By पं. नीलेश शर्मा
श्रीकृष्ण के जन्म की यह कथा पुष्य नक्षत्र को सौभाग्य और शुभता का प्रतीक बनाती है
भारतीय संस्कृति में पुष्य नक्षत्र को अत्यंत शुभ और दिव्य माना गया है। इसी नक्षत्र से जुड़ी एक अद्भुत और रोमांचक कथा है भगवान श्रीकृष्ण के जन्म की, जो हर पाठक के मन को छू जाती है। यह कहानी न केवल ज्योतिषीय दृष्टि से, बल्कि मानवीय भावनाओं, संघर्ष और विजय के संदेश के लिए भी अमूल्य है।
द्वापर युग में मथुरा नगरी पर भोजवंशी राजा उग्रसेन का शासन था। उनके पुत्र कंस ने सत्ता के लोभ में अपने ही पिता को बंदी बना लिया और स्वयं राजा बन बैठा। कंस अपनी बहन देवकी से अत्यंत प्रेम करता था। देवकी का विवाह वसुदेव से हुआ। विवाह के समय आकाशवाणी हुई कि देवकी की आठवीं संतान कंस के विनाश का कारण बनेगी। यह सुनकर कंस ने देवकी और वसुदेव को कारागार में डाल दिया और उनकी हर संतान को जन्म लेते ही मार डाला.
भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि, आधी रात का समय, घनघोर अंधकार और मथुरा का कारागार-यही वह क्षण था जब देवकी की आठवीं संतान के रूप में भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ। उस समय चंद्रमा अपनी प्रिय रोहिणी नक्षत्र में था, जिससे वातावरण में दिव्यता और शुभता का संचार हो गया। जैसे ही श्रीकृष्ण का जन्म हुआ, कारागार में प्रकाश फैल गया, हथकड़ियाँ अपने आप खुल गईं और पहरेदार गहरी नींद में सो गए.
भगवान विष्णु ने वसुदेव को आदेश दिया कि वे नवजात श्रीकृष्ण को गोकुल में नंद-यशोदा के घर पहुँचा दें और वहाँ से उनकी नवजात कन्या को लेकर लौट आएँ। वसुदेव ने श्रीकृष्ण को टोकरी में रखा और घनघोर बारिश के बीच यमुना नदी पार की। यमुना ने श्रीकृष्ण के चरणों को छूने के लिए अपना जल बढ़ाया, लेकिन जैसे ही वसुदेव ने बालक के चरण जल में डाले, यमुना शांत हो गई। वसुदेव सकुशल गोकुल पहुँचे, श्रीकृष्ण को यशोदा के पास सुलाया और उनकी कन्या को लेकर मथुरा लौट आए.
कंस को जैसे ही आठवीं संतान के जन्म की सूचना मिली, वह कारागार में पहुँचा और कन्या को मारने के लिए जैसे ही पृथ्वी पर पटका, वह कन्या आकाश में उड़ गई और देवी रूप में प्रकट होकर बोली-"हे कंस! तुझे मारने वाला वृंदावन पहुँच चुका है।" यह कन्या स्वयं योगमाया थीं.
गोकुल में नंद-यशोदा ने श्रीकृष्ण का पालन-पोषण किया। कंस ने कई बार श्रीकृष्ण को मारने की कोशिश की, लेकिन हर बार असफल रहा। अंततः श्रीकृष्ण ने मथुरा आकर कंस का वध किया और अपने नाना उग्रसेन को पुनः राजगद्दी दिलाई.
यह कथा केवल एक धार्मिक कहानी नहीं, बल्कि जीवन के हर संघर्ष में आशा, विश्वास और शुभता का संदेश है। अगर आपको यह कथा प्रेरक और रोचक लगी हो, तो इसे अपने मित्रों और परिवार के साथ जरूर साझा करें-क्योंकि शुभता और सौभाग्य जितना बांटेंगे, जीवन उतना ही सुंदर और सफल बनेगा। पुष्य नक्षत्र - जहां हर शुभारंभ में छुपा है श्रीकृष्ण जैसा सौभाग्य और दिव्यता का आशीर्वाद।
अनुभव: 25
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