By पं. नीलेश शर्मा
जानिए चतुर्थ भाव का वैदिक महत्व, पारिवारिक सुख, माता का आशीर्वाद, संपत्ति, मानसिक शांति और आंतरिक स्थिरता पर इसका प्रभाव
वैदिक ज्योतिष में चौथा भाव (Fourth House) को सुख भाव या मातृभाव कहा जाता है। यह भाव जातक के घर-परिवार, माता, भौतिक सुख, अचल संपत्ति, वाहन और आंतरिक शांति का प्रतीक है। चूंकि यह केंद्र (केंद्र भाव) में स्थित है, इसका प्रभाव जीवन के मध्य भाग (25-50 वर्ष) पर विशेष रूप से देखा जाता है। यह भाव न केवल वर्तमान जीवन की सुख-सुविधाओं को दर्शाता है, बल्कि पूर्वजन्म के कर्मों के फल और आध्यात्मिक संचित धन का भी सूचक है।
तत्व | विवरण |
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भाव संख्या | 4 (चतुर्थ) |
संस्कारिक नाम | बंधु भाव / मातृ भाव |
तत्व (Element) | जल (Water) |
स्वाभाविक राशि | कर्क (Cancer) |
स्वाभाविक ग्रह | चंद्रमा (Moon) |
संबंधित अंग | छाती, फेफड़े, स्तन |
जीवन की अवस्था | युवावस्था का मध्य भाग (लगभग 25-50 वर्ष) |
कालपुरुष कुंडली में राशि | कर्क (Cancer) राशि चौथे भाव में स्थित होती है, जिसका स्वामी चंद्रमा है |
क्षेत्र | विवरण |
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माता और पारिवारिक सुख | इस भाव से जातक की माता के स्वास्थ्य, आयु, स्वभाव और उनके साथ संबंधों का अध्ययन किया जाता है। यदि चतुर्थ भाव में चंद्रमा स्थित हो और शुभ प्रभाव में हो, तो जातक को माता से भरपूर स्नेह, संरक्षण और भावनात्मक सहयोग मिलता है। |
अचल संपत्ति और वाहन | चतुर्थ भाव किसी भी व्यक्ति की अचल संपत्तियों का द्योतक होता है-जैसे जमीन, भवन, फार्महाउस, गोदाम आदि। अगर यह भाव मजबूत है, तो जातक को संपत्ति के मामलों में लाभ मिलता है। |
सुख-सुविधा और विलास | यह भाव जातक की दैनिक जीवन की सुख-सुविधाएं, जैसे-घर, वाहन, आरामदायक जीवनशैली, भौतिक संपत्ति आदि को दर्शाता है। यह देखा जाता है कि जातक को जीवन में कितना मानसिक और भौतिक संतोष प्राप्त है। |
आंतरिक शांति और सुख | यह भाव मन की स्थिरता और मानसिक संतुलन का दर्पण होता है। किसी जातक को मानसिक शांति मिलेगी या अशांति-इसका मूल आधार चतुर्थ भाव की स्थिति पर निर्भर करता है। |
पूर्वजन्म के संस्कार | यह भाव यह भी दर्शाता है कि जातक ने अपने पूर्वजन्मों में कैसे कर्म किए थे और उनके फल वर्तमान जीवन में कैसे अनुभव हो रहे हैं। |
शारीरिक अंग | छाती, स्तन, फेफड़े और हृदय। |
शिक्षा और बचपन | प्रारंभिक शिक्षा, बचपन के अनुभव और घर का वातावरण। |
यदि चौथे भाव में शुभ ग्रह (चंद्रमा, शुक्र, बृहस्पति) हों या चतुर्थेश (भाव स्वामी) उच्च/स्वराशि में हो, तो:
यदि चौथे भाव में पाप ग्रह (शनि, राहु, केतु) हों या चतुर्थेश नीच/शत्रु राशि में हो, तो:
कुंडली का चौथा भाव जातक के आंतरिक सुख, पारिवारिक जीवन और भौतिक संपदा का आधार है। यह भाव जितना मजबूत होगा, जातक को उतना ही पारिवारिक स्नेह, संपत्ति और मानसिक शांति मिलेगी। वहीं, इसका कमजोर होना जीवन में अस्थिरता और भावनात्मक उथल-पुथल का कारण बन सकता है। वैदिक ज्योतिष में इस भाव का विस्तृत विश्लेषण व्यक्ति को उसके पारिवारिक दायित्वों और सुख-साधनों के प्रति सजग बनाता है।
यदि आप चाहते हैं कि आपकी कुंडली का चतुर्थ भाव किस दिशा में प्रभाव डाल रहा है, तो किसी अनुभवी वैदिक ज्योतिषी से परामर्श अवश्य लें।
अनुभव: 25
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