By पं. अमिताभ शर्मा
पितृ मोक्ष, उपवास, श्राद्ध और पारिवारिक कल्याण के लिए इंदिरा एकादशी का रहस्य
सनातन संस्कृति के वर्षभर में जितने भी उपवास, व्रत और पर्व मनाए जाते हैं, उन सभी में एकादशी का स्थान सर्वाधिक पावन माना गया है। आश्विन माह के कृष्ण पक्ष में जब श्राद्ध पक्ष चलता है, उस दौरान आने वाली इंदिरा एकादशी को गूढ़ आध्यात्मिक रहस्य और पितृ-कल्याण के संयोग के लिए विशेष रूप से पूजनीय कहा गया है। वर्ष 2025 में यह तिथि बुधवार, 17 सितंबर को हे और इस बार का संयोग अद्वितीय है क्योंकि श्राद्ध, पूर्वज उन्नति और मोक्ष की सभी ऊर्जा इस एक अवसर पर संकेंद्रित हो जाती हैं।
हर वर्ष, इंदिरा एकादशी आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की ग्यारहवीं तिथि को आती है। इस दिन, पितरों के स्मरण व कल्याण हेतु किए गए व्रत, जप-तप और दान का फल कई गुना बढ़ जाता है। यह दिन जीवन के दोनों पक्षों - लौकिक तथा आध्यात्मिक - के बीच एक सेतु का काम करता है।
पर्व / व्रत | तिथि | पक्ष | विशेष लाभ और उद्देश्य |
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इंदिरा एकादशी | 17 सितंबर 2025 | कृष्ण पक्ष, श्राद्ध पक्ष | पितरों की मुक्ति, सम्पूर्ण परिवार का कल्याण |
इस तिथि को संकल्प लेकर उपवास, तर्पण, श्रीहरि विष्णु की पूजा और कथा श्रवण का बहुत महत्व है।
एक समय सतयुग में महिष्मती (वर्तमान मध्य प्रदेश की एक ऐतिहासिक नगरी) नामक समृद्ध राज्य पर धर्मनिष्ठ राजा इन्द्रसेन राज्य करते थे। प्रजा सुखी थी, न्याय व्यवस्था मजबूत थी और हर प्रजा जन अपने धर्म और कर्तव्य का पालन करता था।
एक बार जब राजा अपने राजसभा कक्ष में थे, तभी देवर्षि नारद उनके द्वार आए। राजा ने आदर से उनका स्वागत किया और कहानी का उद्देश्य पूछा। नारद बोले - ‘‘राजन, हाल में मैं यमलोक गया था, जहां आपकी दिवंगत पिता की आत्मा मुझसे मिली। उन्होंने संदेश भेजा है कि परलोक में उन्हें एक विशेष दोष के कारण ठहरना पड़ा है।’’ राजा व्याकुल हुए, उन्होंने कारण पूछा।
नारद मुनि ने बताया - ‘‘आपके पिता एक बार एकादशी का व्रत नहीं रख पाए थे, जिससे उन्हें यह भार मिला। उन्होंने कहा कि यदि उनका पुत्र इन्द्रसेन इंदिरा एकादशी का संकल्प करके पुण्य उन्हें अर्पित करे, तो वह स्वर्ग प्राप्त कर सकते हैं।’’ राजा ने निश्चय किया कि वे नियमपूर्वक व्रत करेंगे। नारदने विधिवत समस्त उपाय और अनुष्ठान बताए। एकादशी आने पर, राजा ने परम श्रद्धा, पूजा, व्रत, कथा, तर्पण और दान सब विधिपूर्वक किया और उसके प्रभाव से उनके पिता को यमलोक से मुक्ति मिल गई। राज्यभर में आनंद और संतोष की लहर दौड़ गई।
पात्र | उद्देश्य/कार्य | परिणाम |
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राजा इन्द्रसेन | व्रत, विधिपूर्वक पूजन, कथा, हिताश्रय | पितरों की मोक्ष-प्राप्ति, कुल का उत्थान |
देवर्षि नारद | मार्गदर्शन, व्रत-विधि का ज्ञान | सत्पथ की ओर प्रेरणा |
पिता | भूतपूर्व दोष, व्रत से मुक्त हुए | स्वर्ग प्राप्त किया |
इंदिरा एकादशी का व्रत केवल उपवास नहीं बल्कि संकल्प, पितृ स्मरण और तपस्या का संगम है। घड़ी के अनुसार सूर्योदय के पूर्व शुद्ध स्नान करें। घर की पूर्व दिशा का कोना या पूजास्थल स्वच्छ करें। पीले वस्त्र, भगवान विष्णु का चित्र या प्रतिमा, तुलसी पत्र, दीपदान और अगरबत्ती से पूजन आरंभ करें। बाद में पितरों के नाम से काले तिल, तर्पण और जल अर्पित करें। दिनभर मौन साधना, जप, श्री विष्णु सहस्रनाम, गीता पाठ और कथा श्रवण करें। रात्रि जागरण और सत्संग करें। द्वादशी को सामर्थ्यानुसार दान, अन्न, वस्त्र और गौ-ग्रास अवश्य दें।
व्रत चरण | अर्थ/महत्व | अनुकरणीय संकेत |
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प्रातः स्नान | शारीरिक और मानसिक शुद्धि | गंगाजल या पंचामृत का अल्प प्रयोग |
पूजा-अर्चना | भवसागर से पार कराने की प्रार्थना | श्रीहरि विष्णु की विधिपूर्वक आराधना |
तर्पण | पितरों की आत्मा की तृप्ति | काले तिल, शुद्ध जल, पुष्प का अर्पण |
कथा-पाठ | आत्मज्ञान और मोक्ष-संस्कार | पुराण कथा, भजन, मंत्रोच्चार |
जागरण | तप और साधना की परिपूर्ति | भगवान का नाम-स्मरण, गीता-पाठ |
दान | पुण्य और करुणा का समन्वय | अन्न, वस्त्र, दक्षिणा का विनम्र दान |
धार्मिक दृष्टि से इंदिरा एकादशी आत्म पवित्रीकरण, पितृ ऋण मुक्ति और परिवार के उत्थान का मार्ग है। उपवास शरीर की हलकापन, मन की स्थिरता और पाचन तंत्र के शुद्धिकरण का भी माध्यम है। इससे आत्म-परीक्षण, संयम और कृतज्ञता के भाव प्रबल होते हैं। श्राद्ध कर्म और तर्पण के विज्ञान को वैज्ञानिक आधार भी मिलता है - जैसे शुक्राणु शक्ति, स्मृति, मन की ताकत और सामाजिक एकजुटता का संवर्धन।
लाभ | धार्मिक दृष्टि | वैज्ञानिक/मनोवैज्ञानिक पक्ष |
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पापों से मुक्ति | आत्मा को गतिशीलता, पितरों की रक्षा | मानसिक डिटॉक्स, तनाव में कमी |
पूर्वजों को मोक्ष | कुल का समुचित उत्थान, परलोक उन्नति | मानसिक संतुष्टि, परिवार में सकारात्मकता |
सामाजिक समरसता | एकता-बंधुत्व और परंपरा | परस्पर सद्भाव, संस्कार बढ़ना |
इंदिरा एकादशी केवल कर्मकांड नहीं, यह भाव, स्मरण शक्ति, श्रद्धा और तपस्या का संगम है। यह पर्व विश्वासी को परिवार, समाज, वंश और परलोक के प्रति कृतज्ञता, दया और भक्ति सिखाता है। पितरों का स्मरण जीवन को स्थिरता और दिशा देता है।
यह कथा भारत के हर प्रांत, हर गांव और हर आश्रम में श्राद्ध पक्ष में अवश्य सुनाई जाती है। लोग मानते हैं कि कथा, पूजन और व्रत के संयोजन से अनेक जन्मों के दोष मिटते हैं और कुल, रिश्तों, पूर्वजों का कल्याण होता है।
1. इंदिरा एकादशी का व्रत किन शास्त्रों में वर्णित है?
यह कथा मुख्य रूप से ब्रह्मवैवर्त पुराण, पद्म पुराण तथा वराह पुराण में विस्तार से वर्णित है।
2. क्या इंदिरा एकादशी व्रत विधि में परिवर्तन किया जा सकता है?
विशेष आवश्यकताओं या रोगियों के लिए फलाहार, जल या दूध का प्रयोग किया जा सकता है, शेष नियम शुद्धता और श्रद्धा पर आधारित हैं।
3. क्या व्रत केवल स्त्रियाँ कर सकती हैं?
पुरुष, स्त्री, वृद्ध, युवा - सभी पितृ-कल्याण, मोक्ष और पुण्य प्राप्ति हेतु व्रत कर सकते हैं।
4. उपवास के बिना केवल कथा श्रवण या पाठ से भी पितरों का कल्याण होगा?
हां, श्रद्धापूर्वक कथा श्रवण या पाठ से भी समान फल मिलता है, पर व्रत करने से अधिक पूण्य प्राप्त होता है।
5. व्रत के साथ कौन से मंत्र या पाठ विशेष फलदायक हैं?
श्री विष्णु सहस्रनाम, गीता के ग्यारहवें अध्याय का पाठ और 'ॐ पितृदेवतायै नमः' की जप माला श्रेष्ठ मानी गई है।
इंदिरा एकादशी बार-बार सिखाती है कि पितरों के प्रति कर्तव्य, तपस्या की शक्ति और श्रृंखला से बंधा पुण्य, जीवन और परलोक दोनों में कल्याणकारी है। इस व्रत के ज़रिये हर वर्ष श्रद्धा, नियम और ईश्वर विश्वास में प्रगाढ़ता आती है।
अनुभव: 32
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इनके क्लाइंट: छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश
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