By पं. अमिताभ शर्मा
भारतीय वैदिक ज्योतिष और वेस्टर्न ज्योतिष के बीच मुख्य अंतर जानें और समझें कि आपके लिए कौन-सी प्रणाली अधिक उपयुक्त है - परंपरा, संस्कृति और सटीकता के आधार पर।
अक्सर आम जनता में और जानकार लोगों में भी ये चर्चा चलती है कि भारतीय ज्योतिष (वैदिक एस्ट्रोलॉजी) ज्यादा सटीक है या पाश्चात्य ज्योतिष (वेस्टर्न एस्ट्रोलॉजी)। ये समझना ज़रूरी है कि दोनों सिस्टम एस्ट्रोलॉजी की शाखाएं हैं मगर कुछ तुलनात्मक अंतर भी हैं दोनों में।
ज्योतिष के उपयोग मानवता को दुखों से पार पाने की दिशा दिखाई जाती है। ज्योतिष को हम आध्यात्म से जोड़कर भी देख सकते हैं। ज्योतिष एक ऐसी विद्या है जो जीवन के दुखों को कम करने में मदद कर सकती है। ज्योतिष मुख्य रूप से दो प्रकार की होती है - वैदिक ज्योतिष और पाश्चात्य (वेस्टर्न) ज्योतिष। ये दोनों न सिर्फ अलग-अलग स्थानों पर उत्पन्न हुईं, बल्कि इनके बीच कई और भी अंतर हैं। लेकिन चाहे वह वैदिक ज्योतिष हो या पाश्चात्य ज्योतिष, दोनों का मुख्य उद्देश्य यही है कि इंसान की समस्याओं को दूर किया जाए और उसके जीवन में सुख-शांति बढ़ाई जाए। इन दोनों ज्योतिष प्रणालियों के अंतर जानने और समझने के बाद कई प्रश्नों के उत्तर मिल जाते हैं।
ज्योतिष के माध्यम से न सिर्फ भविष्य की जानकारी मिलती है, बल्कि जीवन की तमाम समस्याओं से भी छुटकारा पाया जा सकता है। वेद-पुराणों में भी ज्योतिष का उल्लेख मिलता है, जहाँ इसे ऐसा माध्यम बताया गया है जो अज्ञान के अंधकार से निकालकर ज्ञान के प्रकाश की ओर ले जाता है। हालांकि, इसका दायरा बहुत व्यापक है। ज्योतिष के अंतर्गत वैदिक और पाश्चात्य (वेस्टर्न) दोनों प्रकार की पद्धतियाँ शामिल हैं।
पूरी ज्योतिष प्रणाली दो मुख्य संकेतों पर आधारित होती है - सूर्य राशि और चंद्र राशि। वैदिक ज्योतिष में चंद्र राशि को अधिक महत्व दिया जाता है, जबकि पाश्चात्य ज्योतिष सूर्य राशि के आधार पर कार्य करता है। इन दोनों के अंतर को समझाने से पहले यह जान लेना ज़रूरी है कि ज्योतिष एक गम्भीर अध्ययन की विधा है और वैदिक ज्योतिष तथा वेस्टर्न ज्योतिष इसी के दो प्रमुख रूप हैं। आज भी कई प्रकार की ज्योतिष पद्धतियाँ प्रचलन में हैं, जिन्हें लोग अपने जीवन में मार्गदर्शन के लिए अपनाते हैं।
अगर वैदिक ज्योतिष की बात करें, तो यह ज्योतिष का वह प्राचीन स्वरूप है जिसका विकास वैदिक काल में हुआ था। माना जाता है कि मानव सभ्यता का सबसे अधिक विकास इसी काल में भारतीय उपमहाद्वीप में हुआ। ऐसा भी माना जाता है कि इसी समय ज्योतिष शास्त्र का लेखन हुआ होगा। इसमें ग्रहों जैसे सूर्य, चंद्रमा, मंगल और बुध के साथ-साथ राशियों और नक्षत्रों का अध्ययन कर गणना की प्रणाली विकसित की गई। वैदिक ज्योतिष के अनुसार आकाश को 360 डिग्री मानकर 12 राशियों और 27 नक्षत्रों में विभाजित किया गया है। इसे हिंदू ज्योतिष भी कहा जाता है।
वैदिक ज्योतिष में साइडरियल राशि चक्र का उपयोग किया जाता है, जो आकाश में वास्तव में मौजूद नक्षत्रों के साथ मेल खाता है। इसका मतलब यह है कि आपकी राशि वैदिक ज्योतिष में अक्सर पाश्चात्य ज्योतिष से अलग हो सकती है। इस प्रणाली में चंद्रमा को सबसे महत्वपूर्ण माना गया है, क्योंकि माना जाता है कि चंद्रमा का प्रभाव मनुष्य के जीवन पर सबसे गहरा होता है। हालांकि लग्न (असेंडेंट) और ग्रहों के आपसी संबंधों (आस्पेक्ट्स) को भी महत्व दिया जाता है, लेकिन मुख्य रूप से चंद्रमा पर विशेष ध्यान दिया जाता है।
पाश्चात्य ज्योतिष में ट्रॉपिकल राशि चक्र का उपयोग किया जाता है, जिसमें राशियाँ ऋतुओं और सूर्य की प्रतीत होने वाली गति के आधार पर तय होती हैं। इस प्रणाली में आमतौर पर सूर्य राशि को अधिक महत्व दिया जाता है, हालांकि चंद्रमा, लग्न (असेंडेंट) और ग्रहों के बीच के संबंधों (आस्पेक्ट्स) को भी ध्यान में रखा जाता है। इसमें घरों की गणना के लिए विभिन्न हाउस सिस्टम्स का उपयोग किया जाता है, जिनमें कुछ असमान और कुछ समान होते हैं। पाश्चात्य ज्योतिष में समय की गणना के लिए प्राइमरी और सेकेंडरी डायरेक्शन्स और शनि की वापसी जैसी विधियाँ अपनाई जाती हैं। इसके अलावा, ग्रहों के बीच के कोणीय संबंधों की अवधारणा का भी प्रयोग किया जाता है।
पहलू (Aspect) | वैदिक ज्योतिष | पाश्चात्य ज्योतिष |
---|---|---|
प्रणाली का आधार | सिडेरियल राशि चक्र (नक्षत्र आधारित) | ट्रॉपिकल राशि चक्र (मौसम आधारित) |
मुख्य फोकस | भविष्यवाणी और कर्म | व्यक्तित्व और मनोवैज्ञानिक विश्लेषण |
ग्रह शासक | राहु और केतु शामिल (छाया ग्रहों सहित) | राहु और केतु शामिल नहीं |
राशियाँ | वास्तविक नक्षत्रों पर आधारित | पृथ्वी के मौसमों के प्रतीकात्मक आधार पर |
समय निर्धारण | चंद्रमा और नक्षत्र (लूनर कैलेंडर) | सूर्य और सौर कैलेंडर |
कुंडली संरचना | चौकोर | गोल |
व्यक्तिगत जुड़ाव | ग्रहों की सटीक स्थिति से ज्यादा व्यक्तिगत | मौसमी समायोजन के कारण कम व्यक्तिगत |
उपाय | मंत्र, रत्न, पूजा जैसे कर्म संबंधी उपाय | आत्मविश्लेषण और मानसिक विकास के सुझाव |
भविष्यवाणी की सटीकता | गहराई से और विस्तृत भविष्यवाणी के लिए जाना जाता है | प्रवृत्तियों और स्वभाव पर केंद्रित |
सांस्कृतिक आधार | भारतीय वेद और आध्यात्मिक परंपराओं से गहराई से जुड़ा | ग्रीक दर्शन और पौराणिक कथाओं से प्रभावित |
पाश्चात्य ज्योतिष ज़्यादा मनोवैज्ञानिक और व्यक्तित्व पर केंद्रित होता है, जहाँ सूर्य राशि को सबसे ज़्यादा महत्व दिया जाता है। वहीं, वैदिक ज्योतिष जीवन के आध्यात्मिक और कर्म से जुड़े पहलुओं को गहराई से समझने पर ज़ोर देता है और इसमें चंद्रमा की भूमिका सबसे अहम मानी जाती है। दोनों प्रणालियों में से आपके लिए कौनसी बेहतर रहेगी ये आपके देश, काल और परिस्थिति पे निर्भर करता है।
भारतीयों के लिए वैदिक ज्योतिष अधिक उपयुक्त माना जाता है - और इसके पीछे कुछ ठोस कारण हैं:
वैदिक ज्योतिष भारतीय सभ्यता का हिस्सा है और इसकी जड़ें वेदों में हैं। विवाह, नामकरण, मुहूर्त, गृह प्रवेश, आदि हर धार्मिक कार्य में इसकी
भूमिका आज भी देखी जाती है।
भारतीय समाज में चंद्रमा के आधार पर कुंडली बनाई जाती है, क्योंकि यह व्यक्ति के मन, भावना और जीवन के उतार-चढ़ाव को ज़्यादा सटीक ढंग से दर्शाता है। हमारी परंपराएँ जैसे राशिफल पढ़ना, ग्रह शांति कराना, दशा-विधि - सब चंद्र राशि पर ही आधारित हैं।
भारतीय दर्शन में "कर्म" और "पुनर्जन्म" की गहरी मान्यता है और वैदिक ज्योतिष इन्हीं सिद्धांतों पर आधारित होकर भविष्य की दिशा दिखाने का कार्य करता है।
वैदिक ज्योतिष में ग्रहों के दोषों के उपाय (जैसे रत्न, मंत्र, दान, व्रत) दिए जाते हैं, जो भारतीय जीवनशैली में आसानी से अपनाए जा सकते हैं। अगर आप भारतीय पृष्ठभूमि से हैं और धार्मिक-सांस्कृतिक मान्यताओं से जुड़े हैं, तो वैदिक ज्योतिष आपके लिए अधिक सार्थक और लाभदायक रहेगा।
अनुभव: 32
इनसे पूछें: जीवन, करियर, स्वास्थ्य
इनके क्लाइंट: छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश
इस लेख को परिवार और मित्रों के साथ साझा करें