By अपर्णा पाटनी
जानें मासिक शिवरात्रि की सही तिथि, पूजा विधि, मंत्र और सोम प्रदोष के दुर्लभ संयोग का लाभ
मासिक शिवरात्रि भगवान शिव की आराधना का वह विशेष पर्व है, जो हर माह कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है। मान्यता है कि मासिक शिवरात्रि का व्रत करने से महाशिवरात्रि के बराबर फल मिलता है। इस दिन शिवलिंग का अभिषेक, व्रत, जप और रात्रि जागरण करने से साधक के जीवन में सुख, शांति, रोग शमन, ग्रह दोष शांति और मनोकामना पूर्ति होती है। वैदिक ज्योतिष के अनुसार, यह तिथि शिव तत्व की ऊर्जा को जागृत करने के लिए अत्यंत शुभ मानी जाती है।
व्रत और संकल्प
चार प्रहरों की पूजा
मंत्र जाप
आरती और कथा
रात्रि जागरण और पारण
मासिक शिवरात्रि का व्रत चंद्रमा के विशेष योग में आता है, जिससे मन की शुद्धि, मानसिक शांति और ग्रह दोषों का शमन होता है। सोम प्रदोष के संयोग से चंद्र और शिव तत्व दोनों की ऊर्जा साधक को दोगुना लाभ देती है। यह व्रत विशेष रूप से उन लोगों के लिए शुभ है, जिनकी कुंडली में चंद्र, राहु-केतु या शनि का दोष हो।
जय शिव ओंकारा ॐ जय शिव ओंकारा।
ब्रह्मा विष्णु सदा शिव अर्द्धांगी धारा॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥
हे शिव! आप ओंकार स्वरूप हैं, आपको बार-बार प्रणाम है। आप ही ब्रह्मा, विष्णु और सदा शिव (महेश) के रूप में प्रकट होते हैं और आपकी अर्द्धांगिनी (माता पार्वती) सदा आपके साथ रहती हैं।
एकानन चतुरानन पंचानन राजे।
हंसानन गरुड़ासन वृषवाहन साजे॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥
आप एक मुख (शिव), चार मुख (ब्रह्मा) और पांच मुख (शिव के पंचमुख रूप) के रूप में राज करते हैं। आप हंस (ब्रह्मा का वाहन), गरुड़ (विष्णु का वाहन) और वृषभ (शिव का वाहन) पर विराजमान होते हैं।
दो भुज चार चतुर्भुज दस भुज अति सोहे।
त्रिगुण रूपनिरखता त्रिभुवन जन मोहे॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥
आपके दो, चार और दस भुजाओं वाले रूप अत्यंत सुंदर हैं। आप सत्व, रज और तम-तीनों गुणों के स्वरूप हैं, और तीनों लोकों के लोग आपके इन अद्भुत रूपों को देखकर मोहित हो जाते हैं।
अक्षमाला बनमाला रुण्डमाला धारी।
चंदन मृगमद सोहै भाले शशिधारी॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे।
सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥
आप गले में रुद्राक्ष, वनमाला और मुंडमाला धारण करते हैं। आपके मस्तक पर चंदन, कस्तूरी और चंद्रमा शोभायमान हैं। आप कभी सफेद, कभी पीले वस्त्र और कभी बाघ की खाल धारण करते हैं। आपके साथ सनकादिक ऋषि, गरुड़ और भूत-गण भी रहते हैं।
कर के मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूल धर्ता।
जगकर्ता जगभर्ता जगसंहारकर्ता॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका।
प्रणवाक्षर मध्ये ये तीनों एका॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥
काशी में विश्वनाथ विराजत नन्दी ब्रह्मचारी।
नित उठि भोग लगावत महिमा अति भारी॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥
त्रिगुण शिवजीकी आरती जो कोई नर गावे।
कहत शिवानन्द स्वामी मनवांछित फल पावे॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥
आप अपने हाथों में कमंडल, चक्र और त्रिशूल धारण करते हैं। आप ही सृष्टि के कर्ता, पालनकर्ता और संहारकर्ता हैं। ब्रह्मा, विष्णु और महेश (सदाशिव) तीनों में एकत्व है, वे सब आपके ही स्वरूप हैं। काशी में आप विश्वनाथ रूप में विराजमान हैं और नंदी आपकी सेवा में रहते हैं। जो भी श्रद्धा से आपकी आरती गाता है, उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
भगवान शिव की आरती उनके विविध स्वरूप, शक्ति, करुणा और भक्तों के प्रति उनकी कृपा का सुंदर चित्रण करती है। इसका भावार्थ समझकर आरती करने से शिव कृपा और आत्मिक शांति की अनुभूति होती है।
मासिक शिवरात्रि का व्रत केवल एक धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि भगवान शिव से आत्मिक जुड़ाव, संयम, साधना और भक्ति का पर्व है। यह व्रत जीवन के हर संकट, रोग, भय और ग्रह दोष को दूर कर साधक को शिव कृपा, मानसिक शांति और पारिवारिक सुख-समृद्धि का वरदान देता है।
जून 2025 की मासिक शिवरात्रि पर श्रद्धा और नियम से व्रत, जप और आराधना करें-आपके जीवन में भी शिव कृपा और दिव्यता का संचार होगा।
अनुभव: 15
इनसे पूछें: पारिवारिक मामले, मुहूर्त
इनके क्लाइंट: म.प्र., दि.
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