By पं. अमिताभ शर्मा
योग, कर्म, निर्णय-ज्योतिष में छुपी है विजय और पतन की असली राह
हर विजयादशमी जब पूरे देश में रावण का पुतला दहन होता है तब यह केवल एक परंपरा या धर्म का उत्सव नहीं बल्कि अच्छाई और बुराई के बीच अदृश्य, गहराई से बंधे सत्य का पुन: स्मरण होता है। राम और रावण, जिनकी कथाएँ न केवल भारतीय सांस्कृतिक चेतना में बल्कि अनेक देशों के लोक जीवन में जीवंत हैं, दोनों अपने जन्मकुल, शिक्षा, शक्ति और तपस्या में अनुपम हैं। फिर भी, दोनों का पथ और उनकी नियति क्यों बिलकुल अलग दिखाई देती है? क्या यह केवल नैतिक भिन्नता थी या ग्रहों के खेल और उनकी अपनी-अपनी निर्णय शक्ति भी उतनी ही निर्णायक थी? इस लेख में ज्योतिष, पौराणिक प्रसंग, चारित्रिक विश्लेषण और जीवन के गहन सबक को अंत तक उजागर करेंगे।
राम, रघुवंश के सूर्य, सत्य, प्रेम और धैर्य के प्रतीक। रावण, पुलस्त्य वंश के, विद्या, शक्ति और तपस्या का चरम शिखर। दोनों सिद्धांत, शिक्षा, विवाह, परंपरा और तपस्या में विलक्षण हैं। दोनों के समकक्ष योग, कड़ी परीक्षा और अद्भुत प्रतिभा, कभी घमंड में बदल गई तो कभी मर्यादा में ढल गई।
राम का जन्म कर्क लग्न, पुनर्वसु नक्षत्र, नवमी तिथि, उच्च अवस्था के पाँच-पाँच ग्रहों वाली दुर्लभ कुंडली में हुआ। गुरु और चंद्र का गजकेसरी योग, शुक्र का नवम भाव, शनि का उच्च स्थान, मंगल का सप्तम भाव और सूर्य का मेष में- ये सभी योग किसी भी व्यक्ति को अतुल्य संयम, नीति, साहस, नेतृत्व और व्यापक करुणा से सम्पन्न बना देते हैं। राम की दृढ़ता, नीति, युद्ध कौशल, अनुशासन, दया और सच्चाई का आधार इसी दुर्लभ ज्योतिषीय संरचना से बना।
उनका जीवन बाल्यकाल से ही शिक्षा, संयम, गुरु वशिष्ठ का सान्निध्य और माता-पिता का गहरा स्नेह लिए हुए था। गुरुकुल के कठोर अनुशासन के साथ परिवार में विनम्रता, संवाद और संतुलन उनकी मुख्य पहचान बनी। लव-कुश के जन्म, धरती पर नीति, आदर्श और माता-पिता के प्रति वफादारी जैसे घटनाएँ उनकी कुंडली के ग्रहयोगों का साकार रूप थी।
रावण का जन्म तुला लग्न, शनि+चंद्र के विष योग में, उच्च ग्रहों, शुभ दशाओं और प्रबल वाणी-योगों के साथ हुआ। शुक्र व बुध की छठें भाव में युति, शनि का लग्न में होना, सूर्य की मजबूत दृष्टि और सांसारिक भोग-विलास की प्रवृत्ति; सबने रावण को असाधारण विद्वान, तपस्वी, त्रिकालदर्शी, प्रकांड ज्ञानी, शिव-भक्त और असाधारण शासक बनाया। वह वेद, वास्तु, शस्त्र-अस्त्र, संगीत, नाट्य, जड़ी-बूटी, आकाश-गमन, अस्त्र-शक्ति, हरकला का मर्मज्ञ था। हिन्द महासागर के पार सुंदर और स्वर्णभूमि का अधिपति। लंका को उसने अम्बर जितनी ऊँचाई दिला दी थी।
लेकिन बुध-शुक्र की छठे भाव में स्थिति ने भोग, रति, विलास, वासना, मदिरा, अहं और वर्जनाओं के उल्लंघन की प्रवृति को बल दिया। शनि-मंगल के जटिल सम्बन्ध, माता केकसी की कटु महत्वाकांक्षा और गुरु के उपदेश की अवहेलना उसके पतन के कारण बने। उसके भीतर अहं, शक्ति की तृष्णा, स्त्रियों पर अधिकार पाने की जिद्द और अपने ज्ञान का दुरुपयोग समाया हुआ था। ज्ञानयुक्ति जबकि असंतुलित हो जाए तो विनाश का कारण बनती है।
राम की कुंडली में गुरु, चंद्र, बुध और शुक्र- सभी शिक्षा, विवेक, संवाद, धर्म, भक्ति, स्नेह, संयम देते हैं। इसकी वजह से राम ने जहाँ-जहाँ संघर्ष पाया, वहाँ-वहाँ या तो संवाद चुना या नीति और युद्ध में धर्म का पथ नहीं छोड़ा। हर बार धर्म और मर्यादा को सर्वोपरि रखा। जब उन्होंने सुग्रीव, विभीषण, हनुमान और अंगद से मित्रता की तो उनका ध्येय न्याय, सहयोग और धर्म की रक्षा था।
रावण ने शनि-बुध के ज्ञान और साहस को तो अपनाया, पर दो बातें छोड़ दी: अहंकार का नियंत्रण और नीति का अनुकरण। यद्यपि वेदों का महारथी, जोड़-घटाव, मंत्र-शक्ति, शिव-तांडव की रचना में प्रवीण था, लेकिन सम्मान और दयाभाव छोड़ जीवन को भोग, क्रोध और वासनाओं में डुबो दिया। अपनी बहन शूर्पणखा के अपमान की घटना के बाद उसने व्यक्तिगत अहं के लिए अपनी निर्बलता का यज्ञ समर्पित कर दिया।
राम का परिवार: माता कौशल्या का वात्सल्य, भाइयों का प्रगाढ़ प्रेम, गुरु वशिष्ठ का संरक्षण, मित्रों और सहयोगियों का विश्वास-यह बुध, गुरु, चंद्रमा, शुक्र और मंगल की युति से हुआ। लेकिन मंगल सप्तम में और शनि चतुर्थ में होने के कारण दांपत्य में गंभीर परीक्षा और माता के प्रेम में असमंजस आया। फिर भी उन्होंने नीति और कर्तव्य को कभी नहीं छोड़ा।
रावण का परिवार: माँ केकसी ने बचपन में ही अहंकार, प्रतिशोध और भेदभाव के बीज बोए। उसके भाई विभीषण ने धर्म के पथ को चुना, जबकि उसकी बहन ने वासना, विद्वेष का आह्वान किया। बुद्धि और शक्ति के मिश्रण के बावजूद उसके संबंध लिप्सा, द्वेष और शक्ति-लालसा से जुड़ गए।
संकेत | राम | रावण |
---|---|---|
लग्न योग | गजकेसरी योग (गुरु+चंद्र) | विष योग (शनि+चंद्र) |
शिक्षा | नीति, धर्मबल, संवाद | वेद, तंत्र, युक्ति, संगीत |
पत्नी संबंध | कठिनाई के बाद भी प्रेम, निष्ठा | कलह, अहं, निर्णायक का अभाव |
भाई-बंधु | समर्पित, साझा धर्मयुद्ध | विभाजन, विवाद, धर्मभ्रष्टता |
निर्णय | नीति-आधारित, विनम्र | अहंकार-आधारित, आवेग |
वासना-भोग | संयम, संयमित जीवन | रती, भोग, अधोगति |
पतन/विजय | धर्म से विजय, समाज प्रेरक | नीति-विहीन पतन, ज्ञान का दुरुपयोग |
रावण की कुंडली में शुक्र और बुध छठे भाव में, जो विलास, वासना, उत्तेजना, भोग व उच्छृंखल जीवन का संकेत है। जब बल, विद्या और वासना का संतुलन बिगड़ा तब वह निशानी बन गया पतन, दुराग्रह और काल का। इसके विपरीत राम ने गुरु-चंद्र, शुक्र, बुध के योग, शनि की परीक्षा, मंगल की शक्ति के बावजूद वासना, क्रोध, द्वेष और भोग से बचते हुए हर कदम पर संयम को चुना।
शबरी का धैर्य, जटायु का बलिदान, हनुमान की सेवा, सुग्रीव की मित्रता, विभीषण का धर्म- ये सभी राम के व्यवहार, मंद ग्रहों के बावजूद नीति, संयम और विश्वास का प्रतिबिंब हैं।
जब सीता के अपहरण के पश्चात उनमें भी क्रोध, दुःख और मोह के भाव उभरे तब भी उन्होंने शस्त्र, नीति और संवाद का संतुलन रखा। ऋषि अगस्त्य, महर्षि वाल्मीकि, विभीषण और हनुमान के संवाद में उन्होंने अपने विचार, रणनीति और आदर्श साझा किए।
ज्योतिष के कितने भी प्रबल योग क्यों न हों, जबतक नीति, संयम और धर्म की राह न हो, नेतृत्व टिकता नहीं। रावण को शक्ति, भोग और विद्या मिली; परन्तु उसके निर्णयों में अहंकार, प्रतिशोध और व्यवधान रहा। राम ने ग्रहदोष, कठिन परीक्षा, पीड़ादायक फैसलों और समाज-राज्य के संकटों को संयम, भक्ति और नीति से उलझा कर विजय रूप में बदला।
विषय | राम का चिह्न | रावण का परिणाम | उपकथा |
---|---|---|---|
शिक्षा | नीति, सहिष्णुता | अहंकार, देवद्रोह | वशिष्ठ, महर्षि पुष्कर |
सत्ता | न्याय, जनता परमार्थ | शक्ति, भय, हथियार | रामराज्य, लंका राज |
कुटुंब | सहयोग, त्याग | कलह, विभाजन, असंतुलन | भाइयों की भूमिका |
युद्ध | धर्म के लिए संघर्ष | प्रतिशोध, निजी द्वेष | रावण-वध, इन्द्रजीत-वधा |
मोक्ष | साधना, त्याग, तप | तामसिक मोह, दंभ | राम की तीर्थ यात्रा, अंत शांति |
राम की गजकेसरी योग और नीति ने उनके अंतिम समय में भी धर्म को सर्वोपरि रखा। वे हर परिस्थिति में न्याय, नियम, तथा अपने कर्म के प्रति निष्ठावान थे। रावण ने विपरीत योग, विष को वासना, अहं और अधर्म में परिवर्तित किया; इसी ने महानता के बावजूद पतन सुनिश्चित कर दिया।
प्र1. क्या रावण उच्च ग्रह योगों के बावजूद गिर गया?
हां, जब योग अहंकार, अनुशासनहीनता, भोग और असंतुलन में परिणित हो जाए, तो महानता भी काल में समा जाती है।
प्र2. क्या राम ने कठोर ग्रहयोगों के बाद भी मर्यादा निभाई?
हर कठिनाई, वियोग, वनवास, संघर्ष में राम ने नीति, संयम, कर्तव्य और सहिष्णुता से धर्म का निर्वाह किया।
प्र3. क्या ग्रह योग बाधा या उत्कृष्टता के सभी आयाम तय करते हैं?
ग्रह अवसर/परिस्थिति देते हैं, आखिरकार निर्णय, नीति, संयम और आचरण सबसे निर्णायक बनते हैं।
प्र4. क्या आधुनिक जीवन में भी यह संघर्ष प्रासंगिक है?
बिल्कुल, जब विपरीत पक्ष, संकट, अहंकार और विकर्षण हों तब ज्योतिष, पौराणिक नीति और संयम से संतुलन पाना ही असली विजय है।
प्र5. असली नेतृत्व और संतुलन के सूत्र क्या हैं?
सत्य, सहिष्णुता, नीति, संवाद, संयम, अनुशासन और आत्मनियंत्रण। यही राम बनाम रावण की कहानी का सार है।
अनुभव: 32
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