By पं. अमिताभ शर्मा
आस्था, नारी शक्ति और वैवाहिक जीवन की अनूठी परंपरा
वट सावित्री व्रत भारतीय संस्कृति में स्त्री की निष्ठा, समर्पण और वैवाहिक जीवन के प्रति अटूट विश्वास का प्रतीक है। इस दिन महिलाएं वट वृक्ष की पूजा करके अपने पति की दीर्घायु और अखंड सौभाग्य की कामना करती हैं। पौराणिक मान्यताओं और धार्मिक ग्रंथों में इस व्रत को अत्यंत पुण्यदायी माना गया है। आइए विस्तार से जानते हैं वट सावित्री व्रत 2025 की तिथि, शुभ मुहूर्त, व्रत विधि, कथा और आध्यात्मिक महत्व।
इस बार वट सावित्री व्रत सोमवती अमावस्या पर पड़ रहा है, जो अत्यंत शुभ और दुर्लभ संयोग है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन किया गया व्रत कई गुना अधिक फलदायक होता है।
वट सावित्री व्रत की जड़ें महाभारत और अन्य पौराणिक ग्रंथों से जुड़ी हुई हैं। इस व्रत की कथा सावित्री और सत्यवान की अटूट प्रेम और निष्ठा की कथा पर आधारित है।
राजकुमारी सावित्री ने सत्यवान को पति रूप में चुना, जिनकी आयु अल्प थी। जब नियत दिन पर यमराज सत्यवान के प्राण लेने आए, तो सावित्री ने उन्हें अपनी भक्ति, ज्ञान और विवेक से प्रभावित कर दिया। उसने यमराज से वरदान में अपने ससुर की आंखों की ज्योति, ससुराल का राज्य, सौ पुत्र और अंत में अपने पति का जीवन मांगा। यमराज ने विवश होकर सत्यवान को जीवनदान दे दिया। यह कथा दर्शाती है कि एक सच्ची, समर्पित और धर्मनिष्ठ पत्नी अपने पति के प्राण तक बचा सकती है। इसी कारण से इस व्रत को अत्यंत पुण्यदायक और प्रभावशाली माना गया है।
वट (बरगद) वृक्ष हिंदू धर्म में त्रिदेवों का प्रतीक है:
इस वृक्ष को दीर्घायु, धैर्य और स्थिरता का प्रतीक माना जाता है। यही कारण है कि विवाहित महिलाएं इसकी पूजा करके अपने वैवाहिक जीवन में स्थायित्व और सुख की कामना करती हैं।
व्रत की शुरुआत सूर्योदय से पूर्व स्नान करके व्रत का संकल्प लेने से होती है। इसके बाद विशेष विधि से पूजा की जाती है:
वट सावित्री व्रत नारी शक्ति, श्रद्धा और भारतीय संस्कृति की गहराई को दर्शाने वाला पर्व है। 2025 में यह व्रत सोमवती अमावस्या जैसे शुभ योग में आ रहा है, जो इसे अत्यंत फलदायी बनाता है। इस दिन यदि सही विधि से श्रद्धा और नियमों के साथ व्रत किया जाए, तो यह जीवन में स्थायित्व, प्रेम और आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग प्रशस्त करता है।
अनुभव: 32
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