By पं. संजीव शर्मा
मंगल ग्रह के गोचर का अर्थ, ज्योतिष में इसका महत्व, और यह आपके जीवन के विभिन्न पहलुओं, जैसे करियर और रिश्तों को कैसे प्रभावित करता है।
वैदिक ज्योतिष के विशाल ब्रह्मांड में हर ग्रह का अपना एक चरित्र और एक भूमिका है। इनमें से मंगल को ग्रहों का सेनापति कहा गया है। यह लाल ग्रह केवल एक खगोलीय पिंड नहीं, बल्कि हमारी ऊर्जा, साहस, पराक्रम और हमारे रक्त का प्रतीक है। जब यह शक्तिशाली ग्रह अपनी राशि बदलता है, तो यह केवल एक ज्योतिषीय घटना नहीं होती, बल्कि यह पृथ्वी पर हर व्यक्ति के जीवन में ऊर्जा और घटनाओं का एक नया ज्वार लेकर आती है। इस महत्वपूर्ण परिवर्तन को ही मंगल गोचर कहा जाता है। यह एक ऐसी अवधि होती है जब हमें अपने जीवन की लड़ाइयों के लिए एक नई शक्ति मिलती है, या फिर हमें अपने क्रोध और आक्रामकता को संतुलित करने की चुनौती का सामना करना पड़ता है।
ज्योतिष की भाषा में, मंगल के गोचर का सीधा सा अर्थ है मंगल ग्रह का एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करना। मंगल की यह यात्रा अन्य ग्रहों की तुलना में थोड़ी लंबी होती है। यह प्रत्येक राशि में लगभग 45 दिनों (डेढ़ माह) तक संचरण करते हैं। इस अवधि के दौरान, मंगल आपकी जन्म राशि से अलग-अलग भावों में स्थित होकर आपके जीवन के विभिन्न क्षेत्रों, जैसे करियर, रिश्ते, स्वास्थ्य और आत्मविश्वास को गहराई से प्रभावित करते हैं।
भारतीय ज्योतिष शास्त्र में मंगल को एक क्रूर और पापी ग्रह की संज्ञा दी गई है, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि वे हमेशा अशुभ फल ही देते हैं। मंगल एक सेनापति की तरह हैं, जिनका स्वभाव आक्रामक और अनुशासित होता है। उनका उद्देश्य सुरक्षा और विजय सुनिश्चित करना है।
मंगल की ऊर्जा एक दोधारी तलवार की तरह है। यदि इसका सही उपयोग किया जाए तो यह सफलता की ऊंचाइयों तक पहुंचा सकती है, लेकिन यदि यह अनियंत्रित हो जाए तो यह विनाश का कारण भी बन सकती है।
यदि आपकी कुंडली में मंगल बलवान हैं या गोचर में शुभ भावों से गुजर रहे हैं, तो आपको निम्नलिखित सकारात्मक परिणाम देखने को मिल सकते हैं:
यदि मंगल कमजोर या पीड़ित हों, या गोचर में अशुभ भावों में हों, तो जीवन में कुछ चुनौतियां आ सकती हैं:
मंगल से जुड़ा सबसे चर्चित और महत्वपूर्ण योग है मांगलिक दोष। जब किसी व्यक्ति की जन्म कुंडली में मंगल लग्न (प्रथम), चतुर्थ, सप्तम, अष्टम या द्वादश भाव में स्थित होते हैं, तो यह दोष बनता है। इसे विवाह और वैवाहिक सुख में बाधा का एक बड़ा कारण माना जाता है, क्योंकि इन भावों में स्थित मंगल सीधे तौर पर पारिवारिक और वैवाहिक जीवन को प्रभावित करते हैं।
मंगल का गोचर हमें यह सिखाता है कि ऊर्जा स्वयं में अच्छी या बुरी नहीं होती, उसका उपयोग ही उसे शुभ या अशुभ बनाता है। यह 45 दिनों की अवधि हमें अपने साहस को सही दिशा देने, अपनी महत्वाकांक्षाओं के लिए लड़ने और अपने क्रोध पर नियंत्रण रखने का अवसर देती है। जो व्यक्ति मंगल की इस शक्तिशाली ऊर्जा को संतुलित करना सीख जाता है, वह जीवन के किसी भी युद्ध में विजय प्राप्त कर सकता है।
अनुभव: 15
इनसे पूछें: पारिवारिक मामले, आध्यात्मिकता और कर्म
इनके क्लाइंट: दि., उ.प्र., म.हा.
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