By पं. अभिषेक शर्मा
जन्मकुंडली में योगों, प्रयास और वैभव के गूढ़ संबंधों की ज्योतिषीय व्याख्या
राजयोग किसी राजा के भव्य जीवन की गारंटी नहीं देता, बल्कि यह उस मानसिक, सामाजिक और आत्मिक ऊँचाई का सूचक है, जो जातक को सामान्य जन से अलग पहचान दिलाता है। कुंडली में जब शुभ ग्रह विशिष्ट योगों का निर्माण करते हैं, तब व्यक्ति के जीवन में भाग्योदय, सम्मान, वैभव और आत्मबल का उदय होता है - यही है राजयोग का तात्पर्य।
राजयोग केवल भौतिक संपन्नता तक सीमित नहीं है। यह एक व्यापक अवधारणा है, जिसमें व्यक्ति के सामाजिक प्रभाव, नेतृत्व क्षमता, प्रशासनिक दक्षता और नैतिक परिपक्वता भी सम्मिलित होती है। बृहत् पाराशर होरा शास्त्र और जातक पारिजात जैसे ग्रंथों में इसे लग्न, चंद्र और सूर्य के संदर्भ से देखा गया है - जब त्रिकोण और केंद्र भावों के स्वामी परस्पर युति या दृष्टि करें, तब राजयोग बनता है।
जब पंच महापुरुष योगों जैसे रुषभ (शुक्र), भद्र (बुध), हंस (गुरु), मालव्य (शुक्र), शश (शनि) का निर्माण हो और वे केन्द्रों (1, 4, 7, 10 भाव) में स्थित हों, तो जातक को राजकीय सम्मान प्राप्त हो सकता है। विशेष रूप से यदि लग्नेश और नवमेश की युति या दृष्टि दशम भाव पर हो और दशमेश बलवान हो, तो जातक को प्रशासनिक, राजनीतिक या नेतृत्वकारी स्थान प्राप्त हो सकता है।
राजयोग को और भी बल मिलता है जब शुक्र या गुरु उच्च स्थिति में हों, चंद्रमा शुभ दृष्ट और बलवान हो और नवांश कुंडली में भी वही योग परिलक्षित हों।
राजयोग का फल तभी अनुभव होता है जब संबंधित ग्रहों की दशा, अंतरदशा अथवा गोचर में सक्रिय हो। यदि राजयोगकारी ग्रह नीचस्थ, वक्री या पापग्रहों से पीड़ित हो, तो राजयोग निष्क्रिय रह सकता है, या उसका फल आंशिक हो जाता है। वहीं, यदि योग में शामिल ग्रह उच्च राशियों में, स्वराशि में या मित्र ग्रहों के साथ हों, तो यह योग पूर्ण प्रभाव में आता है।
राजयोग का उदय जीवन के किसी भी चरण में हो सकता है - बचपन में, युवावस्था में या प्रौढ़ावस्था में - यह सब ग्रहों की दशा और गोचर पर निर्भर करता है। कई बार जातक को शुरूआत में संघर्ष होता है, पर जैसे ही योगफल देने वाली दशा प्रारंभ होती है, उसका भाग्य अचानक करवट ले लेता है।
यह बात उल्लेखनीय है कि राजयोग केवल जन्म से प्राप्त नहीं होता, बल्कि व्यक्ति की आत्मिक तैयारी, पूर्वजन्म के संस्कार और सतत पुरुषार्थ भी इसमें भूमिका निभाते हैं। यदि योग हो और व्यक्ति निष्क्रिय रहे, तो योग निष्फल हो सकता है। वहीं, सामान्य योग में भी यदि व्यक्ति प्रयास करे, तो उसे सम्मानजनक स्थान प्राप्त हो सकता है।
जन्म कुंडली में बने योगों की पुष्टि के लिए नवांश और दशमांश चार्ट का अध्ययन आवश्यक होता है। नवांश में यदि वही योग प्रबल रूप से दोहराए गए हों, तो वह आत्मिक और वैवाहिक जीवन में भी प्रभावशाली होता है। दशमांश में राजयोग हो तो जातक की सामाजिक स्थिति, करियर और प्रशासनिक पद की पुष्टि होती है।
राजयोग का विचार एक आध्यात्मिक दर्शन है - यह केवल राजसी वैभव नहीं, बल्कि आत्मिक अधिकार और सामाजिक सम्मान की परिणति है। इसलिए, इसका विश्लेषण केवल गणितीय न होकर विवेक और अनुभव की दृष्टि से भी किया जाना चाहिए।
अनुभव: 19
इनसे पूछें: विवाह, संबंध, करियर
इनके क्लाइंट: छ.ग., म.प्र., दि., ओडि, उ.प्र.
इस लेख को परिवार और मित्रों के साथ साझा करें