By पं. नरेंद्र शर्मा
जानिए मूल दोष की संपूर्ण अवधारणा, विभिन्न नक्षत्रों का प्रभाव, व्यवहारिक उपाय और वैदिक दृष्टिकोण में इसका वास्तविक महत्व
भारतीय वैदिक ज्योतिष केवल ग्रह-नक्षत्रों की गणना नहीं, बल्कि जीवन की सूक्ष्मतम शक्तियों का दर्शन है। इसमें पंचांग (तिथि, वार, नक्षत्र, योग, करण) जीवन के शुभ-अशुभ, ऋतुओं की गति और मानवीय कर्मों की दिशा तय करने वाला दिव्य उपकरण है। पंचांग के इन पाँच अंगों में नक्षत्र का स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि चंद्रमा की स्थिति जिस नक्षत्र में हो, वही जातक के चित्त, स्वभाव और प्रारब्ध को दर्शाता है।
‘मूल’ का शाब्दिक अर्थ है - मूलाधार, जड़, मूल स्रोत। वैदिक मान्यताओं में कुछ विशेष नक्षत्रों को मूल नक्षत्र माना गया है, जिनमें जन्म लेना सामान्यतः शुभ नहीं माना जाता। इन नक्षत्रों को जन्म के समय मूल दोष की स्थिति माना जाता है।
मूल दोष के अंतर्गत आने वाले नक्षत्र हैं:
इनमें से विशेषतः आश्लेषा, ज्येष्ठा और मूल नक्षत्र को तीव्र अशुभ प्रभावों के लिए जाना जाता है।
वैदिक काल से ही यह माना गया है कि मूल दोष वाला जन्म यदि विशेष परिस्थितियों में हो - जैसे मूल स्थान पर पृथ्वी में, या लग्न व मास दोनों के अनुसार अशुभ स्थिति में - तो यह जातक के जीवन में या उसके परिवार के सदस्यों के लिए कष्टप्रद हो सकता है। विशेष रूप से माता-पिता पर इसका प्रभाव गहरा होता है।
स्थान | महीने |
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स्वर्ग (Heaven) | आषाढ़, भाद्रपद, माघ, आश्विन |
पृथ्वी (Earth) | चैत्र, कार्तिक, श्रावण, पौष |
जल के नीचे (Below Water) | वैशाख, ज्येष्ठ, फाल्गुन, मार्गशीर्ष |
यदि जातक का जन्म ऐसे मास में हो जब मूल पृथ्वी पर होता है, तो वह स्थिति अत्यंत अशुभ मानी जाती है।
स्थान | लग्न |
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स्वर्ग | वृष, सिंह, वृश्चिक, कुम्भ |
पृथ्वी | मिथुन, कन्या, धनु, मीन |
जल के नीचे | मेष, कर्क, तुला, मकर |
यदि किसी व्यक्ति का जन्म उन मासों और लग्नों में हो जहां मूल की स्थिति पृथ्वी पर हो, तो मूल दोष पूर्ण फलदायक होता है।
- प्रथम चरण: पिता को कष्ट; स्वास्थ्य या धन की हानि।
→ विशेषकर जन्म के बाद पिता को नौकरी, स्वास्थ्य या पारिवारिक जिम्मेदारियों में असंतुलन हो सकता है।
- द्वितीय चरण: सुखी जीवन, ऐश्वर्य और सौभाग्य।
→ जातक में आत्मविश्वास, स्वावलंबन और तीव्र निर्णय क्षमता देखने को मिलती है।
- तृतीय चरण: उच्च पद प्राप्ति, शासन या नेतृत्व की भूमिका।
→ राजयोग के संकेत मिलते हैं। प्रशासनिक क्षेत्र में सफलता मिल सकती है।
- चतुर्थ चरण: सम्माननीय और समाज में प्रतिष्ठित व्यक्तित्व।
→ यह चरण लेखक, वक्ता, या चिकित्सक के रूप में प्रतिष्ठा देता है।
- प्रथम चरण: माता को मानसिक और शारीरिक कष्ट।
→ जातक के जन्म के तुरंत बाद माता को बीमारियाँ या मानसिक तनाव हो सकता है।
- द्वितीय चरण: पिता की आर्थिक कठिनाई।
→ व्यवसाय या नौकरी में रुकावट, कर्ज या पैतृक संपत्ति के विवाद हो सकते हैं।
- तृतीय चरण: जातक स्वयं सुखी और संतुष्ट।
→ यदि बुद्घि का सदुपयोग हो, तो जातक जीवन में स्थिरता पा सकता है।
- चतुर्थ चरण: भाग्यशाली, संपन्न, परोपकारी।
→ यह चरण जीवन में धार्मिकता, दान और आध्यात्मिक सेवा की ओर प्रवृत्त करता है।
- प्रथम चरण: पूर्वजों से समस्याएं।
→ पितृ दोष की संभावना, या कुल में किए कर्मों का प्रभाव जातक पर दिखता है।
- द्वितीय चरण: पारिवारिक संबंधों में संघर्ष।
→ विशेषतः माता-पिता से वैचारिक मतभेद या भावनात्मक दूरी हो सकती है।
- तृतीय चरण: साहसी, लेकिन आत्ममुग्ध।
→ जातक लीडर बनता है, पर आत्मकेन्द्रित व्यवहार उसका नुकसान करता है।
- चतुर्थ चरण: नेतृत्व क्षमता, लेकिन अत्यधिक अहंकार।
→ समाज में बड़ा स्थान प्राप्त कर सकता है, पर विनम्रता का अभाव रहता है।
- प्रथम चरण: बहनों को कष्ट।
→ बहनों के विवाह, स्वास्थ्य या जीवन में उतार-चढ़ाव संभव।
- द्वितीय चरण: मानसिक द्वंद्व, आत्म-आलोचना।
→ जातक अक्सर अपने निर्णयों पर संदेह करता है और अकेलेपन से ग्रसित रहता है।
- तृतीय चरण: रहस्यमयी जीवन, पर छवि आकर्षक।
→ यह चरण गुप्त विद्याओं, राजनीति या कला से जोड़ सकता है।
- चतुर्थ चरण: साधन-संपन्न, पर अशांति बनी रहती है।
→ बाहर से सम्पन्नता और यश, पर भीतर बेचैनी या पारिवारिक अशांति।
- प्रथम चरण: पिता को कष्टदायक स्थितियाँ।
→ मृत्यु, बीमारी, या पिता-पुत्र संबंधों में कटुता हो सकती है।
- द्वितीय चरण: जातक बलवान, पर हिंसक प्रवृत्ति।
→ यदि संयम न हो तो जातक विनाशकारी निर्णय ले सकता है।
- तृतीय चरण: आध्यात्मिक झुकाव, सन्यास योग।
→ जीवन में बड़े मोड़, त्याग और तपस्या का मार्ग प्रशस्त होता है।
- चतुर्थ चरण: संतुलित जीवन, लेकिन मन की बेचैनी।
→ सामाजिक स्थिरता प्राप्त करता है, पर मानसिक शांति खोजता रहता है।
- प्रथम चरण: मानसिक स्थिरता की कमी।
→ चंचल मन, बार-बार लक्ष्य बदलना, दिशा भ्रम।
- द्वितीय चरण: धन के मामले में संघर्ष।
→ प्रयास अधिक, फल धीमा या देर से।
- तृतीय चरण: साहित्य, शिक्षा, संगीत से जुड़ाव।
→ कल्पनाशीलता, काव्य प्रतिभा और कलात्मक क्षमता प्रबल।
- चतुर्थ चरण: धार्मिक प्रवृत्ति, दानशीलता।
→ आध्यात्मिक चेतना प्रबल, जीवन सेवा और परमार्थ में लग सकता है।
हां। वैदिक शास्त्रों में मूल शांति पूजा और जन्म नक्षत्र की शांति क्रिया जैसे उपाय बताए गए हैं, जो जन्म के कुछ समय बाद ही करवा लेने चाहिए। विशेषकर जन्म के 27वें दिन मूल शांति की परंपरा अधिक प्रभावी मानी जाती है।
इसके अलावा:
इन उपायों से मूल दोष के प्रभावों को काफी हद तक शांत किया जा सकता है।
मूल दोष को केवल नकारात्मक दृष्टिकोण से देखना अज्ञानता है। प्रत्येक ग्रह और नक्षत्र का प्रभाव हमें हमारे कर्मों की दिशा दिखाने हेतु होता है, ना कि भाग्य का बंद दरवाज़ा। वैदिक ज्योतिष एक चेतावनी प्रणाली है - जो समय रहते हमें सजग करती है। “नक्षत्रों का दोष कर्म से कट सकता है, पर अज्ञान से नहीं।”
अनुभव: 32
इनसे पूछें: जीवन, करियर, स्वास्थ्य
इनके क्लाइंट: छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश
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