By पं. अमिताभ शर्मा
जानिए पंचांग क्या है, इसके पाँच अंग, निर्माण विधि, प्रमुख प्रणालियाँ और जीवन में इसका वैज्ञानिक व आध्यात्मिक महत्त्व
भारतीय संस्कृति और वैदिक परंपरा में समय केवल एक भौतिक मापन नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक और लौकिक चक्र का दर्पण है। इसी समय चक्र को समझने, मापने और उसके शुभ-अशुभ प्रभावों का आकलन करने हेतु पंचांग का निर्माण हुआ। पंचांग केवल एक कैलेंडर नहीं, यह वैदिक ज्योतिष की मूलभूत संरचना है, जो जन्म कुंडली से लेकर मुहूर्त निर्धारण तक, हर कार्य में मार्गदर्शक की भूमिका निभाता है।
"पंचांग" शब्द संस्कृत के पंच (पाँच) और अंग (अवयव) से मिलकर बना है, जिसका अर्थ है-पाँच अंगों वाला। पंचांग, हिन्दू कालगणना प्रणाली के अनुसार तैयार एक वैदिक कालदर्शक है, जिसका उपयोग दिन-प्रतिदिन के कार्यों, पर्व-त्योहारों, यज्ञों, संस्कारों और मुहूर्त निर्धारण के लिए किया जाता है।
पंचांग का निर्माण खगोलीय गणनाओं पर आधारित होता है। सूर्य और चंद्रमा की सटीक स्थितियों को देखकर यह तय किया जाता है कि कौन-सी तिथि, नक्षत्र, योग आदि कब आरंभ और समाप्त हो रहे हैं। आधुनिक समय में भी परंपरागत पद्धतियों से युक्त ‘ड्रिक गणना’ और ‘सूर्य सिद्धांत’ जैसे सिद्धांतों का प्रयोग होता है। इसके लिए विशेषज्ञ गणित, खगोल और ज्योतिष का गहन ज्ञान रखते हैं।
भारत में पंचांग की तीन मुख्य प्रणालियाँ चलन में हैं:
पंचांग केवल एक धार्मिक या सामाजिक उपकरण नहीं, यह वैदिक दर्शन और खगोलशास्त्र का मिलाजुला चमत्कार है। यह जीवन की लय, ब्रह्मांड की गति और व्यक्ति के कर्मों के अनुकूल समय चयन का वैज्ञानिक और आध्यात्मिक साधन है। इसके बिना वैदिक ज्योतिष अधूरा है।
यदि आप किसी विशेष कार्य के लिए शुभ समय की खोज कर रहे हैं या ज्योतिषीय मार्गदर्शन चाहते हैं, तो पारंपरिक विधियों से तैयार पंचांग का परामर्श अवश्य लें। यह न केवल कार्य की सफलता को सुनिश्चित करता है, बल्कि जीवन में संतुलन और शांति भी लाता है।
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