By पं. नीलेश शर्मा
सांस्कृतिक पुनर्पाठ में कैसे मुस्कराते हैं ‘कृष्ण’?

कृष्ण, एक सांस्कृतिक बदलाव
कृष्ण दक्षिण एशियाई मिथकों के सबसे बहुआयामी और प्रिय नायक हैं। उनकी कथाएँ जो हिन्दू ग्रंथों, महाभारत, हरिवंश, भागवत पुराण, से आरंभ होती हैं, धार्मिक सीमाओं से परे पहुँच गईं। कृष्ण की आकर्षक ध्वनि, उनके चरित्र में उठे सवाल, इतने व्यापक थे कि जैन और बौद्ध परंपराओं ने भी उन्हें अपने ही अनुसार व्याख्यायित किया, कभी नायक, कभी प्रतिद्वंद्वी, कभी ज्ञान की तलाश में साधक। फलतः कृष्ण का रूप एक भारतीय सांस्कृतिक आदर्श बन कर विस्तार पाता है, नयी आध्यात्मिक संवेदनाओं के साथ बार-बार ढलता।
जैन कथाओं में महाभारत की पुनर्रचना, विशेषतः हरिवंश पुराण (हिंदू हरिवंश से भिन्न), प्राचीन युद्ध को नया जैन दृष्टिकोण देती है।
जैन महाकाव्य कृष्ण के युद्ध को ‘अहिंसा’ के साक्ष्य में पुनर्व्याख्यायित करते हैं, विरुद्ध शक्तियों के परिणाम भुगतना पड़ता है। आदर्श राजा के बजाय भिक्षु, साधक, संयमी ही मुकंदरूप हैं।
घट जातक में वासुदेव-कृष्ण अपने पुत्र के मरण पर गहरे दुखी हैं। उनका शोक छोटा नहीं समझा जाता बल्कि सर्वमान्य करुणा (हीरो, राजा, देवता, सभी समाज में पीड़ित हैं) के रूप में लिया जाता है।
यहाँ कृष्ण एक दर्पण हैं, महानता भी दुःख से अछूती नहीं; ज्ञान ही अंतिम शांति है। आदर्श हीरो भी शोक, परिवर्तन से गुजरता है।
कृष्ण का प्रवेश जैन-बौद्ध लोक में रचनात्मक बहुलता का श्रेष्ठ उदाहरण है। यह मिथकों की शक्ति का प्रमाण है, कथा बार-बार नये ढंग, नई शिक्षा, नई प्रेरणा के साथ जड़ पकड़ सकती है।
जैनों के लिए, कृष्ण वीरता और उसके सीमाओं के प्रतीक हैं; बौद्धों के लिए, दुःख का स्वीकार और उसकी बुद्धि द्वारा शांति का मार्ग।
हर परंपरा अपने भाव, लक्ष्य, आशा से कृष्ण की कथा में निहित रहस्य खोजती है और कृष्ण हर बार नया रूप, नया संदेश लेकर प्रकट होते हैं, मल्लयुद्ध के नायक, शोक-विह्वल पिता, मानव-आदर्श।
यही जीवंत मिथक हैं, जो सीमाओं के पार प्राण पाते हैं, हर बार नया, सिखाने वाला, चेतना में ताजा।
प्रश्न 1: जैन परंपरा में कृष्ण को किस रूप में प्रस्तुत किया गया है?
उत्तर: यहाँ कृष्ण वासुदेव के रूप में वीर नायक हैं, पर मुक्त नहीं, कर्म-संस्कारों में बंधे, सुधारक व न्यायप्रिय, पर सर्वोच्च आध्यात्मिकता तीर्थंकरों में ही है।
प्रश्न 2: जैन महाभारत में युद्ध के केंद्र और नैतिकता का नया दृष्टिकोण क्या है?
उत्तर: द्वारका-पश्चिम और मगध-पूर्व के मध्य, पांडव-कौरव के नए पक्ष, धर्म व सत्ता का जैन मापदंड, जहाँ अहिंसा और त्याग को उच्चतर आदर्श माना गया है।
प्रश्न 3: बौद्ध कथाओं में कृष्ण किस नई छवि में उभरते हैं?
उत्तर: जातक कथाओं में वासुदेव-कृष्ण वीर, शक्तिशाली, पर मानव-पक्ष लिए, शोक, दुख, पीछा करते हैं; जहाँ बोधिसत्व उन्हें अनित्य, विवेक, त्याग की राह दिखाते हैं।
प्रश्न 4: बौद्ध दृष्टिकोण में कृष्ण की मानवता और आदर्श का मर्म क्या है?
उत्तर: कृष्ण की महानता तक दुःख पहुंचता है; बुद्धि, विवेक और सत्य-स्वीकार से ही अंतिम मुक्ति संभव है, not blind worship but transformative insight.
प्रश्न 5: इन वैकल्पिक कथाओं में कृष्ण की शिक्षा और मिथकीय शक्ति का क्या स्थान है?
उत्तर: कृष्ण के नये रूप अलग-अलग आशाओं, आदर्शों, मुल्यों को समाविष्ट करते हैं, मूल कथा हर बार नवीन, प्रेरणादायक, बहुलता और आत्म-समीक्षा का संदेश देती है।
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