By पं. अभिषेक शर्मा
जानिए पंचांग के करण का अर्थ, प्रकार, जन्मफल और शुभ कार्यों में करण चयन का महत्व
भारतीय संस्कृति में काल (समय) को एक जीवंत सत्ता माना गया है। समय केवल घंटों या दिनों का जोड़ नहीं, बल्कि देवत्व की गति है। यही कारण है कि वैदिक ज्योतिष में समय को मापने और समझने का एक गूढ़, सूक्ष्म और वैज्ञानिक पद्धति बनाई गई जिसे कहते हैं - पंचांग।
पंचांग का शाब्दिक अर्थ है - "पाँच अंगों से युक्त समयसूचक प्रणाली"। ये पाँच अंग हैं:
इन पाँच अंगों के आधार पर ही शुभ, अशुभ, यज्ञ, संस्कार, यात्रा, विवाह, संतानोत्पत्ति जैसे सभी निर्णय वैदिक पद्धति में लिए जाते हैं। इनमें से करण सबसे कम समझा जाने वाला, परंतु अत्यंत गूढ़ तत्त्व है।
करण वह खगोलीय क्षण है जहाँ सूर्य और चंद्रमा के बीच 6 अंश का अंतर होता है।
ये करण एक पक्ष में कई बार आते हैं:
करण | प्रकृति व विशेषता | अधिपति देवता |
---|---|---|
बव | शुभ, धार्मिकता, सम्मान | इंद्र |
बालव | विद्या, सौम्यता, ऐश्वर्य | ब्रह्मा |
कौलव | मित्रता, मोह, सामाजिकता | सूर्य |
तैतिल | धन, संपत्ति, विलासिता | सूर्य |
गर | कृषि, गृहस्थ कर्म, स्थिरता | पृथ्वी |
वणिज | व्यापार, लाभ, आर्थिक प्रगति | लक्ष्मी |
विष्टि | संघर्ष, वक्रता, जोखिम | यम (यह भद्र कहलाता है और अत्यंत अशुभ मानी जाती है) |
भद्र (विष्टि करण) में विवाह, गृह प्रवेश, मुंडन, नए व्यापार आदि टालना चाहिए। मृत्यु संस्कार, युद्ध, राजनीति के षड्यंत्र जैसे कार्यों में भद्र उपयुक्त मानी जाती है।
ये केवल एक बार ही कृष्ण पक्ष की अंतिम तिथियों में आते हैं:
करण | गुणधर्म | अधिपति |
---|---|---|
शकुनी | वैद्यक कार्य, अनुसंधान, चिकित्सा | कलियुग |
चतुष्पद | पशुपालन, गौसेवा, तपस्या | रुद्र |
नाग | गूढ़ता, रहस्य, तंत्र | नाग |
किंस्तुघ्न | शुभ कार्य, आत्मसंतोष, संतुलन | वायु |
जैसे नक्षत्र और तिथि जन्मकुंडली में गहरा प्रभाव छोड़ते हैं, वैसे ही जन्म करण भी जातक के स्वभाव, जीवनपथ, स्वास्थ्य, संबंध और व्यवसाय पर प्रभाव डालता है।
करण | शुभ कार्यों के लिए उपयुक्त | टालने योग्य कार्य |
---|---|---|
बव, बालव, कौलव, गर, वणिज | विवाह, यज्ञ, गृह प्रवेश | कोई नहीं |
तैतिल | संपत्ति क्रय, व्यापार आरंभ | विवाह |
विष्टि (भद्र) | राजनीतिक दांव, तांत्रिक क्रियाएँ | विवाह, मुंडन, नामकरण |
शकुनी, नाग, चतुष्पद | अनुसंधान, साधना, पशुपालन | शुभ कार्य |
किंस्तुघ्न | तपस्या, ध्यान, आत्मसंतोष | भीड़ वाले कार्य |
करण को समझना पंचांग के सबसे सूक्ष्म लेकिन सबसे प्रभावशाली अंग को जानना है। तिथि बताती है कि समय कितना बीता, लेकिन करण यह दर्शाता है कि उस बीते समय में कौन-सा कर्म श्रेष्ठ रहेगा।
किसी भी शुभ कार्य, यज्ञ, विवाह, उपनयन, संतानोपत्ति, गृह निर्माण, यात्रा आदि के लिए करण का विचार अनिवार्य है
अनुभव: 19
इनसे पूछें: विवाह, संबंध, करियर
इनके क्लाइंट: छ.ग., म.प्र., दि., ओडि, उ.प्र.
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