जीवन में लगातार आई बाधाओं का कारण। असल में, पितृ दोष की जड़ें केवल ज्योतिष में नहीं बल्कि पीढ़ियों के कर्म, आदर, श्राद्ध, तर्पण और पारिवारिक ऊर्जा में छुपी हैं। पितृ दोष तब बनता है जब हमारे पूर्वज किसी कारण से तृप्त नहीं होते, उनका श्राद्ध, तर्पण या सेवा नहीं हो पाता या उनकी आत्मा परिवार में आशीर्वाद देना बंद कर देती है। इस दशा में वह परिवार संघर्ष, दुःख, बीमारी, विवाह में देरी, संतान में बाधा, बार-बार धनहानी, मानसिक तनाव और परिवार में कलह का सामना कर सकता है।
| योग/स्थिति | मुख्य ग्रह | दोष कब बनेगा |
|---|---|---|
| पंचम/नवम में राहु | राहु, केतु | संतान, शिक्षा या कुल में बाधा |
| सूर्य राहु/केतु दोष | सूर्य, राहु, केतु | पितृपक्ष में कठिनाई, बार-बार बाधाएं |
| लग्न/अष्टम में शनि, चंद्र | शनि, चंद्र | मानसिक तनाव, विरासत विवाद |
| गुरु राहु/शनि अष्टम | गुरु, राहु, शनि | लंबी बीमारी, कोड से छुटकारा नहीं मिलेगा |
पितृ दोष के लक्षण बहुआयामी एवं गहरे होते हैं। कई बार तो लोग जीवनभर संघर्ष, विवाह में देरी, करियर में असफलता, संतान की परेशानी या विशेष बीमारी का कारण ही नहीं समझ पाते।
नीचे कुछ सामान्य और गहरे लक्षण दिए गए हैं:
| क्षेत्र | बार-बार दिखने वाले लक्षण |
|---|---|
| विवाह | देरी, टूटना, दाम्पत्य में क्लेश |
| संतान | गर्भपात, शिक्षा में रुकावट, मृत्यु, बीमारी |
| धन | घरेलू खर्च, कर्ज, विरासत, अचानक नुकसान |
| परिवार | लंबी बीमारी, कलह, अपमान, बुरी आदतें, अकस्मात विदाई |
| आत्मा/मन | डर, अविश्वास, पूर्वज/पारंपरिक कर्मों का अपराधबोध |
पितृ दोष केवल एक कारण से नहीं बनता। यह पीढ़ियों की ऊर्जा से उपजा सामूहिक परिणाम है।
प्रमुख प्रकार हैं:
कुंडली में यदि पंचम या नवम भाव में पाप ग्रह अशुभ हों, सूर्य-राहु, केतु-शनि, गुरु-राहु या गुरु-शनि का अष्टम में संयोग हो, तो विशेष पितृ दोष बनता है।
गोचर, दशा, चलित कुण्डली जैसे अन्य कारक भी प्रभावी हैं।
जैसे ही पितृदोष के ग्रह चलित दशा या गोचर में सक्रिय हो जाते हैं, व्यक्ति के जीवन में अचानक समस्याएं और काम में रुकावटें आने लगती हैं।
पूरा विश्लेषण, नक्षत्र, नवांश, सप्तमांश, दशांश-हर सिस्टम में करना जरूरी है।
अगर विधिवत उपाय, श्राद्ध, सेवा और परंपरा का पालन किया जाए, तो पितृ दोष का असर बेहद कम हो जाता है। यह केवल रुकावट नहीं बल्कि शिक्षा, सेवा, नए सिरे से परिवार का पुनर्निर्माण भी कर सकता है।
लगातार श्राद्ध, सेवा, दान, तर्पण से कई बार तीन, सात या चौदह पीढ़ियों तक प्रभाव रह सकता है, पर उपाय से शांत भी हो सकता है।
अगर उपाय, कर्म और सम्मान समय पर मिले तो असर धीमें हो जाते हैं। कई बार धार्मिकता, गुरु मार्गदर्शन काफी मदद करता है।
अधिकतर लक्षण, सफल उपाय और पूरा जातक/परिवार का विश्लेषण जरूरी होता है। चिह्नित ग्रह स्थिति के साथ, जीवन की घटनाएं भी देखने चाहिए।
पितृ अमावस्या, पितृपक्ष, पूर्वजों की पुण्यतिथि, अमावस्या/शनिवार - सबसे महत्वपूर्ण हैं।
दोनों जरूरी हैं। श्राद्ध, दान, सेवा, अध्ययन और सच्चा आचरण साथ में हों तो दोष धीमे-धीमे दूर होने लगता है।
पितृ दोष केवल दुःख नहीं बल्कि चेतावनी और जागरूकता का बोधक है। अपने रिश्तों, कर्तव्यों, दृष्टिकोण और परंपरा को मजबूती देना ही असली उपाय है। परिवार को जोड़े, गुरुजन का आदर करें, सेवा, श्राद्ध, दान और अतिथि-सत्कार अपनाएँ-यही असली राहत और समाधान है। यह दोष मिटाने का एकमात्र सच्चा तरीका है कि हम अपने पूर्वजों के ऋण को सच्ची श्रद्धा, कर्म और परिवार सेवा से चुकाएँ।

अनुभव: 19
इनसे पूछें: विवाह, संबंध, करियर
इनके क्लाइंट: छ.ग., म.प्र., दि., ओडि, उ.प्र.
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