By पं. संजीव शर्मा
संपूर्ण प्रदोष व्रत: शिव कृपा पाने की विधि, कथा, पूजन सामग्री, मंत्र और नियम - एक विस्तृत मार्गदर्शिका
प्रदोष व्रत सनातन धर्म में भगवान शिव और माता पार्वती की कृपा प्राप्ति के लिए रखा जाने वाला अत्यंत पुण्यदायी व्रत है। यह व्रत प्रत्येक माह की त्रयोदशी तिथि (शुक्ल और कृष्ण पक्ष) को रखा जाता है, जिससे एक वर्ष में लगभग 24 या 25 प्रदोष व्रत आते हैं। प्रदोष व्रत का सबसे बड़ा आकर्षण प्रदोष काल है, जो सूर्यास्त के बाद और रात्रि के आगमन से पूर्व का समय होता है। इस व्रत में शिवलिंग की पूजा, जलाभिषेक, बेलपत्र अर्पण और व्रत कथा सुनने का विशेष महत्व है। वैदिक ज्योतिष के अनुसार, प्रदोष काल में की गई शिव उपासना साधक के जीवन से पाप, रोग, शोक और बाधाओं का नाश करती है तथा आध्यात्मिक ऊर्जा और पारिवारिक सुख-शांति प्रदान करती है। वार अनुसार प्रदोष व्रत के अलग-अलग फल बताए गए हैं-सोम प्रदोष संतान प्राप्ति, शनि प्रदोष कष्ट निवारण, और शुक्र प्रदोष सौभाग्य के लिए श्रेष्ठ है।
प्रदोष व्रत की पूजा प्रदोष काल में की जाती है, जो सूर्यास्त से 45 मिनट पूर्व शुरू होकर सूर्यास्त के 45 मिनट बाद तक रहता है। यह समय शिव कृपा पाने के लिए अत्यंत शुभ है। पंचांग के अनुसार, त्रयोदशी तिथि के दिन शाम 7 से 9 बजे के बीच का समय विशेष रूप से उपयुक्त माना जाता है।
बेलपत्र, गंगाजल, अक्षत, सफेद चंदन, सफेद मिठाई, फल, फूल, धूप, दीप, कपूर, रुद्राक्ष माला, कलावा, कुश का आसन, पंचामृत, शहद, धागा, मिश्री, पीला या लाल कपड़ा, शिवलिंग या भगवान शिव का चित्र।
बहुत समय पहले एक नगर में एक निर्धन विधवा ब्राह्मणी अपने पुत्र के साथ रहती थी। वह प्रतिदिन भीख मांगकर जीवन यापन करती थी और वर्षों से श्रद्धा से प्रदोष व्रत करती थी। एक दिन उसका पुत्र गंगा स्नान को गया, रास्ते में लुटेरों ने उसका सामान छीन लिया और सैनिकों ने उसे लुटेरों का साथी समझकर बंदी बना लिया। राजा ने बिना सुनवाई के उसे कारागार में डाल दिया। रात में राजा को स्वप्न में भगवान शिव ने आदेश दिया कि उस बालक को मुक्त करो, वह निर्दोष है। राजा ने सुबह होते ही उसे मुक्त कर सम्मान सहित महल बुलाया। जब राजा ने उससे दान मांगने को कहा, तो बालक ने केवल एक मुट्ठी धान मांगा ताकि उसकी मां भगवान शिव के लिए खीर बना सके। राजा उसकी श्रद्धा से प्रभावित हुआ और उसकी मां को सम्मानित कर उसे अपना सलाहकार बना लिया। प्रदोष व्रत की कृपा से ब्राह्मणी और उसका पुत्र सुख-समृद्धि से भर गए।
जय शिव ओंकारा
ब्रह्मा विष्णु सदा शिव अर्द्धांगी धारा
एकानन चतुरानन पंचानन राजे
हंसानन गरुड़ासन वृषवाहन साजे
दो भुज चार चतुर्भुज दस भुज अति सोहे
त्रिगुण रूपनिरखता त्रिभुवन जन मोहे
अक्षमाला वनमाला मुण्डमाला धारी
चंदन मृगमद सोहै भाले शशिधारी
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे
सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे
कर के मध्य कमंडल चक्र त्रिशूलधारी
सुखकारी दुखहारी जगपालन कारी
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका
प्रणवाक्षर में शोभित ये तीनों एका
त्रिगुणस्वामी जी की आरती जो कोइ नर गावे
कहत शिवानंद स्वामी सुख संपति पावे
प्रदोष व्रत केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि श्रद्धा, विश्वास और समर्पण का पर्व है। यह व्रत हमें सिखाता है कि कठिनाई चाहे कितनी भी हो, नियम, संयम और भक्ति से जीवन में सुख-शांति, सफलता और भगवान शिव की कृपा अवश्य प्राप्त होती है। प्रदोष व्रत की कथा, विधि और नियम हर साधक को आध्यात्मिक शक्ति, धैर्य और सकारात्मकता का संदेश देते हैं।
अनुभव: 15
इनसे पूछें: पारिवारिक मामले, आध्यात्मिकता और कर्म
इनके क्लाइंट: दि., उ.प्र., म.हा.
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