By पं. अमिताभ शर्मा
जानिए तिथि क्या है, इसकी गणना, पंचांग में महत्व, अधिष्ठाता ग्रह और वैदिक जीवन में इसकी भूमिका
पंचांग, जिसे वैदिक ज्योतिष में 'कालदर्शक' माना गया है, केवल एक कैलेंडर भर नहीं है - बल्कि यह ब्रह्मांडीय गतियों का सटीक गणितीय और ज्योतिषीय दस्तावेज़ है। पंचांग के पाँच प्रमुख अंग - तिथि, वार, नक्षत्र, योग और करण - में तिथि का स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण है। तिथि केवल दिन का नाम नहीं, बल्कि चंद्रमा और सूर्य के बीच के कोणीय संबंध को दर्शाती है, जो जीवन की विविध घटनाओं और शुभाशुभ स्थितियों का निर्धारण करती है।
पंचांग का शाब्दिक अर्थ है - पाँच अंगों से युक्त काल-सूचक। इन पाँच अंगों में सबसे पहले स्थान पर आती है तिथि। तिथि को समझे बिना कोई भी ज्योतिषीय गणना, मुहूर्त निर्धारण या कर्मकांड शुद्ध नहीं माने जाते। अतः वैदिक ज्योतिष का विद्यार्थी हो या गृहस्थ - तिथि का ज्ञान अनिवार्य है।
तिथि चंद्रमा और सूर्य के बीच बनने वाले कोणीय अंतर को दर्शाती है। जब चंद्रमा और सूर्य के बीच का कोण १२ अंश (12°) होता है, तो एक तिथि पूर्ण मानी जाती है। इस प्रकार, 360 अंश के चक्र को 30 खंडों में बाँटा गया है, जिससे एक मास में कुल 30 तिथियाँ होती हैं। इन्हें दो पक्षों में विभाजित किया जाता है:
पृथ्वी सूर्य के चारों ओर घूमती है और चंद्रमा पृथ्वी के चारों ओर। इन गतियों के कारण चंद्रमा और सूर्य के बीच जो कोण बनते हैं, वही तिथियों का निर्माण करते हैं।
इस प्रकार, पूर्णिमा और अमावस्या एक मास में एक-एक बार आती हैं और दोनों के बीच की प्रत्येक 12 अंश की दूरी एक-एक तिथि कहलाती है।
तिथि का नाम | सूर्य-चंद्र कोणीय दूरी (डिग्री) |
---|---|
प्रतिपदा | 0° - 12° |
द्वितीया | 12° - 24° |
तृतीया | 24° - 36° |
चतुर्थी | 36° - 48° |
पंचमी | 48° - 60° |
षष्ठी | 60° - 72° |
सप्तमी | 72° - 84° |
अष्टमी | 84° - 96° |
नवमी | 96° - 108° |
दशमी | 108° - 120° |
एकादशी | 120° - 132° |
द्वादशी | 132° - 144° |
त्रयोदशी | 144° - 156° |
चतुर्दशी | 156° - 168° |
पूर्णिमा | 168° - 180° |
तिथि का नाम | सूर्य-चंद्र कोणीय दूरी (डिग्री) |
---|---|
प्रतिपदा | 180° - 192° |
द्वितीया | 192° - 204° |
तृतीया | 204° - 216° |
चतुर्थी | 216° - 228° |
पंचमी | 228° - 240° |
षष्ठी | 240° - 252° |
सप्तमी | 252° - 264° |
अष्टमी | 264° - 276° |
नवमी | 276° - 288° |
दशमी | 288° - 300° |
एकादशी | 300° - 312° |
द्वादशी | 312° - 324° |
त्रयोदशी | 324° - 336° |
चतुर्दशी | 336° - 348° |
अमावस्या | 348° - 360° |
प्रत्येक तिथि का एक अधिष्ठाता देवता या ग्रह स्वामी होता है। ये स्वामी तिथि के प्रभाव और उस दिन के कार्यों की प्रकृति तय करने में उपयोगी होते हैं। विशेष रूप से तिथि शुद्धि, व्रत, यज्ञ, विवाह और अन्य कर्मकांडों में इनका महत्व होता है।
तिथि | स्वामी ग्रह/देवता |
---|---|
प्रतिपदा | अग्नि देव |
द्वितीया | ब्रह्मा |
तृतीया | गौरी (पार्वती) |
चतुर्थी | गणेश जी |
पंचमी | नाग देवता |
षष्ठी | कार्तिकेय |
सप्तमी | सूर्य देव |
अष्टमी | दुर्गा माता |
नवमी | दण्डिनी (चामुंडा) |
दशमी | धर्मराज (यम) |
एकादशी | विष्णु भगवान |
द्वादशी | हनुमान जी / नारायण |
त्रयोदशी | कामदेव |
चतुर्दशी | शिव जी |
पूर्णिमा/अमावस्या | चंद्रमा / पितृगण |
एक तिथि का मान चंद्रमा की गति पर आधारित होता है और यह लगभग 19 से 24 घंटे तक हो सकती है। तिथि का आरंभ और समापन सूर्य उदय से नहीं, बल्कि खगोलीय स्थिति से होता है, परंतु वैदिक परंपरा में सूर्योदय के समय जो तिथि प्रचलित हो, वही दिन की तिथि मानी जाती है।
यदि कोई तिथि सूर्योदय के बाद प्रारंभ होकर अगले सूर्योदय से पहले ही समाप्त हो जाए, तो वैदिक परंपरा में वह तिथि 'त्याज्य' मानी जाती है और उसका फल नहीं ग्रहण किया जाता।
12 चंद्र महीने मिलकर एक लूनर वर्ष बनाते हैं, जिसकी अवधि लगभग 354 दिन होती है। जबकि सौर वर्ष 365¼ दिन का होता है। इस 11 दिनों के अंतर को अधिक मास (मलमास या पुरुषोत्तम मास) द्वारा संतुलित किया जाता है, जो हर 2.5 से 3 वर्ष में एक बार जोड़ा जाता है।
तिथि केवल एक खगोलीय अवधारणा नहीं, बल्कि वैदिक समय चक्र की संवेदनशील इकाई है। इसकी गणना, महत्ता और उपयोग का ज्ञान प्रत्येक ज्योतिषी, पुजारी और जिज्ञासु के लिए आवश्यक है। पंचांग के इस प्रमुख अंग को जानना वैदिक ज्योतिष के मूल को समझने की दिशा में एक निर्णायक कदम है।
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