By पं. अमिताभ शर्मा
जानिए क्यों सावन में चंद्रमा का कटा हुआ रूप और अधिक चमकदार और मनमोहक दिखाई देता है
सावन की भीगी रातों में जब आप आसमान की ओर देखते हैं, तो चांद की कटी हुई मुस्कान-वह सुंदर शशांक-कुछ और ही चमकती दिखती है। यह दृश्य न केवल आंखों के लिए, बल्कि आत्मा के लिए भी सुकून देने वाला होता है। आखिर क्यों सावन में चंद्रमा का कटा हुआ रूप इतना चमकदार और विशेष लगता है? आइए, इस रहस्य को वेदों, ज्योतिष और प्रकृति के अद्भुत मेल से समझें।
सावन के महीने में जब मानसून की बारिश धरती को भिगोती है, तब केवल मिट्टी ही नहीं, आसमान भी धुल जाता है। बारिश हवा में फैली धूल, धुआं और प्रदूषण को साफ कर देती है। नतीजा-चंद्रमा की चांदी-सी रौशनी एकदम साफ और निर्मल वातावरण से होकर हम तक पहुंचती है। यही वजह है कि सावन में चंद्रमा का कटा हुआ रूप और अधिक उज्ज्वल, मुलायम और पास लगता है।
बारिश के बाद जब बादल छंट जाते हैं, तो आसमान गहरा और मखमली काला हो जाता है। ऐसे में चंद्रमा की हल्की सफेद रेखा काले कैनवास पर किसी मोती की तरह चमकती है। जैसे अंधेरे कमरे में मोबाइल की स्क्रीन ज्यादा चमकती है, वैसे ही साफ, गहरे आसमान पर चांद का कटा हुआ रूप और ज्यादा उभरकर आता है।
हिंदू पंचांग में सावन का महीना खास चंद्र चरणों के साथ आता है। अक्सर यह कटा हुआ चंद्रमा शाम के शुरुआती या भोर के समय दिखता है, जब आसमान सबसे गहरा और हवा में नमी होती है। यह नमी चांद की रौशनी को हल्का सा फैला देती है, जिससे वह और बड़ा, और सुंदर दिखाई देता है।
यह केवल प्रकृति का खेल नहीं, बल्कि आध्यात्मिक दृष्टि से भी बेहद गहरा है। हर चित्र में भगवान शिव के जटाओं में अर्धचंद्र सजा होता है-शशांकशेखर। चंद्रमा मन का प्रतीक है-जो हमेशा बदलता रहता है। शिव के सिर पर चंद्रमा यह दर्शाता है कि वे मन की चंचलता से परे, स्थिर और शांत हैं। सावन में जब भक्ति की लहर हर ओर होती है, तब यह अर्धचंद्र केवल आकाश का टुकड़ा नहीं, बल्कि शांति और संतुलन का सजीव प्रतीक बन जाता है।
जिस चीज़ पर हमारा ध्यान ज्यादा होता है, वह हमें और चमकदार दिखती है। सावन में लाखों भक्त शिव के अर्धचंद्र को देख-देखकर प्रार्थना करते हैं, भजन गाते हैं, और आशीर्वाद की कामना करते हैं। यह सामूहिक श्रद्धा चंद्रमा की चमक को और बढ़ा देती है। विज्ञान इसे perceptual brightness कहता है, आस्था इसे दर्शन।
सावन में चंद्रमा की यह चमक केवल प्राकृतिक या मानसिक खेल नहीं, बल्कि धरती, आकाश और आत्मा का सुंदर समन्वय है। जब प्रकृति आसमान को साफ करती है, विज्ञान प्रकाश को बिखेरता है, और भक्ति उसे अर्थ देती है-तब चंद्रमा का कटा हुआ रूप सचमुच और चमकदार हो जाता है।
अगली बार जब सावन की रात में मंदिर के शिखर पर या बादलों के बीच से झांकता अर्धचंद्र दिखे, तो एक पल रुक जाइए। मन को शिव की तरह स्थिर करें। याद रखिए, चंद्रमा के चरण बदलते रहते हैं-जैसे जीवन में सुख-दुख, प्रकाश-अंधकार आते-जाते हैं। कुछ भी स्थायी नहीं, फिर भी सब कुछ यहीं है।
सावन का अर्धचंद्र केवल आकाश का हिस्सा नहीं, बल्कि यह ईश्वर की निकटता का, उसकी चुपचाप देखभाल का, और हर अंधेरी रात में भी उजास का संकेत है। जैसे शिव चंद्रमा को सिर पर धारण कर मन की चंचलता से ऊपर हैं, वैसे ही हम भी अपने मन को संतुलित रख सकते हैं।
आज रात आसमान की ओर देखिए, चांदनी को चेहरे पर महसूस कीजिए, और अपने मन की चिंता उस धुले हुए आकाश को सौंप दीजिए। याद रखिए, अंधेरा चाहे जितनी बार आए, प्रकाश हर बार और शांत, और सुंदर होकर लौटता है।
सावन के इस अर्धचंद्र की शीतलता आपके मन में बनी रहे, और शिव का प्रकाश आपको हमेशा यह एहसास दिलाए-इस अनंत आकाश के नीचे आप कभी अकेले नहीं हैं।
अनुभव: 32
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