By पं. अमिताभ शर्मा
भोजन, श्राद्ध, पितृ पूजन और स्वास्थ्य: पवित्रता और आहार विज्ञान का समन्वय
पितृ पक्ष, जिसे श्राद्ध का पखवाड़ा भी कहते हैं, भारतीय संस्कृति में पितरों को श्रद्धा, सम्मान और स्मरण देने का सबसे प्रमुख कालखंड है। 2025 में पितृ पक्ष 7 सितंबर से 21 सितंबर तक मनाया जाएगा। इस सोलह दिवसीय अवधि में माना जाता है कि पितृ पृथ्वी पर अपने वंशजों के घर आते हैं। परिवार विशेष रूप से श्राद्ध, तर्पण, पिंडदान और भक्ति के बहुसंख्य क्रियाकलापों द्वारा उन्हें संतुष्ट करते हैं। परंपराओं और शास्त्रों की गहराई में भोजन का स्थान तन-मन की शुद्धि और माहौल की सकारात्मकता बनाने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
शास्त्रीय मान्यता अनुसार, पितृ पक्ष में जो भी साधन और आहार चुना जाता है, उसका सीधा असर न केवल स्वयं व्रती/परिवार पर बल्कि पितरों के आध्यात्मिक कल्याण पर भी होता है। यही कारण है कि इस अवधि में केवल सात्विक एवं पवित्र भोजन बनाने, खाने और दान करने की परंपरा है। सात्विक भोजन न केवल पाचन और ऊर्जा के लिए श्रेष्ठ है बल्कि यह ध्यान, तर्पण, स्मरण व संतोष का आधार भी बनाता है।
तिथि | महत्व | धार्मिक कार्य |
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7 सितंबर | पितृ पक्ष आरंभ | पहला श्राद्ध, तर्पण |
21 सितंबर | पितृ पक्ष समापन, अमावस्या | सर्वपितृ श्राद्ध, विशेष अनुष्ठान |
सात्विक भोजन ऊर्जा, पाचन, मानसिक स्थिरता और अनुशासन देता है। विज्ञान भी मानता है कि ज्यादा मसालेदार, बासी, तैलीय, या मांसाहारी भोजन से मन की चंचलता और शरीर में सुस्ती आती है। शास्त्र भी कहता है कि “जैसा अन्न, वैसा मन।”
सात्विक आहार के तत्व | पोषण व प्रभाव |
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ताजे फल | विटामिन, खनिज, जल, ऊर्जा |
दही, दूध, घी | कैल्शियम, प्रोटीन, मानसिक संतुलन |
साबुत अनाज | फाइबर, स्थायित्व, बल |
तिल, गुड़ | पाचन, पवित्रता, प्रेरणा |
हल्की हरी सब्ज़ियाँ | शीतलता, सुपाच्य, प्राकृतिक गुण |
पितृ पक्ष के दौरान कुछ खाद्य पदार्थों को विशिष्ट रूप से वर्जित किया गया है, ताकि साधना और संस्कारित माहौल बना रहे।
वर्जित खाद्य पदार्थ | धार्मिक कारण | स्वास्थ्य का दृष्टिकोण |
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मांस, मछली, अंडा | तमसिक, पितरों के प्रति अनादर | पाचन में भारीपन, अशुद्धि |
शराब, तंबाकू, ड्रग्स | मानसिक एकाग्रता भंग | स्वास्थ्य पर गहरा दुष्प्रभाव |
प्याज-लहसुन | रजसिक, बेचैनी, नियंत्रित ध्यान | गैस, अपाच, बेचैनी |
बासी/रात का खाना | नकारात्मक ऊर्जा, पितृ अनादर | बैक्टीरिया, रोग का खतरा |
अत्यधिक मसाले, तली चीजें | साधना में विघ्न, आलस्य | मोटापा, अपच, आलस्य |
यही प्रतिबंध साधने के न केवल धार्मिक बल्कि आधुनिक जीवनशैली के लिये भी उपयुक्त हैं।
सात्विक, ताजा और सुपाच्य भोजन इस पक्ष में सबसे श्रेष्ठ है। जो भी पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश के गुणों को समाहित करें, वही भोजन सबसे अधिक पोषक और पवित्र होता है।
खाद्य | आहार में क्यों आवश्यक है | शास्त्रीय प्रयोग |
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चावल, गेहूं, जौ, मोटा अनाज | ऊर्जा, शांत मन, तृप्ति | पिंडदान में अनिवार्य |
दूध, दही, घी | शुद्धता, सात्विकता | तर्पण, प्रसाद, अर्पण |
चयनित फल और फूल | ताजगी, विटामिन, प्रसाद | फलाहार, दान |
तिल, गुड़, मूंग | पवित्रता, पौष्टिकता, स्निग्धता | पिंड, तर्पण, हवन |
लौकी, तुरई, कद्दू, पालक | सुपाच्य, आंतरिक शीतलता | सब्ज़ी, प्रसाद |
इस पूरे कालक्रम में संयम, स्मरण, सेवा, अनुशासन और नम्रता का व्यवहार परिवार में एकजुटता व संतुलन लाता है। सात्विक भोजन का अभ्यास तनाव, अशांति, असंतुलन और भावनात्मक विषाद को भी कम करता है।
1. क्या पितृपक्ष में उपवास किया जा सकता है? कौन सा व्रत उपयुक्त है?
बहुत लोग इस दौरान निर्जल या फलाहार व्रत रखते हैं। फल, दूध, दही, जौ का सत्तू और मुख्य रूप से सात्विक भोजन सेवन उपयुक्त है।
2. क्या बच्चों और बुजुर्गों के लिए भी यही नियम लागू हैं?
जी हां, सात्विक, सुपाच्य भोजन सभी के लिये सर्वोत्तम है। रोगी और गर्भवती महिलाओं हेतु फल, दूध, दाल आदि कम मसालेदार चीजें उचित हैं।
3. क्या श्राद्ध का प्रसाद परिवार के सदस्यों में बाँटना चाहिए?
बिल्कुल, पर पहले पितरों, पशु-पक्षी आदि को दिया जाए, फिर खुद ग्रहण करें।
4. क्या तांबे, मिट्टी के बर्तन से खाना अधिक पुण्यदायक है?
हां, पुराणों में तांबे, कांसे व मिट्टी के पात्र से सेवन को सबसे शुद्ध माना गया है।
5. पितृपक्ष के लिए कौन-सा सबसे पवित्र भोज्य है?
चावल, दूध, तिल, घी, गुड़ और फल हर श्राद्धकार्य और पितृ पूजन के लिए सर्वोत्तम हैं।
आधुनिक विज्ञान, मनोविज्ञान और धर्म एक स्वर से स्वीकार करते हैं कि सात्विक, स्वच्छ और अनुशासित आहार, किसी भी पवित्र परंपरा में, न केवल स्वास्थ्य बल्कि मनस्थिति और समाज के लिए भी कल्याणप्रद है। पितृपक्ष की परंपरा भारतीय घर-परिवार को स्वास्थ्य, शांति, संयम और सद्गुण की गहराई तक जोड़ती है।
अनुभव: 32
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