By पं. अभिषेक शर्मा
जानिए कैसे गीता की उपदेशों से भय, असुरक्षा और थकावट को पार कर आंतरिक शक्ति बढ़ाई जा सकती है
जीवन में वह पल आता है-न तो नाटकीय, न कोई दिखावी-जब हम थक जाते हैं, प्रयास करना बंद कर देना चाहते हैं। यह थकावट सांस लेने जैसा होता है, जो हमें चुपचाप सदा के लिए रुकने का संकेत देता है। न कि आलस से, न उदासीनता से बल्कि हृदय के उस कोने से जो धीमे सुर में कहता है, "समझ नहीं आता अब और कब तक?" ऐसा समय न पूरी तरह टूटने जैसा होता है, न पूरी तरह जीवित रहने जैसा। यह केवल थकान नहीं, आत्मा की थकावट है, और तभी गीता आती है-ना शोर-शराबे के साथ, ना भव्य वादों के साथ, बल्कि शांति और दृष्टिकोण की तरह।
यह समझना कभी-कभी कठिन होता है। क्यों करें यदि परिणाम निश्चित नहीं? गीता हमें मोहभंग का रास्ता नहीं, बल्कि मुक्ति का तरीका बताती है। हम अक्सर 'आउटकम' के करीब ही अपने प्रयास का मोल लगाते हैं-जब परीक्षा में नंबर न आए, नौकरी न मिले, प्रेम का फल लाभ न हो। गीता हमें सिखाती है कि कर्म का फल पर निर्भर न रहें, कर्म करते रहें।
कल्पना करें, पूरी निष्ठा से अपना कार्य करते जा रहे हो, बिना उद्देश्य के चिंता के। संघर्ष में दिखाई देने वाली सफलता या सीमा की कोई गारंटी नहीं। गीता कहती है कि वैसा कर्म करो जो तुम्हारे लक्ष्य और अभिप्राय के अनुकूल हो, फल की चिंता किए बिना। कार्य से लगाव जब खो जाता है, तो सहज भाव से कर्म करो-यह असली निर्लिप्तता है।
अर्जुन, महायोद्धा, अपने कर्तव्य से घबराया लेकिन श्रीकृष्ण ने नाराज न होकर उसे सलाह दी-"तुम्हें केवल कर्तव्य करना है।" गीता में यह संदेश उलझनों से लड़ने, अनिश्चितता में भी आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है।
गीता कहती है, "स्थगित होना संभव है, निरंतरता से मत हटो।" विश्राम आवश्यक, पर स्थायी विफलता नहीं। संकल्प के साथ कार्य में पुनः प्रविष्टि ही विजय का मार्ग है।
क्रम संख्या | कदम | गीता में संदेश | व्यवहार में प्रयुक्ति |
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1 | आत्मकथन अनुभव | अपने भय व संदेह का सामना करना | ध्यान, स्वसंवाद, भय पर विजय पाना |
2 | तुलना से परहेज | "अपना कार्य करें, दूसरों से तुलनात्मक सोच न करें" | स्वयं का मापन स्थापित करना |
3 | कर्म पर ध्यान | "कर्म करो, फल की चिंता मत करो" (निष्काम कर्म) | कर्म में निहितता, फल से विमुक्तता |
4 | कमजोरी स्वीकारना | "असफलता स्वीकारों, कर्म में लगे रहो" | कमजोरियों को पहचान, उनसे हार ना मानना |
5 | स्वयं का साक्षी बनना | "सबका साक्षी देखो, नकारात्मक आत्म-आलोचना न करो" | न्यायपूर्ण स्वनिरीक्षण, स्थिरता का विकास |
गीता हमें बताती है कि जब हम पूरी दृढ़ता से कर्म करते हैं, फल की चिंता कम करते हैं, तो थकावट के बीच भी हमें स्थिर आत्मविश्वास मिलता है। एक स्थिर, शांत मन, जो भावनाओं व प्रतिक्रियाओं का साक्षी बने, वही सच्चा योद्धा है। जीवन की चुनौतीपूर्ण परिस्थिति में भी गीता का संदेश है-विपरीत हालातों में भी अपने पथ पर डटे रहो। इस लेख में प्रयुक्त सभी आध्यात्मिक निर्देश गीता के श्लोकों एवं उनके गूढ़ार्थों पर आधारित हैं। पाठकों को सलाह दी जाती है कि वे अपने ज्योतिषीय गणना तथा शुभ मुहूर्त की जांच विशेषज्ञों से अवश्य करवाएँ ताकि उनका कर्म फलसिद्ध हो।
अनुभव: 19
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