By पं. अमिताभ शर्मा
पितृ दोष निवारण और पीपल पूजा की शक्ति से परिवार में समृद्धि की अनुभूति
भारतीय संस्कृति में अमावस्या तिथि का अत्यंत धार्मिक महत्व है, और जब यह तिथि सोमवार के दिन पड़े, तो इसे कहा जाता है - सोमवती अमावस्या। यह तिथि खासतौर पर पितरों के तर्पण, शिव पूजन और पीपल की पूजा के लिए जानी जाती है। मान्यता है कि इस दिन किए गए पुण्यकर्म कई गुना फल देते हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इस दिन पीपल की परिक्रमा क्यों की जाती है? इसके पीछे एक पुरातन कथा जुड़ी हुई है, जिसे जानना और समझना हर श्रद्धालु के लिए लाभकारी है।
प्राचीन काल में एक निर्धन लेकिन अत्यंत धार्मिक ब्राह्मण अपनी पत्नी और एकमात्र कन्या के साथ जीवन व्यतीत करता था। ब्राह्मण की पुत्री सुंदर, गुणी और माता-पिता की आज्ञाकारी थी। वह हर दिन पूजा-पाठ करती, ब्राह्मणों की सेवा करती और माता-पिता का आदर करती। लेकिन एक चिंता उसके जीवन में छाया बनी हुई थी - विवाह में विलंब और निरंतर आने वाली बाधाएं।
समय बीतता गया, लेकिन कन्या का विवाह नहीं हो सका। माता-पिता अत्यंत दुःखी और चिंतित रहने लगे। उन्होंने कई उपाय किए, कई विद्वान ज्योतिषियों से परामर्श लिया, लेकिन कोई हल नहीं निकला।
एक दिन एक वृद्ध साधु भूख-प्यास से पीड़ित ब्राह्मण के द्वार पर आया। ब्राह्मण दंपती ने श्रद्धा से उनका स्वागत किया, उन्हें भोजन कराया और अपनी पुत्री की परेशानी बताई। साधु ने कन्या को ध्यान से देखा, फिर गहन ध्यान में लीन हो गए। ध्यान के उपरांत उन्होंने ब्राह्मण से कहा:
“तुम्हारी कन्या अत्यंत पुण्यात्मा है, परंतु उसके जीवन में विवाह की जो बाधा है, वह पितृ दोष के कारण है। जब तक यह दोष समाप्त नहीं होगा, तब तक इसका विवाह संभव नहीं है।”
ब्राह्मण ने हाथ जोड़कर उपाय पूछा।
साधु ने समझाया,
“जिस दिन अमावस्या सोमवार को पड़े - अर्थात सोमवती अमावस्या - उस दिन तुम्हें एक सच्ची पतिव्रता स्त्री को ढूंढना होगा। उस सती स्त्री के साथ तुम्हारी कन्या को पीपल के वृक्ष की 108 परिक्रमा करनी होगी। परिक्रमा करते समय भगवान विष्णु और पितरों का ध्यान करना होगा। इसके बाद पितरों को तर्पण दो, ब्राह्मणों को भोजन कराओ और जरूरतमंदों को दान दो। तब यह दोष समाप्त होगा और कन्या के विवाह का मार्ग प्रशस्त होगा।”
ब्राह्मण ने जैसे ही सोमवती अमावस्या आई, वे तुरंत एक पतिव्रता स्त्री की खोज में निकल पड़े। उन्हें एक ऐसी महिला मिली जो सच्चे अर्थों में सती थी - वह पूर्ण रूप से अपने पति की सेवा में समर्पित थी और चरित्रवान थी।
सोमवती अमावस्या के दिन ब्राह्मण, उसकी पत्नी, पुत्री और वह सती स्त्री पीपल के वृक्ष के पास पहुंचे। वहां पहले ब्राह्मण दंपती ने पूजन किया, फिर कन्या ने सती स्त्री के साथ मिलकर 108 बार पीपल की परिक्रमा की। उन्होंने विधिपूर्वक पूजा-अर्चना की, गंगाजल चढ़ाया, पुष्प अर्पित किए, और दीप जलाया।
इसके पश्चात उन्होंने पितरों को तर्पण अर्पित किया, भूखों को भोजन कराया और ब्राह्मणों को यथाशक्ति दान दिया।
कुछ ही समय के भीतर एक योग्य और कुलीन वर से उस कन्या का विवाह निश्चित हो गया। विवाह के बाद कन्या ने सुखी, शांतिपूर्ण और समृद्ध जीवन व्यतीत किया। इस प्रकार, सोमवती अमावस्या के दिन की गई परिक्रमा, तर्पण और पूजा ने एक असंभव को संभव कर दिया।
यह कथा हमें सिखाती है कि जीवन की कठिनाइयों का समाधान धर्म, श्रद्धा और आस्था के मार्ग से संभव है। सोमवती अमावस्या के दिन पीपल की परिक्रमा, पितरों का पूजन और शिव की उपासना करने से पितृ दोष, विवाह बाधा और अन्य पारिवारिक संकट दूर हो सकते हैं।
विशेषकर महिलाएं इस दिन अपने पति की दीर्घायु, संतान सुख और घर की समृद्धि के लिए व्रत करती हैं। यह व्रत मन, वचन और कर्म से शुद्धता की प्रेरणा देता है।
अनुभव: 32
इनसे पूछें: जीवन, करियर, स्वास्थ्य
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