By पं. अमिताभ शर्मा
शिव आराधना, पितृ तर्पण और आंतरिक शांति के लिए विशेष अमावस्या
हर माह की अमावस्या तिथि हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखती है, लेकिन जब अमावस्या सोमवार को आती है, तो वह और भी पवित्र मानी जाती है - इसे कहते हैं “सोमवती अमावस्या”। साल 2025 में यह दुर्लभ संयोग 26 मई को बन रहा है, जो ज्येष्ठ मास की अमावस्या है। इस दिन पितरों का आशीर्वाद पाने, शिव कृपा अर्जित करने और आत्मिक शुद्धि हेतु विशेष पूजा-पाठ और दान-पुण्य किए जाते हैं।
सोमवती अमावस्या सिर्फ एक तिथि नहीं, बल्कि एक आत्मिक यात्रा का आरंभ है - एक ऐसा दिन जब व्यक्ति अपने पूर्वजों को स्मरण करता है, उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करता है और अपने भीतर के विकारों को शुद्ध करने की कोशिश करता है। गरुड़ पुराण में भी इसका उल्लेख है कि इस दिन पितृ तर्पण करने से पितृ दोष का शमन होता है और पितरों की आत्मा को शांति मिलती है।
एक पुरानी कथा है - एक बार युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से पूछा, “प्रभु, ऐसा कौन-सा व्रत है जिससे सभी पापों का क्षय हो और व्यक्ति को दीर्घायु प्राप्त हो?” तब श्रीकृष्ण ने सोमवती अमावस्या का महत्व बताया और कहा कि जो इस दिन गंगा स्नान, व्रत, दान और पितृ तर्पण करता है, उसे अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है।
सोमवती अमावस्या वह दुर्लभ संयोग है जब अमावस्या तिथि सोमवार को पड़ती है। यह तिथि न केवल भगवान शिव की उपासना का श्रेष्ठ दिन मानी जाती है, बल्कि पितरों की शांति के लिए भी अत्यंत फलदायी होती है। गरुड़ पुराण और पद्म पुराण में इस दिन पितृ तर्पण, दान-पुण्य व ध्यान का विशेष महत्व बताया गया है।
इस दिन किए गए श्राद्ध व तर्पण से पितृदोष से मुक्ति मिलती है और कुल में सुख-शांति व समृद्धि आती है। साथ ही, भगवान शिव के रुद्राभिषेक से आत्मिक शुद्धि व मानसिक शांति की प्राप्ति होती है।
उदयातिथि अनुसार पर्व 26 मई को मनाया जाएगा।
अमावस्या के दिन सूर्य और चंद्रमा एक ही राशि में होते हैं, जिससे मानसिक स्थिरता कम होती है। यह एक ऐसा समय होता है जब व्यक्ति आत्मनिरीक्षण कर सकता है, ध्यान और साधना के माध्यम से मानसिक शांति प्राप्त कर सकता है। अमावस्या को जन्म लेने वाले जातकों की कुंडली में चंद्र दोष होता है - इसलिए इस दिन विशेष पूजा और ध्यान करने से मन को बल मिलता है।
वर्ष 2025 में सोमवती अमावस्या का संयोग दो बार बनेगा - पहली 26 मई को और दूसरी 20 अक्टूबर को। ये दोनों दिन विशेष माने जाएंगे, लेकिन ज्येष्ठ मास की सोमवती अमावस्या का आध्यात्मिक और पितृ महत्व अधिक होता है।
सोचिए - जब घर का कोई सदस्य हमारे लिए कुछ छोड़ जाता है, तो क्या हम उन्हें सिर्फ एक बार याद करके कर्तव्य पूरा कर लेते हैं? सोमवती अमावस्या एक ऐसा अवसर है जब हम उन्हें स्मरण करते हैं जिन्होंने हमारे जीवन की नींव रखी। यह दिन सिर्फ कर्मकांड नहीं, भावना और आस्था का भी दिन है।
एक वृद्ध पिता की आत्मा, जो हर रोज अपने बेटे के घर के आंगन में पीपल के नीचे बैठा करता था - उसे शांति तभी मिलती है जब वह बेटा एक दीपक जलाकर कहता है, “पिताजी, आज भी आप मेरी हर सांस में हैं।”
सोमवती अमावस्या न केवल एक धार्मिक पर्व है, बल्कि यह जीवन को गहराई से देखने और अपनी जड़ों से जुड़ने का दिन भी है। पितृ तर्पण, शिव भक्ति, दान और ध्यान - यह चार तत्व हमें इस दिन पूर्णता की ओर ले जाते हैं। आइए इस 26 मई 2025 को श्रद्धा, सेवा और समर्पण के साथ सोमवती अमावस्या मनाएं और अपने पूर्वजों की स्मृति को सम्मान दें।
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