By पं. सुव्रत शर्मा
कार्तिकेय व मंगल ग्रह के बीच आध्यात्मिक, ज्योतिषीय समीकरण और व्यक्तिगत जीवन पर प्रभाव
शिव-पार्वती के दिव्य कुल में उत्पन्न, भगवान कार्तिकेय और मंगल ग्रह के बीच ऐसा आध्यात्मिक और ज्योतिषीय संबंध है, जो ऊर्जा, साहस और आत्म-शक्ति का गूढ़ रहस्य खोलता है। दोनों जीवन में बाधाओं का निवारण, आत्मविश्वास और सफलता प्राप्त करने के सबसे शक्तिशाली प्रतीकों के रूप में माने जाते हैं। एक ओर कार्तिकेय देवताओं की सेना के युवा और तेजस्वी सेनापति हैं, वहीं मंगल ग्रह नवग्रहों के सेनापति होने के साथ भू-तत्त्व और शक्ति का भी सर्वोच्च अधिष्ठान है।
आध्यात्मिक संबंध | सारांश |
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सैन्य और नेतृत्व | दोनों को देवताओं की सेनाओं के मुख्य सेनापति मानते हैं, जो धर्म और विजय के मार्गदर्शक हैं। |
मूलाधार चक्र | मूलाधार चक्र, जीवन शक्ति का केंद्र है, जिसे जाग्रत करने में कार्तिकेय व मंगल दोनों का योग है। |
मंगल ग्रह से जुड़ी पूजा | कार्तिकेय की पूजा से मंगल दोष का शमन और ग्रह से संबंधित बाधाओं में राहत मिलती है। |
प्रतीक | कार्तिकेय का भाला (वेल) और मंगल का लाल रंग, दोनों भीतर की शक्ति को प्रकट करने का प्रतीक हैं। |
कार्तिकेय और मंगल दोनों ही साहस, युद्ध कौशल, तेजस्विता, और त्वरित निर्णय का प्रतिनिधित्व करते हैं। इनकी उपासना से मूलाधार चक्र सक्रिय होता है और जीवन में स्थिरता आती है। जो जातक मांगलिक दोष से पीड़ित हों, उन्हें भगवान कार्तिकेय की पूजा के साथ मंगल दोष शांति के जप, मूंगा रत्न, और लाल वस्त्र सहित मंगल यंत्र व शालिग्राम की पूजा लाभकारी सिद्ध होती है।
भगवान कार्तिकेय, जिन्हें मुरुगन, स्कंद, कुमार, सुब्रह्मण्य नामों से भी जाना जाता है, शिव और पार्वती के संतान हैं। उनकी पौराणिक उत्पत्ति का संबंध तारकासुर नामक दैत्य के वध से है। महाकाव्य बताते हैं कि देवताओं के संकट के समय, शिव और पार्वती की तेजस्वी शक्तियों से कार्तिकेय का जन्म हुआ। बाल्यकाल में ही उन्होंने राक्षस तारकासुर का वध करके देवताओं और संसार की रक्षा की।
भगवान कार्तिकेय को युवावस्था में मोर की सवारी पर दर्शाया गया है, और उनके हाथों में वेल (भाला) होता है। मोर अहंकार को वश में करने और भाला शक्ति, साहस तथा अज्ञानता के विनाश का प्रतीक है। मोर के पंख के प्रतीक से यह स्पष्ट है कि ज्ञान के प्रकाश से अज्ञानता एवं अहंकार का अंत संभव है।
कार्तिकेय की पूजा साधक को बल, साहस, नेतृत्वशक्ति, प्रखर बुद्धि, शौर्य और विजय प्राप्त करवाती है। माना जाता है कि कार्तिकेय की साधना से मंगल और कुज दोष का निवारण होता है, और राहु-केतु, कालसर्प और अन्य ग्रहदोष भी शांति पाते हैं। जो साधक जीवन में सफलता, तेज, स्पष्ट सोच, और करिश्माई व्यक्तित्व की तलाश में हो, उन्हें कार्तिकेय की आराधना अवश्य करनी चाहिए।
इन मंत्रों का जाप विशेषत: मंगलवार या स्कंद षष्ठी उत्सव के दिन शुभ माना जाता है।
अनुष्ठान / वस्तु | ज्योतिषीय व आध्यात्मिक लाभ |
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स्कंद षष्ठी पर्व | बुराई पर अच्छाई की जीत का पर्व, बाधाओं, मंगल दोष और राहु-केतु दोष निवारक। |
मूलाधार चक्र साधना | मूलाधार के जागरण से आत्मबल, साहस व स्थिरता में वृद्धि। |
मूंगा रत्न एवं रुद्राक्ष | मंगल व कार्तिकेय के लिए शुभ, साहस, स्वास्थ्य और भाग्य संवर्द्धन में सहायक। |
शालिग्राम व मंगल यंत्र पूजा | ग्रहदोष शांति, स्थायी सुख-समृद्धि व दीर्घायु का उत्तम उपाय। |
ज्योतिष में यह माना जाता है कि कार्तिकेय की पूजा के साथ उपयुक्त रत्न, रुद्राक्ष और शालिग्राम का पूजन करने से निर्बाध उन्नति, मंगल दोष एवं अन्य ग्रहदोषों का स्थायी समाधान मिलता है।
तमिलनाडु में भगवान मुरुगन के रूप में कार्तिकेय को अरुपदैवेदु (छः पवित्र स्थानों) में विशेष श्रद्धा दी जाती है। हिमाचल में बैसाखी पर कार्तिकेय के जुलूस का उल्लास दिखता है। हर क्षेत्र में संस्करण अलग है, लेकिन केंद्र में है ऊर्जा, युद्ध कौशल और प्रमाणिक भक्ति।
भगवान कार्तिकेय और मंगल ग्रह की साधना, कर्मयोगियों, राजनेताओं, योद्धाओं, निर्माताओं और मार्गदर्शकों के लिए हमेशा प्रेरणास्थान रही है। इनके मंत्र, पूजा और साधना कठिन समय में भी आशा, शक्ति, स्वास्थ्य और उद्देश्य का प्रकाश देती है। कार्तिकेय के प्रतीक, मंगल का तेज और दोनों की युगल आराधना जीवन को विजय, आत्मविश्वास, साहस तथा सफलता की ओर ले जाती है।
अनुभव: 27
इनसे पूछें: विवाह, करियर, संपत्ति
इनके क्लाइंट: छ.ग., म.प्र., दि., ओडि
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