By पं. नीलेश शर्मा
मां दुर्गा की कृपा, ऋषियों की साधना और महाविद्याओं की शक्ति से जुड़ी यह कथा तंत्र और भक्ति का अद्भुत समागम है।
गुप्त नवरात्रि की कथा केवल एक धार्मिक आख्यान नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति की गहराई, तंत्र की शक्ति और मां दुर्गा की कृपा का जीवंत प्रमाण है। यह पर्व साधना, तप, आस्था और जीवन के चमत्कारिक परिवर्तन की वह यात्रा है, जिसमें असंभव भी संभव हो जाता है। आइए, इस कथा को विस्तार से, भावनात्मक और वैदिक दृष्टि से जानते हैं।
सतयुग के आरंभिक काल में पृथ्वी पर धर्म, सत्य और सदाचार का साम्राज्य था। ऋषि-मुनि, देवता और मानव सभी मिलकर यज्ञ, तप और वेदों के अध्ययन में लीन रहते थे। इसी समय, एक शक्तिशाली दैत्य दुर्ग ने घोर तपस्या कर ब्रह्मा जी को प्रसन्न किया और उनसे चारों वेदों को प्राप्त कर लिया। वेदों की शक्ति से वह इतना बलशाली हो गया कि देवताओं और ब्राह्मणों के लिए संकट का कारण बन गया। उसने वेदों को छिपा दिया, जिससे धर्म का मार्ग बाधित हो गया, यज्ञ-हवन बंद हो गए और पृथ्वी पर भीषण अकाल, अराजकता और अंधकार छा गया।
देवता, ऋषि और मानव सभी अत्यंत चिंतित हो उठे। धर्म का पतन देखकर सभी देवता मां पराम्बा (आदिशक्ति) की शरण में पहुंचे और उनसे प्रार्थना की, "मां, कृपा कर हमें इस संकट से उबारें।"
मां पराम्बा ने देवताओं की पुकार सुनकर अपने तेज से दस दिव्य शक्तियों को प्रकट किया। उनके शरीर से काली, तारा, त्रिपुरसुंदरी, भुवनेश्वरी, छिन्नमस्ता, त्रिपुर भैरवी, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी और कमला नामक दस महाविद्याओं का जन्म हुआ। ये सभी देवीय शक्तियां अद्वितीय तेज, रहस्य और तंत्र की अधिष्ठात्री थीं।
दस महाविद्याओं ने मिलकर दैत्य दुर्ग का संहार किया और वेदों को पुनः स्थापित किया। तभी से, गुप्त नवरात्रि में दस महाविद्याओं की गुप्त साधना का विधान प्रारंभ हुआ। यह साधना तंत्र, मंत्र, योग और तप का अद्भुत संगम है, जो साधक को अलौकिक शक्तियों, सिद्धियों और मां की विशेष कृपा का अधिकारी बनाती है।
गुप्त नवरात्रि की महिमा को और गहराई से समझने के लिए एक और कथा उल्लेखनीय है। एक समय की बात है, एक गांव में एक स्त्री रहती थी, जिसका पति व्यसनों में डूबा था-मांसाहार, जुआ, क्रोध और अधार्मिकता उसकी दिनचर्या थी। स्त्री अत्यंत धर्मपरायण थी, परंतु पति के कारण वह न तो पूजा कर पाती थी, न ही घर में सुख-शांति थी।
एक दिन वह स्त्री अपने दुखों से व्याकुल होकर ऋषि श्रृंगी के आश्रम पहुंची। उसने करुण स्वर में कहा, "महाराज, मैं मां दुर्गा की सेवा करना चाहती हूं, परंतु मेरे पति के कारण मेरा जीवन दुखमय है। कृपा कर कोई उपाय बताइए जिससे मेरे जीवन में सुख-शांति लौट आए।"
ऋषि श्रृंगी ने उसकी भक्ति और श्रद्धा देखकर कहा, "गुप्त नवरात्रि में दस महाविद्याओं की साधना करो। यह साधना गोपनीय, संयमित और नियमबद्ध होती है। मां की कृपा से तुम्हारे जीवन में सुख-शांति और समृद्धि अवश्य आएगी।"
स्त्री ने ऋषि के निर्देशानुसार गुप्त नवरात्रि की साधना आरंभ की। उसने नौ दिनों तक मां दुर्गा और दस महाविद्याओं की पूजा, मंत्र जाप, व्रत और संयम का पालन किया। आश्चर्यजनक रूप से उसके घर का वातावरण बदलने लगा। पति के व्यवहार में परिवर्तन आया, घर में सुख-शांति और समृद्धि लौट आई। यह कथा दर्शाती है कि गुप्त नवरात्रि की साधना से असंभव भी संभव हो जाता है, और मां दुर्गा की कृपा से जीवन में चमत्कारिक परिवर्तन आ सकता है।
गुप्त नवरात्रि के दौरान साधक विशेष रूप से तंत्र साधना, मंत्र जाप और शक्ति उपासना के लिए भारत के चार प्रमुख श्मशान-तारापीठ, कामाख्या, त्र्यंबकेश्वर और उज्जैन-का रुख करते हैं। इन स्थानों पर साधक एकांत में, कड़ी साधना, उपवास और मंत्र जाप करते हैं। मान्यता है कि इन श्मशानों में की गई साधना शीघ्र सिद्ध होती है और साधक को गुप्त सिद्धियां, तांत्रिक शक्तियां और मां की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
गुप्त नवरात्रि में साधना का आरंभ प्रातः स्नान, शुद्ध वस्त्र धारण और पूजा स्थल की शुद्धि से होता है। शुभ मुहूर्त में घट स्थापना की जाती है, जिसमें गंगाजल, सुपारी, सिक्का, आम के पत्ते और नारियल रखा जाता है। मां दुर्गा और दस महाविद्याओं की प्रतिमा या चित्र स्थापित कर, लाल फूल, कुमकुम, हल्दी, चंदन, मिठाई, फल, दीपक और धूप अर्पित किए जाते हैं। दस महाविद्याओं के मंत्रों का जाप, दुर्गा सप्तशती का पाठ, कन्या पूजन, दान और व्रत का पालन किया जाता है। साधक को नौ दिनों तक सात्विक आहार लेना चाहिए, मांसाहार, मदिरा, प्याज, लहसुन, झूठ, क्रोध, विवाद और तामसिक भोजन से बचना चाहिए।
गुप्त नवरात्रि के दौरान ग्रहों की स्थिति-विशेषकर चंद्रमा, मंगल, राहु और केतु-साधना के लिए अत्यंत शुभ मानी जाती है। इस काल में सर्वार्थ सिद्धि योग, अभिजीत मुहूर्त और अमृत काल जैसे शुभ संयोग बनते हैं, जो साधना की सिद्धि को कई गुना बढ़ा देते हैं। गुप्त नवरात्रि में की गई साधना ग्रह दोषों को शांत करती है, मानसिक शांति, स्वास्थ्य और समृद्धि लाती है। राशि अनुसार विशेष उपाय भी किए जाते हैं, जो साधक के लिए लाभकारी होते हैं।
गुप्त नवरात्रि की प्राचीन कथा और साधना का रहस्य यह सिखाता है कि जब जीवन में असंभव सा संकट हो, तब मां दुर्गा की गुप्त साधना से हर बाधा दूर हो सकती है। यह पर्व आत्मा की शुद्धि, मन की शक्ति और भीतर छुपी दिव्यता के जागरण का अवसर है। मां दुर्गा की दस महाविद्याओं की उपासना से साधक को विजय, सुरक्षा, सुख, समृद्धि और मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह पर्व हमें संयम, श्रद्धा, अनुशासन और गुप्त साधना का महत्व सिखाता है।
गुप्त नवरात्रि केवल तंत्र या मंत्र की साधना का पर्व नहीं, बल्कि यह आत्मिक जागरण, शक्ति और करुणा का उत्सव है। यह नौ दिन साधक को आत्मनिरीक्षण, संयम और साधना का अमूल्य अवसर देते हैं। मां दुर्गा की कृपा से हर साधक के जीवन में सुख, शांति और समृद्धि का संचार हो-यही गुप्त नवरात्रि का सच्चा संदेश है। गुप्त नवरात्रि की कथा हमें विश्वास, श्रद्धा और साधना के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती है, जिससे जीवन में हर असंभव भी संभव हो सके।
अनुभव: 25
इनसे पूछें: करियर, पारिवारिक मामले, विवाह
इनके क्लाइंट: छ.ग., म.प्र., दि.
इस लेख को परिवार और मित्रों के साथ साझा करें