By पं. अभिषेक शर्मा
मंगल और दुर्गा के संबंध, शक्ति, साहस और विजय का पुराणों में ज्योतिषीय महत्व

पुराणों के अद्वितीय संदर्भ में शक्ति, साहस और विजय का जो गूढ़ ताना-बाना बुना गया है, उसमें मार्कंडेय पुराण और मंगल ग्रह का रिश्ता विशेष रूप से उल्लेखनीय है। देवी दुर्गा के ऊर्जा-प्रेरित रूप और मंगल ग्रह की प्रकृति में चेतना, नेतृत्व और भूमि के प्रति लगाव एक जैसी लय में बंधे हैं। दोनों ही शक्ति, सुरक्षा, विजय और साहस के ऐसे प्रतीक हैं, जिनकी व्याख्या गहराई से जीवन के धरातल और आध्यात्मिक स्तर पर होती है।
मार्कंडेय पुराण में मंगल ग्रह को केवल एक लाल ग्रह भर के रूप में नहीं देखा गया, बल्कि उन्हें ऊर्जा, पराक्रम और भूमि पुत्र के रूप में प्रतिष्ठित किया गया है। मंगल का प्रत्यक्ष संबंध उस शक्ति से है, जो मनुष्य को साहस, रक्त की शक्ति, जोश और भूमि से जुड़े हर काम में निर्णायक बनाती है।
| पौराणिक स्वरूप | विशेषता |
|---|---|
| ऊर्जा और साहस | साहस, प्रतिरोध, पराक्रम |
| भूमि से संबंध | भूमि-पुत्र, स्थायित्व, सत्ता |
| युद्ध में भूमिका | सेनापति, विजय, युद्धनीति |
| रक्त और शक्ति | लाल रंग, जीवन ऊर्जा, क्रियाशीलता |
मंगल की इसी भूमिका का प्रभाव जीवन के कई स्तरों पर देखा जाता है - चाहे वह आत्मविश्वास हो, शक्ति-संचार, भूमि संबंधी निर्णय हों या किसी कठिन लड़ाई की जीत में आत्मबल।
देवी दुर्गा के स्वरूप में शक्ति, क्रोध और मातृत्व एक साथ उपस्थित रहते हैं। माँ दुर्गा को शक्ति, माँस, रक्त और युद्ध की अद्वितीय देवी कहा गया है, जिनका प्रत्येक रूप बुराई का नाश करता है और धर्म व न्याय का संचार करता है। शक्ति रूप में दुर्गा का जो पहलू उभरता है, वह केवल ध्वंस या आक्रामकता का नहीं, बल्कि उस सामर्थ्य का है, जो प्रत्येक विपरीत परिस्थिति में विजय की मशाल थमा देता है।
| दुर्गा के रूप | तत्व |
|---|---|
| शक्ति स्वरूपा | प्रचंडता, तेज, ऊर्जा |
| युद्ध और विजय | असुरों का संहार, धर्म की रक्षा |
| रक्त और साहस | स्पंदन, उत्साह, जिजीविषा |
मंगल ग्रह की ऊर्जा और देवी दुर्गा के शक्ति स्वरूप में गहरा सामंजस्य है:
ऊर्जा, साहस और शक्ति का संगम
मंगल ग्रह और देवी दुर्गा दोनों अपने-अपने क्षेत्र में शक्ति, प्रतिरोध, संघर्ष और विजय के अव्वल प्रतीक हैं। मंगल की उपस्थिति कुंडली में साहस, तेज और निर्णायकता बढ़ाती है तो दुर्गा की उपासना जीवन में प्रतिकूलता के विरुद्ध लड़ने का हौसला भरती है।
युद्ध का आदर्श और परिणाम
मंगल को युद्ध का अधिपति कहा गया और दुर्गा देवी को युद्ध की देवी। दोनों का संदेश एक ही है - अधर्म, अन्याय और बाधाओं के विरुद्ध उठना और धर्म, न्याय व विजय का मार्ग प्रशस्त करना।
शक्ति का शुद्ध, संतुलित प्रयोग
मंगल की ऊर्जा कभी-कभी अंध आक्रामकता में परिणत हो सकती है, पर देवी दुर्गा का जागृत स्वरूप उस ऊर्जा को अनुशासन, भक्ति और स्थिरता में रूपांतरित करता है।
शारीरिक और मानसिक ऊर्जा, आत्मविश्वास, भूमि से जुड़े क्षेत्रों में प्रगति, जीवन के संघर्षों में जीत, ऐसे हर क्षेत्र में मंगल और देवी दुर्गा की उपस्थिति मन, आत्मा और परिस्थिति के संतुलन के लिए जरूरी मानी गई है। दुर्गा सप्तशती का पाठ, शक्तिपीठों की यात्रा या मंगल ग्रह की शांति के उपाय - सबमें शक्ति और ऊर्जा के संतुलन का सूत्र छुपा है।
आज भी, जो शक्तिशाली और सार्थक निर्णायकता की तलाश करते हैं, उनके लिए मंगल और दुर्गा दोनों ही जीवन शक्ति और विजय की सार्वभौमिक धारा हैं।
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