By पं. नीलेश शर्मा
जानिए वह रहस्यमयी कारण, जिसकी वजह से पुरी के जगन्नाथ मंदिर में समुद्र की आवाज नहीं सुनाई देती
पुरी का जगन्नाथ मंदिर न केवल अपनी भव्यता, बल्कि अपने रहस्यों के लिए भी प्रसिद्ध है। इनमें से एक अनोखा रहस्य है-मंदिर परिसर में समुद्र की आवाज़ का न सुनाई देना, जबकि मंदिर से कुछ कदम दूर चलने पर लहरों का शोर स्पष्ट सुनाई देता है। इसके पीछे भगवान हनुमान की एक ऐसी जुगत छिपी है, जो वैदिक आस्था, प्रकृति के नियमों और दिव्य सामंजस्य का अद्भुत उदाहरण है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार भगवान जगन्नाथ समुद्र के तट पर विराजमान होकर भी निश्चिंत निद्रा नहीं ले पा रहे थे। समुद्र की लहरों का निरंतर गर्जन उनकी नींद में विघ्न डाल रहा था। तब उन्होंने अपने परम भक्त हनुमान जी को यह समस्या सुलझाने का आदेश दिया।
हनुमान जी ने सबसे पहले समुद्र देवता से निवेदन किया, "हे सागर! अपनी लहरों का शोर कम करो, ताकि प्रभु विश्राम कर सकें।"
समुद्र ने उत्तर दिया, "मेरा स्वभाव ही गतिशीलता है। मैं शांत नहीं रह सकता, किंतु यदि पवन देव विपरीत दिशा में बहें, तो मेरी आवाज मंदिर तक नहीं पहुँचेगी।"
हनुमान जी ने अपने पिता पवन देव का आह्वान किया और उनसे प्रार्थना की, "हे वायुदेव! कृपया मंदिर के चारों ओर एक ऐसा चक्र बनाएँ, जो समुद्र की ध्वनि को अंदर आने से रोक सके।"
पवन देव ने कहा, "मैं स्वयं दिशा नहीं बदल सकता, किंतु तुम अपनी गति से एक वायु अवरोध बना सकते हो।"
तब हनुमान जी ने मंदिर के चारों ओर इतनी तीव्र गति से परिक्रमा की कि एक शक्तिशाली वायु चक्र निर्मित हो गया। इस चक्र ने समुद्र की ध्वनि तरंगों को मंदिर के बाहर ही रोक दिया। परिणामस्वरूप, भगवान जगन्नाथ को निश्चिंत निद्रा मिली।
यह कथा सिखाती है कि वैदिक सिद्धांतों में प्रकृति और देवताओं का संबंध अटूट है। हनुमान जी ने न तो समुद्र से लड़ाई की, न ही पवन देव पर दबाव डाला। उन्होंने प्रकृति के नियमों का उपयोग करके समाधान निकाला, जो आज भी विज्ञान के लिए एक पहेली है।
जगन्नाथ रथ यात्रा के दौरान यह कथा विशेष रूप से प्रासंगिक होती है।
आज भी, जगन्नाथ मंदिर के गर्भगृह में प्रवेश करते ही समुद्र का शोर पूरी तरह गायब हो जाता है। वैज्ञानिक इसे ध्वनि विज्ञान का चमत्कार मानते हैं, किंतु भक्तों के लिए यह हनुमान जी की भक्ति और बुद्धिमत्ता का प्रमाण है।
यह कथा हर भक्त को सिखाती है कि ईश्वर की कृपा पाने के लिए भक्ति के साथ बुद्धि का होना आवश्यक है। हनुमान जी ने न केवल शक्ति, बल्कि विवेक से कार्य किया। आज भी, यह रहस्य हमें याद दिलाता है कि प्रकृति और देवता सदैव साथ हैं-बस हमें उनके संकेतों को समझना होगा।
जगन्नाथ मंदिर का यह रहस्य केवल एक चमत्कार नहीं, बल्कि वैदिक सनातन परंपरा की गहराई को दर्शाता है। यहाँ आने वाला हर भक्त अनुभव करता है कि "मन चंगा तो कठौती में गंगा"-भक्ति और विश्वास से हर असंभव संभव हो जाता है।
अनुभव: 25
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