By अपर्णा पाटनी
चंद्रमा की ज्योतिषीय, पौराणिक, खगोलिक भूमिकाओं और व्यावहारिक प्रभावों का विस्तृत, संरचित विश्लेषण
चंद्रमा सूर्य के बाद नौ ग्रहों में दूसरा है, फिर भी मन, भावनाओं और दैनिक अनुभवों पर इसका प्रभाव सबसे निकट और त्वरित माना जाता है। वैदिक परंपरा में यही ग्रह मन, माता, मानसिक संतुलन, सुख शांति, यात्रा, धन संपत्ति, रक्त, बायीं आंख और वक्ष का संकेतक माना जाता है। कर्क राशि तथा रोहिणी, हस्त और श्रवण नक्षत्र इसका अधिपत्य क्षेत्र हैं। आकार में छोटा होते हुए भी इसकी गति तीव्र है, लगभग सवा दो दिन में यह एक राशि से दूसरी राशि में जाता है, इसलिए विंशोत्तरी, योगिनी और अष्टोत्तरी जैसी दशाएं इसी की गति पर आधारित हैं। जन्म के समय जिस राशि में चंद्रमा स्थित हो वही चंद्र राशि कहलाती है, जो राशिफल का आधार बनती है। परंपरागत मान्यताओं में चंद्र को शुभ, सौम्य और शीतल प्रकृति वाला स्त्री ग्रह माना गया है।
लग्न में चंद्रमा सौंदर्य, आकर्षण, साहस और सिद्धांतप्रियता बढ़ाता है। यात्रा में रुचि, प्रबल कल्पनाशीलता और भावनात्मक संवेदनशीलता दिखती है। आर्थिक जीवन में धन संचय अपेक्षाकृत चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
जब चंद्रमा बलवान हो तो मानसिक शांति, सृजनात्मकता और माता से मधुर संबंध मिलते हैं। माता का स्वास्थ्य प्रायः अच्छा रहता है और पारिवारिक वातावरण संतुलित रहता है।
पीड़ित स्थिति मानसिक पीड़ा, स्मृति क्षीणता और माता के स्वास्थ्य में बाधा का कारण बन सकती है। घर में जल की कमी जैसे संकेत दिख सकते हैं और चरम अवस्था में आत्मघाती प्रवृत्ति तक उभर सकती है।
क्रूर या पाप ग्रहों से पीड़ित चंद्रमा मस्तिष्क पीड़ा, सिरदर्द, तनाव, अवसाद, भय, दमा, रक्त विकार, मिर्गी, पागलपन या बेहोशी जैसी स्थितियां उत्पन्न कर सकता है।
रसदार फल सब्जियां, गन्ना, शकरकंद, केसर, मक्का, चांदी, मोती और कपूर इस ग्रह के प्रभाव क्षेत्र में आते हैं।
हिल स्टेशन, जल स्रोत, टंकियां, कुएं, वन क्षेत्र, डेयरी, तबेला और शीतल स्थान चंद्र संकेत माने जाते हैं।
कुत्ता, बिल्ली, सफेद चूहा, बत्तख, कछुआ और मछली चंद्र से जुड़े हैं।
जड़: खिरनी
रत्न: मोती
रुद्राक्ष: दो मुखी रुद्राक्ष
यंत्र: चंद्र यंत्र
रंग: सफेद
सोमवार का व्रत धारण करना और चंद्र मंत्रों का जप शुभ माना जाता है।
ॐ इमं देवा असपत्नं सुवध्यं महते क्षत्राय महते ज्यैष्ठ्याय महते जानराज्यायेन्द्रस्येन्द्रियाय।
इमममुष्य पुत्रममुष्यै पुत्रमस्यै विश एष वोअमी राजा सोमोअस्माकं ब्राह्मणानां राजा।।
ॐ सों सोमाय नमः
ॐ श्रां श्रीं श्रौं सः चंद्रमसे नमः
खगोल शास्त्र में चंद्रमा पृथ्वी का उपग्रह है। इसकी गुरुत्वाकर्षण शक्ति से ज्वार भाटा बनते हैं। सूर्य के बाद आकाश में सबसे अधिक प्रकाश देने वाला पिंड यही है। जब चंद्र सूर्य और पृथ्वी के बीच आता है तो सूर्य ग्रहण घटित होता है।
सनातन परंपरा में चंद्र देव जल तत्व के अधिष्ठाता माने गए हैं और भगवान शिव के मस्तक का अलंकरण भी। सोमवार को इनकी पूजा का विशेष महत्त्व है। कथाओं में इन्हें महर्षि अत्रि और माता अनुसूया का पुत्र तथा सोलह कलाओं से युक्त बताया गया है।
चंद्र के पृथ्वी के निकट आने से समुद्र में उच्च और निम्न ज्वार बनते हैं। परंपरागत ज्योतिष मानता है कि मानवीय भावनाएं और मनोदशा पर भी चंद्र चरणों का प्रभाव पड़ता है।
अनुभवजन्य परंपरा के अनुसार चंद्रमा विचार प्रवाह का बड़ा भाग प्रभावित करता है। जन्म कुंडली में इसकी स्थिति जीवन के अनेक निर्णयों और अनुभवों को दिशा देती है। बृहस्पति संग इसका योग समृद्धि का सूचक माना जाता है।
चंद्र को प्राकृतिक शुभ ग्रह माना गया है। कई आचार्य चंद्र लग्न से फलित करते हैं, इसलिए चंद्र लग्न आधारित विश्लेषण प्रचलित है। सूर्य को ग्रहाधिपति राजा और चंद्र को रानी माना गया है। चंद्र कर्क के स्वामी हैं और गणना में प्रायः कर्क से दक्षिणावर्त क्रम में बुध, शुक्र, मंगल, बृहस्पति, शनि की स्थिति चिह्नित की जाती है। चंद्र की स्थिति बाह्य जगत के प्रति हमारी सोच और प्रतिक्रिया का ढांचा निर्धारित करती है। अनुकूल स्थिति सुख, उत्साह, शांति, संतुष्टि का द्योतक है, प्रतिकूलता तनाव और चिंता का संकेत देती है। स्त्रैण करुणा, पोषण और प्रेम के गुण इसी से जुड़े हैं। रात्रि जन्म वालों में यह आंतरिक शक्ति को और प्रबल करता है। अन्य ग्रहों के साथ युति में चंद्र उनके गुण उभारता है, जैसे मंगल के दस अंश निकट होने पर साहस, आवेग और सरलता बढ़ती है।
बारह भाव जीवन के अलग क्षेत्रों का द्योतक हैं। जहां जहां चंद्र स्थित हो, वहां भावनात्मक संतुष्टि, गहरा लगाव और अंतरात्मा की दिशा प्रकट होती है।
स्थिति | राशि और अंश | प्रमुख प्रभाव |
---|---|---|
उच्च | वृषभ में 3 अंश तक | रचनात्मकता, समृद्धि, सामाजिक आदर |
नीच | वृश्चिक में 0 से 3 अंश | मानसिक तनाव, दुविधा, पारिवारिक मतभेद |
विशेषता | विवरण |
---|---|
दिन | सोमवार |
रंग | सफेद |
दिशा | उत्तर पश्चिम |
कारक | मां |
एक राशि में रहने का औसत समय | लगभग 2.25 दिन |
संपूर्ण राशि चक्र की परिक्रमा | लगभग 27 दिन |
नक्षत्र अधिपति | रोहिणी, हस्त, श्रवण |
प्रवृत्ति | कोमल और शांतिपूर्ण |
अनुकूल ग्रह | मंगल, बृहस्पति, चंद्र |
शत्रु ग्रह | शनि, राहु, केतु |
सामान्य ग्रह | बुध |
स्वयं की राशि | कर्क |
मूल त्रिकोण | वृषभ |
उच्च | वृषभ |
नीच | वृश्चिक |
धातु | चांदी |
विशेष लक्षण | सुंदर गोल चेहरा |
मणि | मोती |
विम्शोत्तरी महादशा | 10 वर्ष |
शरीर में संकेत | हृदय, द्रव, आंखें, फेफड़े |
प्रतिनिधित्व | मां |
संभावित रोग | टीबी, खांसी, सर्दी, दृष्टि क्षीणता, तनाव, हृदय और श्वसन विकार, अवसाद |
लाभ | समृद्धि, बुद्धि, कल्पना, सहज क्षमता |
हानियां | अहंकार, ईर्ष्या, उदासीनता |
चंद्र सुनफा, दुरुधरा और गज केसरी जैसे बलवर्धक योग बनाता है। जबकि केमद्रुम योग अशुभ फल का कारण माना गया है।
अनुभव: 15
इनसे पूछें: पारिवारिक मामले, मुहूर्त
इनके क्लाइंट: म.प्र., दि.
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