By पं. अभिषेक शर्मा
श्रवण नक्षत्र का विस्तृत ज्योतिषीय विवेचन

श्रवण नक्षत्र, सत्ताईस नक्षत्रों में बाईसवाँ नक्षत्र है और इसका अत्यन्त गहन आध्यात्मिक तथा ज्योतिषीय महत्व माना गया है। यह सम्पूर्ण रूप से मकर राशि में विराजमान है और 0°00′ से 23°30′ तक के क्षेत्र में फैला हुआ है। इस नक्षत्र का अधिपति ग्रह चन्द्रमा है, जो मानव जीवन में मन, भावनाओं, आध्यात्मिक ग्रहणशीलता, अंतर्ज्ञान, विचार संतुलन तथा संसार से आते हुए सूक्ष्म प्रभावों को आत्मसात करने की क्षमता का प्रदाता है। चन्द्रमा की चंचल किंतु संवेदनशील ऊर्जा श्रवण जातकों को अत्यन्त ग्रहणशील और संवेदनशील बनाती है।
इसके अधिदेव भगवान विष्णु हैं, जो सृष्टि के पालनहार, धर्म के रक्षक और ब्रह्मांड में संतुलन कायम रखने वाले देवता हैं। देवी पार्वती, जो मातृत्व, करुणा, पोषण व स्त्रैण ज्ञान की प्रतीक हैं, भी इसका आध्यात्मिक आधार हैं। “श्रवण” शब्द का शब्दार्थ है “सुनना”। वैदिक दृष्टि में श्रवण केवल वाणी सुनने का कार्य नहीं बल्कि आत्मा को आत्मोद्धार, ज्ञान और मुक्ति की ओर ले जाने वाला उपकरण है। इस नक्षत्र का मूल संदेश है : ध्यानपूर्वक सुनना ही ज्ञान अर्जन की कुंजी है और ज्ञान ही आत्मोन्नति का मार्ग है।
यह नक्षत्र जिन जातकों में प्रकट होता है, उनमें अत्यन्त तीक्ष्ण बुद्धि, गहरी ज्ञान-पिपासा और सूक्ष्म भाव ग्रहण करने की अद्भुत क्षमता होती है। ये जातक समाज में अपने अध्ययन, शिक्षा, संप्रेषण और संस्कृति के योगदान से अलग पहचान बनाते हैं। वे साधारण श्रोताओं की अपेक्षा गहन सुनने और आत्मसात करने में सक्षम होते हैं, जिससे वे शिक्षक, विद्वान, समाज सुधारक और दार्शनिक बनने के लिए विशेष रूप से उपयुक्त होते हैं।
श्रवण नक्षत्र का प्रथम प्रतीक है “कान”। कान केवल ध्वनि पकड़ने वाला अंग ही नहीं है बल्कि यह ज्ञान और आंतरिक बोध का प्रतीक माना गया है। श्रवण जातक अपने जीवन में केवल बोलियों और वाक्यों तक सीमित नहीं रहते बल्कि शब्दों के पीछे छिपे गूढ़ अर्थ, भावनाओं की झंकार और मौन का महत्व भी समझते हैं। सुनने की यह सूक्ष्म शक्ति उनके व्यक्तित्व को बेहद गम्भीर एवं आदर्श बनाती है।
तीन पदचिह्न इस नक्षत्र का दूसरा प्रतीक हैं। यह चिन्ह तीन अवस्थाओं, जाग्रति (जागरण), स्वप्न और सुषुप्ति, की ओर इशारा करता है। जीवन के ये तीन स्तर चेतना की यात्रा को स्पष्ट करते हैं। श्रवण नक्षत्र जातकों का जीवन इन तीनों स्तरों से होकर आत्मसाक्षात्कार की दिशा में अग्रसर होता है। इसका यहां अर्थ है कि जीवन केवल व्यावहारिक अथवा भौतिक कार्यों तक सीमित नहीं है बल्कि आत्मा के गूढ़ रहस्यों को समझना भी है।
श्रवण नक्षत्र का गहरा सम्बन्ध भगवान विष्णु के वामन या त्रिविक्रम अवतार से है। पुराणों में वर्णित है कि वामन रूप धारण कर भगवान ने असुर राजा बलि से केवल तीन पग भूमि माँगी और फिर विराट स्वरूप लेकर विश्व को अपने तीन पगों में नाप लिया। यह कथा स्पष्ट करती है कि त्रिविक्रम अवतार ने सम्पूर्ण सृष्टि को mापकर उसमें संतुलन और धर्म की स्थापना की। श्रवण जातक भी उसी ऊर्जा को अपने भीतर समेटे होते हैं। वे मानसिक, आध्यात्मिक और भौतिक क्षेत्रों को जोड़ने वाले होते हैं। ज्ञान और भक्ति, कर्म और साधना, वाणी और मौन, ये सभी विरोधाभास उन्हीं में अद्भुत रूप से संगठित हो जाते हैं।
इस नक्षत्र की पशु योनि स्त्री वानर है। वानर प्राणी चंचल, सक्रिय, खेलप्रिय होते हुए भी चतुर और अनुकूलनशील होते हैं। इसी तरह श्रवण जातकों की प्रारम्भिक अवस्था में अत्यधिक खेलप्रियता और कौतूहल देखा जाता है। वे सामाजिक रूप से हंसमुख, त्वरित प्रतिक्रिया देने वाले और नवीन चीज़ों की ओर आकृष्ट होते हैं। पर जैसे-जैसे जीवन परिपक्व होता है, उनकी यही जिज्ञासा उन्हें गहन दार्शनिक, चिंतनशील और आध्यात्मिक बना देती है। उनके जीवन में बचपन की चपलता और प्रौढ़ावस्था की गम्भीरता एक साथ मिलकर उन्हें अद्वितीय बनाती है।
| पहलू | विवरण |
|---|---|
| नक्षत्र संख्या | 22 |
| राशि | मकर |
| स्वामी ग्रह | चन्द्र |
| अधिदेवता | भगवान विष्णु, देवी पार्वती |
| प्रतीक | कान और तीन पदचिह्न |
| पशु योनि | स्त्री वानर |
| लिंग | पुरुष |
| दोष | कफ |
| गुण | राजसिक |
| तत्त्व | वायु |
| पक्षी | तीतर |
| वृक्ष | आक (Calotropis gigantea) |
| अक्षर | जु, जे, जो, घ |
| शुभ रत्न | मोती |
| शुभ अंक | 2, 8 |
| शुभ रंग | हल्का नीला |
| शुभ दिन | सोमवार, बुधवार, गुरुवार |
प्रश्न 1 : श्रवण नक्षत्र का शाब्दिक अर्थ क्या है और इसका मुख्य प्रतीक क्या माना गया है?
उत्तर : श्रवण का अर्थ है “सुनना”। इसका प्रमुख प्रतीक “कान” है, जो गहन श्रवण और ग्रहणशीलता का द्योतक है। इसके अतिरिक्त तीन पदचिह्न भी प्रतीक माने जाते हैं, जो चेतना की तीन अवस्थाओं, जाग्रति, स्वप्न और सुषुप्ति, का प्रतिनिधित्व करते हैं।
प्रश्न 2 : इस नक्षत्र के अधिदेव कौन हैं और उनका इससे क्या सम्बन्ध है?
उत्तर : श्रवण नक्षत्र के अधिदेव भगवान विष्णु और देवी पार्वती हैं। विष्णु संतुलन और धर्म की रक्षा के प्रतीक हैं, जबकि पार्वती करुणा, मातृत्व और ज्ञान की अधिष्ठात्री हैं। यह संयोजन श्रवण जातकों को संतुलन, पोषण, धर्म-पालन और आध्यात्मिक पथ पर अग्रसर करता है।
प्रश्न 3 : श्रवण नक्षत्र के जातकों का प्रमुख स्वभाव और जीवन दृष्टिकोण क्या होता है?
उत्तर : ये जातक धैर्यवान, पूर्णतावादी, जिज्ञासु और अत्यन्त ग्रहणशील होते हैं। वे सुनने और सीखने की अद्भुत क्षमता रखते हैं। जीवन में यात्रा और संस्कृतियों के प्रति आकर्षण होता है, साथ ही उच्च शिक्षा, कला और दार्शनिक चिंतन में भी दक्ष होते हैं।
प्रश्न 4 : पुरुष और स्त्री श्रवण जातकों की विशेषताएँ क्या होती हैं?
उत्तर : पुरुष जातक प्रायः मृदुभाषी, अनुशासित, धार्मिक और न्यायप्रिय होते हैं। स्त्री जातक दयालु, बुद्धिमान, सृजनशील और निष्ठावान होती हैं। दोनों ही जीवन में पूर्णता की ओर अग्रसर रहते हैं।
प्रश्न 5 : इस नक्षत्र से जुड़ी प्रमुख स्वास्थ्य समस्याएँ कौन-सी मानी जाती हैं?
उत्तर : श्रवण जातकों को मुख्यत: कान से जुड़ी समस्या, श्वसन रोग, त्वचा संबंधी विकार (जैसे एक्जिमा), तथा पाचन असंतुलन की शिकायत हो सकती है। कफ दोष प्रधान होने से आलस्य और मोटापे की प्रवृत्ति भी बन सकती है।

अनुभव: 19
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