By पं. सुव्रत शर्मा
जानिए कुंडली और बारह भाव के माध्यम से जीवन, स्वभाव, ग्रहों, योग-दोष और भविष्यवाणी की सूक्ष्म वैदिक दृष्टि
वैदिक ज्योतिष में कुंडली को जन्म के समय व्यक्ति के जीवन का आकाशीय मानचित्र कहा गया है। जब किसी बालक का जन्म होता है, उस समय आकाश में ग्रह-नक्षत्र जिस स्थिति में होते हैं, उसी स्थिति को गणनाओं के माध्यम से कुंडली के रूप में प्रदर्शित किया जाता है। यह चार्ट वैदिक गणित, खगोल विज्ञान और ज्योतिषीय अनुभव का परिणाम होता है।
कुंडली केवल भविष्यवाणी का साधन नहीं, बल्कि यह एक जीवनदर्शी उपकरण है जो व्यक्ति के स्वास्थ्य, स्वभाव, संबंध, व्यवसाय, विवाह, संतान, आध्यात्मिक झुकाव और मृत्यु तक को संकेतित करता है।
कुंडली एक ज्योतिषीय चार्ट है, जिसे व्यक्ति के जन्म की तिथि, समय और स्थान के आधार पर तैयार किया जाता है। इसमें आकाश को 12 बराबर भागों (भावों) में बाँटा जाता है, जिन्हें हाउस या भाव कहा जाता है। हर भाव जीवन के किसी विशेष क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करता है - जैसे स्वास्थ्य, धन, शिक्षा, संबंध, करियर, विवाह आदि।
कुंडली में सभी ग्रह (सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि, राहु, केतु) और 12 राशियाँ (मेष से मीन) उनके वास्तविक खगोलीय स्थान के अनुसार इन भावों में स्थित किए जाते हैं। यह स्थिति जन्म के समय आकाश में ग्रहों की वास्तविक स्थिति के आधार पर होती है।
कुंडली बनाने के लिए निम्नलिखित तीन मुख्य जानकारियाँ आवश्यक हैं:
इन जानकारियों के आधार पर उस समय आकाश में ग्रहों और राशियों की स्थिति का निर्धारण किया जाता है। कुंडली का सबसे पहला भाव लग्न कहलाता है, जो जन्म के समय पूर्व दिशा में उग रही राशि होती है। उदाहरण के लिए, यदि जन्म के समय पूर्व दिशा में सिंह (Leo) राशि थी, तो कुंडली का पहला भाव सिंह होगा। इसके बाद क्रमशः अन्य राशियाँ 12 भावों में स्थापित की जाती हैं।
ग्रहों की स्थिति को जानने के लिए एफेमेरिस (Ephemeris) का उपयोग किया जाता है, जिसमें हर दिन के लिए ग्रहों की सटीक स्थिति दर्ज होती है। इसी आधार पर सभी ग्रहों को उनके वास्तविक भाव और राशि में स्थापित किया जाता है।
कुंडली बनाने में सबसे पहला और आवश्यक उपकरण है पंचांग। पंचांग एक वैदिक कालगणना प्रणाली है जिसमें समय का सूक्ष्म और खगोलीय विश्लेषण होता है।
इन पाँच तत्वों के आधार पर ही जन्म की वैदिक कुंडली तैयार की जाती है।
राशियाँ (Zodiac signs) खगोलीय पथ के 12 खंड हैं, जो 360 अंशों में बाँटे जाते हैं। प्रत्येक राशि 30 अंश की होती है। इन 12 राशियों को जन्म समय पर पृथ्वी की पूर्व दिशा से शुरू करते हुए एक विशेष क्रम में 12 भावों (houses) में रखा जाता है।
भाव क्रम | भाव का नाम | प्रतिनिधित्व करता है |
---|---|---|
1 | लग्न / तनु भाव | शरीर, स्वभाव, व्यक्तित्व, आत्मबल |
2 | धन भाव | धन, वाणी, कुटुम्ब, संग्रह क्षमता |
3 | पराक्रम भाव | साहस, भाई-बहन, लेखन, प्रयास |
4 | सुख भाव | माता, संपत्ति, वाहन, मानसिक शांति |
5 | संतान भाव | संतान, विद्या, प्रेम, रचनात्मकता |
6 | ऋण-शत्रु भाव | रोग, शत्रु, संघर्ष, सेवा |
7 | विवाह भाव | विवाह, साझेदारी, यौन जीवन |
8 | आयु भाव | आयु, मृत्यु, गूढ़ विषय, गोपनीयता |
9 | भाग्य भाव | धर्म, गुरु, भाग्य, तीर्थयात्रा |
10 | कर्म भाव | कार्यक्षेत्र, प्रतिष्ठा, यश |
11 | लाभ भाव | लाभ, इच्छा पूर्ति, मित्र |
12 | व्यय भाव | हानि, खर्च, मोक्ष, विदेश यात्रा |
कुंडली का विश्लेषण करते समय निम्नलिखित बिंदुओं पर ध्यान दिया जाता है:
लग्न (Ascendant) वह राशि होती है जो व्यक्ति के जन्म समय पर पूर्व दिशा में उदित हो रही होती है। यह पूरी कुंडली का आधार होता है। उसी से तय होता है कि कौन-सी राशि किस भाव में आएगी और कौन-से ग्रह कहां स्थित होंगे।
उदाहरण: जन्म समय पर सिंह राशि (Leo) पूर्व दिशा में उदित हो रही हो, तो कुंडली का प्रथम भाव सिंह राशि का हो जाएगा और उसके बाद क्रमशः कन्या (2nd), तुला (3rd), वृश्चिक (4th), आदि राशियाँ भावों में स्थान लेती हैं।
ग्रहों को सूर्य सिद्धांत या लैपटॉप सॉफ़्टवेयर से निकाली गई सटीक स्थिति के अनुसार संबंधित भावों में डाला जाता है।
कुंडली के केंद्र में 9 ग्रहों की उपस्थिति होती है:
ग्रहों की स्थिति, दृष्टि, युति और गोचर सभी कुंडली में उनके फल को निश्चित करते हैं।
कुंडली केवल एक चार्ट नहीं, बल्कि वैदिक परंपरा का एक गूढ़ विज्ञान है। यह किसी भी व्यक्ति की प्रकृति, क्षमता, सीमाएं और संभावनाएं पहचानने का उपकरण है। यदि इसे सही समझा और विश्लेषण किया जाए, तो यह जीवन की जटिलताओं में स्पष्ट दिशा दे सकता है। इसलिए कुंडली को हमेशा योग्य, अनुभवी और वैदिक ज्योतिष में पारंगत पंडित द्वारा ही बनवाना और समझना चाहिए।
अनुभव: 27
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