By पं. अभिषेक शर्मा
जानिए अश्विनी नक्षत्र की दिव्य उत्पत्ति की प्राचीन कथा, उनके प्रतीक, गुण, वैदिक महत्व और जीवन पर प्रभाव
अश्विनी नक्षत्र वैदिक ज्योतिष का प्रथम नक्षत्र है, जो नई शुरुआत, ऊर्जा, गति और उपचार का प्रतीक है। इसकी पौराणिक कथा सूर्य, संज्ञा और अश्विनी कुमारों के जन्म से जुड़ी है। यह कथा केवल एक मिथक नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति में नवजीवन, चिकित्सा और तेजस्विता का गहरा प्रतीक भी है।
भगवान सूर्य का विवाह विश्वकर्मा की पुत्री संज्ञा (या सरण्यु) से हुआ था। संज्ञा अत्यंत कोमल स्वभाव की थीं, लेकिन सूर्य के प्रचंड तेज को सहन नहीं कर पाईं। कुछ समय बाद, उन्होंने अपनी छाया 'छाया' को सूर्य के पास छोड़ दिया और स्वयं तपस्या करने के लिए पृथ्वी पर चली गईं। छाया से शनिदेव और अन्य संतानें उत्पन्न हुईं, जबकि संज्ञा ने उत्तरकुरु प्रदेश में जाकर घोड़ी (अश्विनी) का रूप धारण कर लिया और कठोर तपस्या करने लगीं। सूर्य को जब इस रहस्य का पता चला, तो वे स्वयं भी घोड़े का रूप धारण कर संज्ञा के पास पहुँचे। घोड़े और घोड़ी के रूप में दोनों का मिलन हुआ, जिससे दो जुड़वां पुत्रों का जन्म हुआ, जिनका सिर घोड़े का और शरीर मनुष्य का था। इन्हीं को अश्विनी कुमार कहा गया-नासत्य और दस्त्र।
अश्विनी कुमारों का जन्म पूरी तरह से अद्वितीय था। वे धड़ से मनुष्य, लेकिन सिर से अश्व (घोड़े) थे। यह रूप प्रतीक है-गति, ऊर्जा, साहस और नवजीवन का। वे जब चाहें, अपने अश्व शीश को हटाकर मनुष्य का सिर भी लगा सकते थे। यह शक्ति उन्हें विशेष बनाती थी। इनका जन्म सूर्य और संज्ञा के मिलन से हुआ, लेकिन घोड़े के रूप में। यही कारण है कि अश्विनी नक्षत्र का प्रतीक 'घोड़े का सिर' है। यह तेज, आरंभ और जीवन में नई ऊर्जा का संकेत है।
इन दोनों भाइयों का नाम है-नासत्य और दश्र। इन्हें 'अश्विनीकुमार' या 'अश्विनी कुमार' कहा जाता है।
देवताओं ने इन दोनों को 'देव-चिकित्सक' का पद दिया। जब भी देवता युद्ध में घायल होते या असाध्य रोगों से जूझते, अश्विनी कुमारों की औषधि और उपचार ही उन्हें पुनः स्वस्थ कर सकते थे। ऋग्वेद में अश्विनीकुमारों के लिए अनेक स्तुतियाँ हैं, जिनमें उनकी चिकित्सा, पुनर्जीवन और चमत्कारी उपचारों का उल्लेख मिलता है। इनकी चिकित्सा शक्ति इतनी अद्भुत थी कि वे मृत को भी जीवन दे सकते थे, अंधे को दृष्टि और वृद्ध को यौवन दे सकते थे। आयुर्वेद और चिकित्सा विज्ञान के आदि आचार्य भी इन्हें ही माना जाता है।
तत्व | विवरण |
---|---|
नक्षत्र क्रम | 1 (प्रथम) |
राशि | मेष |
डिग्री सीमा | 0°00' - 13°20' मेष |
नक्षत्र स्वामी | केतु |
अधिष्ठाता देवता | अश्विनी कुमार |
प्रतीक | घोड़े का सिर |
शक्ति | आरंभ, गति, उपचार, नवजीवन |
शुभ अक्षर | चु, चे, चो, ला |
अश्विनी नक्षत्र की पौराणिक उत्पत्ति सूर्य और संज्ञा की कथा से जुड़ी है, जिसमें घोड़े के सिर वाले अश्विनी कुमारों का जन्म हुआ। वे देवताओं के चिकित्सक, आयुर्वेद के जनक और नवजीवन, ऊर्जा, गति और उपचार के प्रतीक हैं। अश्विनी नक्षत्र का वैदिक महत्व हर नई शुरुआत, साहस, चिकित्सा और जीवन में तेज़ी से आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है। यह कथा हमें सिखाती है कि जब जीवन में कोई नई शुरुआत करनी हो, ऊर्जा और साहस चाहिए हो, या स्वास्थ्य और नवजीवन की आवश्यकता हो, तब अश्विनी नक्षत्र और अश्विनी कुमारों की ऊर्जा को स्मरण करें-यही वैदिक परंपरा का संदेश है।
अनुभव: 19
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