By पं. अमिताभ शर्मा
ब्रह्मा जी की पूजा न होने के पीछे सावित्री और शिव जी के श्राप तथा सरस्वती प्रसंग की कथाएँ
त्रिदेवों में से एक ब्रह्मा जी को सृष्टि का रचयिता माना गया है। कल्पना कीजिए, जिनके बिना सृष्टि ही अस्तित्व में न आती, वही देवता आज पूजा से वंचित हैं। शिव और विष्णु के मंदिर दुनिया भर में हैं, भक्त उनके नाम का स्मरण प्रतिदिन करते हैं, लेकिन ब्रह्मा जी का एकमात्र प्रसिद्ध मंदिर राजस्थान के पुष्कर में है। सवाल उठता है, ऐसा क्यों? इसके पीछे अनेक पौराणिक कथाएँ जुड़ी हैं जो रहस्य और सीख दोनों देती हैं।
कहानी है कि एक बार ब्रह्मा जी ने अग्नि यज्ञ का संकल्प लिया। यज्ञ के लिए स्थान की खोज करते हुए उनके हाथ से एक कमल का फूल गिरा। जहाँ वह पुष्प धरती पर गिरा, वहाँ तीन सरोवर बने - ब्रह्म, विष्णु और शिव पुष्कर। ब्रह्मा जी ने यहीं यज्ञ आरंभ करने का विचार किया।
यज्ञ में पत्नी की उपस्थिति अनिवार्य थी, इसलिए वे देवी सावित्री की प्रतीक्षा करने लगे। समय बीत रहा था और मुहूर्त निकलने का भय सामने था। ब्रह्मा जी ने जल्दबाजी में पास की ही एक कन्या से विवाह किया और उसे यज्ञ में सम्मिलित कर लिया।
जब सावित्री जी पहुँचीं और यह दृश्य देखा तो उनका क्रोध भड़क उठा। उन्होंने ब्रह्मा जी को श्राप दिया - “तुम भले ही जगत के रचयिता हो, परंतु तुम्हारी पूजा इस संसार में कहीं नहीं होगी।” यही कारण है कि पुष्कर को छोड़कर कहीं भी ब्रह्मा जी का मंदिर नहीं मिलता।
एक अन्य कथा में ब्रह्मा और विष्णु में श्रेष्ठता का विवाद हुआ। देवताओं ने युद्ध रोकने के लिए शिव जी से प्रार्थना की। शिव जी अग्नि स्तंभ का रूप लेकर उनके सामने प्रकट हुए और कहा - “जो इस स्तंभ का छोर खोज लेगा वही श्रेष्ठ कहलाएगा।”
विष्णु जी ने विनम्रता से स्वीकार किया कि वे छोर तक नहीं पहुँच सके। लेकिन ब्रह्मा जी ने छल का सहारा लिया। उन्होंने केतकी पुष्प से कहा कि वह झूठी गवाही दे दे कि ब्रह्मा जी छोर तक पहुँचे। फूल ने भी सहमति दे दी।
शिव जी प्रकट हुए और बोले - “ब्रह्मा, तुमने असत्य का सहारा लिया है। इसलिए तुम्हारी कहीं पूजा नहीं होगी।” इसी के साथ उन्होंने केतकी पुष्प को भी श्राप दिया कि वह किसी देव पूजन में स्वीकार्य नहीं होगा। आज तक शिवलिंग पर केतकी नहीं चढ़ाई जाती।
कथाओं में एक और प्रसंग आता है। देवी सरस्वती ब्रह्मा जी की पुत्री कही गई हैं। माना जाता है कि ब्रह्मा जी का उन पर अनुचित आकर्षण हुआ। यह धर्म मर्यादा का उल्लंघन था। शिव जी इस आचरण से क्रोधित हुए और ब्रह्मा जी का पाँचवाँ सिर काट दिया। इसी से उन्हें ब्रह्महत्या का दोष लगा और उनकी पूजा निषिद्ध मानी गई। कहा जाता है कि हरिद्वार का ब्रह्मकुंड इसी घटना से जुड़ा है, जहाँ आज भी पितरों का श्राद्ध किया जाता है।
शास्त्रों के अनुसार, कलयुग में किसी भी शुभ कार्य - विवाह, यज्ञ, हवन या पूजा - में ब्रह्मा जी का नाम नहीं लिया जाता। यह परंपरा शिव जी के श्राप से जुड़ी है। इस प्रकार, त्रिदेवों में स्थान रखने के बावजूद वे उपासना से दूर रहे।
कारण | परिणाम |
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सावित्री जी का श्राप | केवल पुष्कर में मंदिर |
शिव जी का श्राप | पूजा और मंत्रोच्चार से बहिष्कृत |
सरस्वती प्रसंग | ब्रह्महत्या का दोष और निषेध |
Q1. ब्रह्मा जी का मंदिर कहाँ है?
राजस्थान के पुष्कर में विश्व का प्रसिद्ध और दुर्लभ ब्रह्मा मंदिर स्थित है।
Q2. सावित्री जी ने क्यों दिया श्राप?
उन्होंने देखा कि ब्रह्मा जी ने दूसरी स्त्री से विवाह कर यज्ञ आरंभ किया, जिससे वे क्रोधित हुईं।
Q3. केतकी पुष्प क्यों शिव पूजा में निषिद्ध है?
केतकी पुष्प ने ब्रह्मा जी के झूठ की गवाही दी थी, इसलिए शिव जी ने इसे वर्जित कर दिया।
Q4. क्या सचमुच ब्रह्मा जी का पाँचवाँ सिर था?
हाँ, कथाओं में वर्णित है कि शिव जी ने क्रोध में आकर उसका नाश किया और ब्रह्मा जी को दोषी ठहराया।
Q5. कलयुग में ब्रह्मा जी का नाम क्यों नहीं लिया जाता?
शास्त्रों के अनुसार, शिव जी के श्राप के कारण उनका स्मरण किसी भी शुभ कार्य में नहीं होता।
अनुभव: 32
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