By अपर्णा पाटनी
जानिए देवशयनी एकादशी 2025 की तिथि, पूजा विधि, धार्मिक महत्व, व्रत कथा और चातुर्मास के नियम
देवशयनी एकादशी सनातन संस्कृति का एक अत्यंत पावन पर्व है, जो न केवल भगवान विष्णु की योगनिद्रा की शुरुआत का प्रतीक है, बल्कि चातुर्मास के चार महीनों के साधना काल का भी आरंभ करता है। यह दिन आध्यात्मिक जागरण, आत्मसंयम और जीवन में संतुलन का संदेश देता है। आइए, इस पर्व के हर पहलू को विस्तार से समझें-इसके ऐतिहासिक, धार्मिक, सामाजिक और व्यक्तिगत महत्व को एक साथ जानें।
तिथि | समय |
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एकादशी प्रारंभ | 5 जुलाई 2025, शाम 7:01 बजे |
एकादशी समाप्त | 6 जुलाई 2025, शाम 9:17 बजे |
व्रत तिथि | 6 जुलाई 2025 |
पारण मुहूर्त | 7 जुलाई, सुबह 5:28 से 8:15 तक |
चातुर्मास आरंभ | 6 जुलाई 2025 |
चातुर्मास समापन | 1 नवम्बर 2025 |
यह तिथि साधना, आत्मनिरीक्षण और संयम का प्रतीक है। भगवान विष्णु का योगनिद्रा में जाना दर्शाता है कि अब साधक को भीतर की यात्रा पर निकलना चाहिए।
चातुर्मास के साथ जीवन में अनुशासन, त्याग और सेवा का भाव जागृत होता है। शुभ कार्यों से विराम लेकर आत्मशुद्धि और धर्म के मार्ग पर चलने का अवसर है।
मानसून के आगमन के साथ यह तिथि आती है, जब प्रकृति भी विश्राम और पुनर्निर्माण की अवस्था में होती है। व्यक्ति को भी अपने जीवन में संतुलन और शांति लाने का प्रयास करना चाहिए।
यह पर्व केवल व्यक्तिगत साधना नहीं, बल्कि समाज और परिवार में प्रेम, सेवा और सहयोग का भाव बढ़ाने का संदेश भी देता है।
माह | क्या त्यागें |
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श्रावण | हरी पत्तेदार सब्जियां |
भाद्रपद | दही |
आश्विन | दूध |
कार्तिक | उड़द दाल, तामसिक भोजन |
राजा मान्धाता के राज्य में भयंकर अकाल पड़ा। महर्षि अंगिरा ने उन्हें देवशयनी एकादशी का व्रत रखने की सलाह दी। राजा ने श्रद्धा से व्रत किया, जिससे राज्य में वर्षा हुई और सुख-शांति लौटी। यह कथा बताती है कि श्रद्धा, संयम और भक्ति से जीवन की कठिनाइयां दूर होती हैं।
देवशयनी एकादशी और चातुर्मास जीवन को अनुशासन, भक्ति और सकारात्मक ऊर्जा से भरने का अवसर हैं। यह काल हमें सिखाता है कि जब हम अपने मन, वचन और कर्म को शुद्ध रखते हैं, तो जीवन में शांति, संतुलन और दिव्यता का संचार होता है। साधना, सेवा और संयम के साथ आगे बढ़ें-यही सच्चा पुण्य और आत्मिक उन्नति का मार्ग है।
अनुभव: 15
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