By पं. अमिताभ शर्मा
मिथिला की लोकपरंपरा जहाँ भय नहीं बल्कि श्रद्धा और उत्सव से चंद्र का स्वागत होता है
भादो मास की चतुर्थी की रात जब भारत के कई हिस्सों में लोग आकाश की ओर देखने से भी डरते हैं, उसी रात मिथिला की चौपालें चाँदनी से जगमगाती हैं। घरों में गूँजते मंगल गीत, रसोई से आती खीर और पूड़ी की खुशबू और आंगन में रंगे अरीपन - सब मिलकर एक ऐसा दृश्य रचते हैं जिसे देखकर कोई भी मंत्रमुग्ध हो जाए। यही है चौरचन, मिथिला का अद्वितीय पर्व, जो वर्ष 2025 में 27 अगस्त को मनाया जाएगा।
इस पर्व का जादू रसोई से शुरू होता है। सुबह से ही घरों में पकवान बनने लगते हैं - दूध से महकती खीर, सुनहरी पूड़ियाँ, मौसमी फल और स्थानीय व्यंजन। पड़ोसी घरों में थालियाँ एक-दूसरे को भेजी जाती हैं ताकि किसी का भी स्वाद अधूरा न रह जाए। यह दिन केवल उपवास का नहीं बल्कि साझेदारी और मिलन का उत्सव है।
जैसे ही सूर्य ढलता है, घर-घर के आंगन एक कला दीर्घा बन जाते हैं। गेरू और चावल के घोल से बनाए गए अरीपन धरती को पवित्र कर देते हैं। दीयों की पंक्ति, बच्चों की खिलखिलाहट और स्त्रियों के गीत वातावरण को मोहक बना देते हैं। और फिर क्षितिज पर जैसे ही चाँद निकलता है, हर घर का परिवार थालियाँ सजाकर चंद्र को अर्घ्य देने बाहर आता है।
कथा कहती है कि एक बार गणेश जी पर चंद्र ने व्यंग्य किया था। गणेश ने क्रोधित होकर उसे श्राप दिया कि भादो चतुर्थी की रात जो भी चाँद देखेगा उस पर झूठे आरोप लगेंगे। इसी श्राप के कारण श्रीकृष्ण पर भी स्यमंतक मणि चोरी का आरोप लगा।
लेकिन मिथिला ने इस श्राप को अलग रूप दिया। यहाँ मान्यता है कि दोष से डरना नहीं चाहिए, बल्कि श्रद्धा से उसे पूजा में बदलना चाहिए। इसलिए जहाँ अन्य लोग चाँद से दृष्टि चुराते हैं, वहीं मिथिला उसे शीतलता और कल्याण का प्रतीक मानकर अर्घ्य अर्पित करता है।
लोककथाओं में राजा हेमांगद ठाकुर का नाम आता है। कहा जाता है कि सोलहवीं शताब्दी में उनकी पत्नी हेमलता ने “कलंकित चंद्र” को देखकर सार्वजनिक पूजा का संकल्प लिया। उनके इस निर्णय से सामुदायिक परंपरा बनी और चौरचन का आरंभ हुआ। तब से यह पर्व केवल धार्मिक नहीं बल्कि मिथिला की अस्मिता और सांस्कृतिक गौरव का प्रतीक माना जाता है।
सामग्री | उपयोग |
---|---|
अरीपन के लिए गेरू और चावल का घोल | आंगन सजाने हेतु |
जल, दूध, पुष्प, दीप | चंद्र अर्घ्य के लिए |
खीर, पूड़ी, फल | प्रसाद के लिए |
स्वच्छ थालियाँ और टोकरियाँ | पड़ोसियों संग बाँटने हेतु |
जब दुनिया आँखें फेर लेती है, मिथिला गर्व से चाँद को देखता है। यह केवल पूजा नहीं बल्कि एक घोषणा है - हम अपने लोक, अपनी संस्कृति और अपने विश्वास के साथ खड़े हैं। यह त्योहार परिवार को जोड़ता है, पड़ोस को करीब लाता है और हर आंगन को चाँदनी की तरह पवित्र कर देता है।
प्रश्न 1: चौरचन का गणेश चतुर्थी से क्या संबंध है?
उत्तर: दोनों एक ही चतुर्थी तिथि पर पड़ते हैं। जहाँ अन्य स्थानों पर चंद्र दर्शन वर्जित है, वहीं मिथिला चंद्र को पूजता है।
प्रश्न 2: क्या इस दिन उपवास रखना जरूरी है?
उत्तर: परिवार की परंपरा के अनुसार कई लोग दिनभर हल्का उपवास रखते हैं और चंद्र अर्घ्य के बाद प्रसाद ग्रहण करते हैं।
प्रश्न 3: अरीपन क्यों बनाए जाते हैं?
उत्तर: अरीपन भूमि की पवित्रता और ग्रह-नक्षत्रों के स्वागत का प्रतीक है। यह बच्चों को कला और परंपरा दोनों सिखाता है।
प्रश्न 4: क्या बाहर के लोग भी इस पर्व में भाग ले सकते हैं?
उत्तर: बिल्कुल। चौरचन समावेशी पर्व है। जो भी अतिथि आए उसे प्रसाद और सम्मान अवश्य दिया जाता है।
प्रश्न 5: चौरचन का मुख्य संदेश क्या है?
उत्तर: यह पर्व बताता है कि भय से नहीं, श्रद्धा और साझा उत्सव से जीवन को सुंदर बनाया जा सकता है।
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