By पं. सुव्रत शर्मा
लग्न भाव में बृहस्पति के प्रभाव, व्यक्तित्व, सोच, सामाजिक छवि और उपायों की जानकारी
कुंडली के प्रथम भाव, यानी लग्न, को जीवन, व्यक्तित्व, शरीर और भाग्य का आंतरिक द्वार माना जाता है। जब बृहस्पति इस भाव में स्थित होता है, तो जातक के भीतर सहज सौंदर्य, दीर्घायु, सरलता और आत्मविश्वास प्रस्फुटित हो जाते हैं। गुरु का यह स्थान जीवन के हर पहलू में शुभता, साधना,शीलता और उच्च विचारों का संचार करता है। ऐसे जातक ब्राह्मण, पुरोहित, देवता व धर्म में श्रद्धा रखते हैं, दान-पुण्य में रुचि दिखाते हैं और सबके साथ आदरपूर्वक व्यवहार करते हैं।
जीवन क्षेत्र | प्रभाव |
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व्यक्तित्व | आकर्षक, प्रभावशाली, बलवान |
सोच-विचार | स्पष्ट, ऊंचा, दर्शन और न्याय का आधार |
सामाजिक संबंध | सम्मानित, सदाचारी |
आत्मज्ञान | अध्यात्म, सद्विचार, शिक्षायोग |
भौतिक सुख | दाम्पत्य, पुत्र, रत्न, संपत्ति, राजमान्यता |
सकारात्मक प्रभाव:
नकारात्मक प्रभाव:
इस योग के प्रभाव से जातक जीवन में सुगमता, शुभता, विस्तार, भाग्य, सम्मान और सामाजिक प्रतिष्ठा की ओर बढ़ता है। ऐसे जातक शिक्षा, धर्म, सेवा, न्याय और नेतृत्व की राह पर अग्रसर होते हैं। हालाँकि, धैर्य, विवेक और स्वयं का संतुलन बनाए रखना आवश्यक है क्योंकि अत्यधिक हस्तक्षेप, स्वतंत्रता और भावनाओं की अधिकता भ्रम या संकट का कारण बन सकती है।
शुभता के सूत्र | सावधानी के संकेत |
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विद्या, सेवा, उदारता, विचार | हस्तक्षेप, स्वतंत्रता, अति-भावनाएँ |
प्रथम भाव में बृहस्पति का योग जीवन में शिक्षा, धर्म, सेवा और सौभाग्य का समर्थ आधार बनता है। ऐसे व्यक्तित्व के धनी लोग समाज में नेतृत्व, सम्मान और धर्म के मार्ग पर अग्रणी होते हैं। व्यक्तिगत संतुलन, विचारशीलता और दूसरों की सीमाओं का आदर, इस योग की सच्ची शक्ति और स्थायित्व को सुनिश्चित कर सकते हैं।
अनुभव: 27
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