भारतीय वैदिक ज्योतिष में पंचांग (अर्थात् पाँच अंगों वाला कालविवरण) को समय मापन का आधार माना गया है। यह न केवल धार्मिक कार्यों के लिए शुभ-अशुभ समय बताता है,
बल्कि व्यक्ति के जन्म से लेकर जीवन के प्रत्येक निर्णय में मार्गदर्शन करता है। पंचांग के पाँच अंग हैं:
- तिथि - चंद्रमा का स्थिति संबंधी मापन
- वार - सप्ताह का दिन
- नक्षत्र - चंद्रमा की नक्षत्र स्थिति
- योग - सूर्य-चंद्रमा के मध्य कोणीय संबंध
- करण - तिथि का आधा भाग, क्रियात्मकता का संकेत
इनमें से करण का अर्थ है ‘कर्म करने की प्रवृत्ति’। किसी तिथि के एक भाग में दो करण होते हैं - प्रथम अर्धभाग का एक करण और द्वितीय अर्धभाग का दूसरा करण।
वैदिक ज्योतिष में 11 प्रकार के करण माने गए हैं, जिनमें से 4 स्थिर हैं और 7 चर।
करण का महत्व क्यों है?
- जन्म समय का करण जातक की व्यवहारिक प्रवृत्ति, कार्यशैली, धार्मिक झुकाव और धन-संपत्ति के साथ संबंध दर्शाता है।
- मुहूर्त निर्माण में करण का प्रयोग शुभता और कार्यक्षमता को निर्धारित करने हेतु होता है।
- यह समझने में सहायक होता है कि जातक कर्म प्रधान होगा या विचार प्रधान, धार्मिक होगा या व्यावसायिक, आदि।
करणों का वर्गीकरण और उनका प्रभाव:
चर करण (Recurring Karanas)
ये एक चक्र में बार-बार आते हैं और कुल 7 होते हैं:
1. बव (Bava) करण
- प्रभाव: धार्मिक, प्रतिष्ठित, प्रसिद्ध और शुभ कर्मों में प्रवृत्त। दृढ़ निश्चयी और स्थिर प्रवृत्ति का जातक।
- आंतरिक गुण: सम्मान और समाज में अच्छी स्थिति।
2. बालव (Balava) करण
- प्रभाव: आध्यात्मिक, भक्ति भाव से युक्त, ज्ञान और धन का उपासक।
- विशेषता: शांति प्रिय, विद्वान, समाज में सुगंधित व्यक्तित्व।
3. कौलव (Kaulava) करण
- प्रभाव: प्रेमी स्वभाव, सामाजिक, मैत्रीभावना से परिपूर्ण किंतु कभी-कभी स्वार्थी।
- आत्मगुण: संबंधों को निभाने में कुशल लेकिन अहम प्रधान।
4. तैतिल (Taitila) करण
- प्रभाव: प्रेमपूर्ण व्यवहार, भाग्यशाली, संपत्ति-सम्पन्न।
- लाभ: कई घर, ज़मीन और आर्थिक स्थायित्व प्राप्त करता है।
5. गर (Garaja) करण
- प्रभाव: कृषिप्रिय, घरेलू उत्तरदायित्व निभाने में अग्रणी।
- लक्षण: आत्मनिर्भरता से धन और यश अर्जन।
6. वणिज (Vanija) करण
- प्रभाव: व्यापारिक प्रवृत्ति, विशेष रूप से आयात-निर्यात में रुचि।
- व्यवसायिक संकेत: एक कुशल व्यापारी, सौदे में चतुर।
7. विष्टि (Vishti या भद्र) करण
- प्रभाव: चालाक, अनैतिक प्रवृत्ति संभावित, विषकार्य में दक्ष।
- सावधानी: यह करण अशुभ माना गया है, विशेषतः शुभ कार्यों के लिए त्याज्य।
स्थिर करण (Fixed Karanas)
ये प्रत्येक पक्ष के अंत में एक बार आते हैं:
8. शकुनि (Shakuni) करण
- प्रभाव: संयमित, शांति प्रिय, चिकित्सा क्षेत्र से संबंध।
- संभावना: औषधियों के व्यवसाय या आयुर्वेद में रुचि।
9. चतुष्पद (Chatushpada) करण
- प्रभाव: गौसेवा, पशुपालन, धर्म से जुड़ी प्रवृत्ति।
- व्यवसाय संकेत: पशु चिकित्सक या धार्मिक सेवा में।
10. नाग (Naaga) करण
- प्रभाव: स्वकेंद्रित, मेहनती लेकिन भाग्य का सहयोग सीमित।
- गुण: आत्मबल से प्रगति करता है, पर संघर्ष अधिक।
11. किंस्तुघ्न (Kinstughna) करण
- प्रभाव: शांत, संतोषी, शुभ कार्यों में रुचि, इच्छापूर्ति में सक्षम।
- विशेषता: स्वास्थ्य और मानसिक संतुलन में श्रेष्ठ।
करण चयन का उपयोग मुहूर्त में कैसे होता है?
- शुभ कार्यों (जैसे विवाह, गृहप्रवेश, यज्ञ, नई शुरुआत) के लिए बव, बालव, कौलव, तैतिल, गरज, वणिज करण शुभ माने जाते हैं।
- विष्टि करण (भद्र) में शुभ कार्य निषिद्ध हैं, इसे छोड़कर ही अन्य समय देखना चाहिए।
- स्थिर करणों का प्रयोग विशेष धार्मिक कार्यों या निर्णयात्मक कार्यों में किया जाता है।
निष्कर्ष: करणों की भूमिका और महत्व
करण केवल तिथि का अर्धभाग नहीं है, बल्कि यह समय की क्रियात्मकता का प्रतिबिंब है। व्यक्ति के जन्म के समय का करण, उसके जीवन की व्यवहारिक दिशा, धार्मिक झुकाव, आर्थिक और व्यवसायिक व्यवहार तक को प्रभावित करता है। मुहूर्त विद्या में करण का सटीक विश्लेषण किसी भी कार्य की सफलता या विफलता में निर्णायक भूमिका निभाता है।
वैदिक पंचांग को समझने के लिए करणों का गहन अध्ययन अनिवार्य है।