By पं. सुव्रत शर्मा
खगोलीय गणना, पंचांग और ग्रह स्थिति का वैज्ञानिक आधार
गणित ज्योतिष वैदिक ज्योतिष शास्त्र का वह खंड है, जो ग्रहों, नक्षत्रों और कालचक्र की सटीक गणना करता है। यह खगोलीय स्थितियों को संख्यात्मक रूप से मापकर फलित ज्योतिष को आधार प्रदान करता है। यह शाखा केवल संख्याओं की गणना नहीं, बल्कि समयबोध की वैज्ञानिक व्याख्या है।
गणित ज्योतिष वह शाखा है जो ग्रह-नक्षत्रों की गति, स्थिति, दशा, युति, गोचर, ग्रहीय वेग, दृष्टि, उदयास्त, ग्रहण और कालमान (दिन, मास, वर्ष) की गणना करती है। इस गणना के बिना जातक, मुहूर्त, प्रश्न और संहिता जैसे सभी फलित अंग निष्प्रभावी हो जाते हैं। यह शुद्ध खगोलीय गणना और वैदिक गणित का संगम है।
खगोलीय घटनाओं की भविष्यवाणी करना (ग्रहण, संक्रांति, चंद्रदर्शन आदि) जन्मकुंडली के निर्माण हेतु ग्रहों की सटीक स्थिति निर्धारण पंचांग निर्माण एवं तिथि, नक्षत्र, योग, करण की गणना मुहूर्त निर्धारण के लिए सटीक काल गणना गोचर और दशा/अन्तर्दशा के कालानुपातिक फल निकालना
भारतीय गणित ज्योतिष का आधार वैदिक काल तक पहुँचता है। इसके प्रमुख ग्रंथ हैं:
गणित ज्योतिष केवल अंकजाल नहीं है। यह कालबोध का दिव्य विज्ञान है। यह हमें समय की लय और ब्रह्मांड की गति में छिपे संकेतों को समझने में सक्षम बनाता है। ब्रह्मा से लेकर पृथ्वी तक के समस्त घटनाचक्र को सूक्ष्म गणनाओं द्वारा समझने की क्षमता इसी शाखा में है।
गणित ज्योतिष वैदिक ज्योतिष का मेरुदंड है, जिसके बिना कोई भी फलित ज्योतिषी अपने निर्णयों में प्रामाणिकता नहीं ला सकता। यह शाखा समय की सूक्ष्म धड़कनों को पढ़ने की विद्या है, जो व्यक्ति को न केवल भौतिक संसार में, बल्कि आत्मिक स्तर पर भी संतुलन प्रदान करती है।
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