By पं. अमिताभ शर्मा
जानिए निर्जला एकादशी 2025 का महत्व, पूजन-विधि, मुहूर्त, कथा और इसके व्रत से प्राप्त होने वाले पुण्य लाभ

निर्जला एकादशी एक ऐसा व्रत है जिसे वर्ष की सभी एकादशियों का फल देने वाला माना गया है। यह व्रत आस्था, तप और त्याग के चरम स्वरूप के रूप में भक्तों के जीवन में शारीरिक संयम और आध्यात्मिक उत्थान दोनों का मार्ग खोलता है।
हिंदू धर्म में एकादशी व्रतों को अत्यंत पवित्र माना गया है, परंतु इनके बीच निर्जला एकादशी को सर्वोच्च स्थान प्राप्त है। इस दिन व्रती न केवल अन्न, फल या भोज्य पदार्थों का त्याग करता है, बल्कि जल तक ग्रहण नहीं करता, जिसके कारण इसकी कठिनाई और तप का स्तर अत्यधिक बढ़ जाता है।
यह व्रत विशेष रूप से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करने, मन, वचन और कर्म से किए गए पापों के शमन और मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करने के लिए किया जाता है। जिन भक्तों के लिए पूरे वर्ष सभी एकादशियों का व्रत रखना संभव नहीं होता, उन्हें यह निर्जला एकादशी समस्त एकादशियों का सामूहिक पुण्य प्रदान करने वाली मानी जाती है।
शास्त्रीय मान्यता के अनुसार, इस व्रत से दीर्घायु, सकारात्मक ऊर्जा, ग्रहदोषों के प्रभाव में कमी और जीवन में सुख तथा आध्यात्मिक उन्नति की संभावनाएँ बढ़ने लगती हैं।
वर्ष 2025 में निर्जला एकादशी दो प्रकार से मनाई जाएगी, एक स्मार्त परंपरा के अनुसार और दूसरी वैष्णव परंपरा के अनुसार।
दृक पंचांग के अनुसार:
उपवास की कुल अवधि लगभग 32 घंटे 21 मिनट मानी जाती है, जो एकादशी के सूर्योदय से द्वादशी के पारण तक निर्जल रहकर पूर्ण की जाती है।
निर्जला एकादशी केवल आस्था का नहीं, आत्मनियंत्रण का कठोर अभ्यास भी है। इस दिन व्रती को पूरे दिन जल सहित सम्पूर्ण आहार का त्याग करना आवश्यक माना गया है, केवल आचमन के लिए थोड़ी मात्रा में जल ग्रहण की अनुमति दी जाती है।
निर्जला एकादशी को भीमसेनी एकादशी या पांडव निर्जला एकादशी भी कहा जाता है। इस नाम के पीछे महाभारतकालीन एक प्रसिद्ध कथा जुड़ी है।
पांडवों में भीमसेन अत्यंत बलशाली होने के साथ-साथ बहुत भोजनप्रिय भी थे, इसलिए वे युधिष्ठिर, अर्जुन, नकुल और सहदेव की तरह प्रति मास दोनों एकादशी का व्रत नहीं रख पाते थे। जब वेदव्यास जी ने उन्हें अन्य भाइयों के समान एकादशी व्रत पालन की प्रेरणा दी, तो भीम ने स्पष्ट कहा कि वे दिनभर का उपवास सहन नहीं कर सकते, क्योंकि उनके भीतर “वृक अग्नि” नामक प्रचंड जठराग्नि सदा प्रज्वलित रहती है।
तब वेदव्यास जी ने समाधान के रूप में उन्हें वर्ष भर की सभी एकादशियों का सामूहिक फल देने वाली एकमात्र निर्जला एकादशी का व्रत सुझाया, जिसमें केवल एक दिन पूर्ण रूप से जल सहित उपवास रखना होता है। उन्होंने समझाया कि इस निर्जल व्रत का फल अन्य सभी 24 एकादशियों के संयुक्त फल के बराबर है। भीमसेन ने इस कठिन तपस्या को स्वीकार किया, जल और भोजन दोनों का त्याग कर यह व्रत किया और अंततः भगवान विष्णु की विशेष कृपा से वैकुंठ धाम की प्राप्ति की।
यह कथा सिखाती है कि धर्ममार्ग पर कितनी भी कठिनाई हो, दृढ़ इच्छाशक्ति और गुरु के मार्गदर्शन से मनुष्य मोक्ष के मार्ग पर अग्रसर हो सकता है।
जब एकादशी तिथि दो दिनों तक रहती है, तब स्मार्त और वैष्णव परंपरा में पालन की तिथि में थोड़ा अंतर हो सकता है।
गृहस्थ यदि वैष्णव परंपरा से जुड़े हों तो वे वैष्णव तिथि का अनुसरण कर सकते हैं, किन्तु फिर उन्हें उस संप्रदाय के नियमों, जैसे विशेष माला जप, मांस और मद्य का पूर्ण त्याग तथा विशिष्ट पूजा-विधि का पालन भी करना होता है।
निर्जला एकादशी केवल उपवास नहीं, बल्कि आत्मनियंत्रण, ईश्वरभक्ति और मोक्ष की तीव्र आकांक्षा का साक्षात रूप है। जो साधक इस एक व्रत को भी पूर्ण श्रद्धा, विधि और अनुशासन के साथ करता है, वह धर्ममार्ग पर दृढ़ता से अग्रसर होता है और भीतर एक नई आध्यात्मिक ऊर्जा तथा स्पष्टता को अनुभव करता है।
भीमसेन जैसे पराक्रमी योद्धा ने जब अपनी जठराग्नि पर विजय पाकर यह व्रत किया और दिव्य लोक को प्राप्त हुए, तो यह संदेश आज भी प्रासंगिक है कि आत्मविजय के बिना किसी भी बाह्य विजय का वास्तविक अर्थ अधूरा है। यदि भीम आध्यात्मिक अनुशासन को स्वीकार कर दिव्य तृप्ति तक पहुँच सकते हैं, तो प्रत्येक साधक के लिए भी यह पथ खुला है।
1.निर्जला एकादशी 2025 में ठीक किस दिन व्रत रखना चाहिए?
सामान्य रूप से स्मार्त परंपरा और अधिकांश पंचांगों के अनुसार व्रत 6 जून 2025, शुक्रवार को रखा जाएगा, जबकि वैष्णव परंपरा के कई मठों और मंदिरों में निर्जला एकादशी का व्रत 7 जून 2025, शनिवार को रखा जाएगा, अतः साधक अपने संप्रदाय और गुरु परंपरा के अनुसार तिथि चुनें।
2.निर्जला एकादशी पर क्या वास्तव में पूरे दिन जल भी नहीं पीना चाहिए?
निर्जला का अर्थ ही है जल का त्याग, इसलिए इस दिन सामान्य रूप से पानी नहीं पिया जाता, केवल आचमन के लिए थोड़ी मात्रा में जल ग्रहण करने की शास्त्रीय अनुमति दी जाती है, इसे शुद्ध निर्जल व्रत माना जाता है।
3.यदि स्वास्थ्य ठीक न हो या रोगी हो तो क्या निर्जला एकादशी रखी जा सकती है?
अत्यधिक कमजोरी, गंभीर रोग, वृद्धावस्था या गर्भावस्था जैसी स्थिति में चिकित्सकीय सलाह और गुरु मार्गदर्शन के बिना कठोर निर्जल व्रत नहीं रखना चाहिए, ऐसे में साधक फलाहार, केवल जल या सामान्य एकादशी व्रत के माध्यम से भावपूर्वक उपवास कर सकता है।
4.क्या एक ही निर्जला एकादशी से वास्तव में वर्ष भर की सभी एकादशियों का फल मिलता है?
पुराणों और परंपरा में यह स्पष्ट उल्लेख है कि शास्त्रीय विधि और श्रद्धा से किया गया निर्जला एकादशी व्रत सभी 24 एकादशियों के समतुल्य फल प्रदान करता है, विशेष रूप से उन लोगों के लिए जो वर्षभर नियमित व्रत रखने में सक्षम नहीं हैं।
5.इस दिन कौन से मंत्र या पाठ करना सबसे शुभ माना जाता है?
निर्जला एकादशी पर “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का जप, विष्णु सहस्रनाम पाठ, भगवद्गीता या विष्णु संबंधित स्तोत्र और नामस्मरण करना शुभ और फलदायक माना जाता है।
6.क्या केवल दिन में उपवास रखकर रात में जल या फल लिया जा सकता है?
शास्त्रीय निर्जला व्रत में दिन और रात दोनों समय जल सहित पूर्ण उपवास का उल्लेख है, परंतु यदि कोई साधक पूर्ण निर्जल व्रत में असमर्थ हो, तो वह संकल्पानुसार आंशिक व्रत कर सकता है, हालांकि उसका फल कठोर निर्जला व्रत के समान नहीं माना जाएगा।
7.दान और सेवा का इस व्रत में क्या विशेष महत्व है?
निर्जला एकादशी पर प्यासों को जल पिलाना, अन्नदान, वस्त्रदान और गौसेवा जैसे कार्यों को अन्य दिनों की अपेक्षा कई गुना फलदायी बताया गया है, क्योंकि यह दिन भगवान विष्णु की करुणा और दयाभाव को विशेष रूप से जगाने वाला माना जाता है।
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