By पं. संजीव शर्मा
माँ ब्रह्मचारिणी की कथा, स्वरूप, पूजा विधि और ज्योतिषीय लाभ
नवरात्रि एक ऐसा पर्व है जो माँ दुर्गा के विविध और शक्तिशाली स्वरूपों का उत्सव मनाता है। नवरात्रि का दूसरा दिन माँ ब्रह्मचारिणी को समर्पित है, जो तप, साधना और भक्ति की मिसाल मानी जाती हैं। उनका नाम ही उनके चरित्र को परिभाषित करता है"ब्रह्म" का अर्थ है तपस्या और "चारिणी" का अर्थ है अभ्यास करने वाली।
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मान्यताओं के अनुसार, माँ ब्रह्मचारिणी का पूर्व जन्म में नाम सती था, जो राजा दक्ष की पुत्री और भगवान शिव की पत्नी थीं। पिता द्वारा शिव के अपमान से दुखी होकर उन्होंने यज्ञ की अग्नि में अपने प्राण त्याग दिए। अगले जन्म में वे हिमावत-राज (हिमालय के राजा) की पुत्रीपार्वती के रूप में जन्मीं और पुनः शिव को पति रूप में प्राप्त करने का संकल्प लिया। शिव गहन ध्यान में लीन हो गए थे तब नारद मुनि ने पार्वती को तपस्या का मार्ग सुझाया। वर्षों तक कठोर तपस्या करने से वे "ब्रह्मचारिणी" कहलाईं।
इसी दौरान, राक्षस तारकासुर के आतंक से देवता परेशान थे। उसकी मृत्यु केवल शिव पुत्र के हाथों ही संभव थी, लेकिन शिव तप में लीन थे। कामदेव को शिव को आकर्षित करने के लिए भेजा गया, किंतु तपस्या भंग करने पर शिव ने कामदेव को भस्म कर दिया। कठिन तपस्या करती पार्वती का उत्साह न डिगा। शिव स्वयं साधु का वेश बनाकर पार्वती की परीक्षा लेने आए, परंतु माँ के मन में प्रतीक्षारत प्रेम और निष्ठा अडिग रही। अंततः शिव ने ब्रह्मचारिणी के दृढ़ संकल्प व प्रेम को स्वीकार किया और दोनों का पुनर्मिलन हुआ।
माँ ब्रह्मचारिणी सफेद वस्त्र में, नंगे पाँव, हाथ में रूद्राक्ष की माला और दूसरे हाथ में कमण्डल लिए हुए दिखती हैं। उनका शांत, भव्य और संयमित मुखमुद्रा उनकी भीतरी शक्ति, निश्चलता और गहन भक्ति का प्रतिबिम्ब है।
मुख्य प्रतीक तालिका
विशेषता | प्रतीक | संदेश |
---|---|---|
नंगे पैर, सफेद वस्त्र | वैराग्य, सरलता | सादगी, प्रकृति से निकटता |
रूद्राक्ष माला | साधना, तपस्या | अनुशासन, निरंतर जप |
कमण्डल | शुद्धता, त्याग | संयम, भीतरी शक्ति |
शांत चेहरा | मानसिक शक्ति | कठिनाई में धैर्य |
माँ ब्रह्मचारिणी का दिव्य स्वरूप हमें साधना, संयम और भौतिक आकर्षण से दूर रहकर उद्देश्यपूर्ण जीवन जीने की प्रेरणा देता है।
माँ ब्रह्मचारिणी बीज मंत्र:
|| ॐ देवी ब्रह्मचारिण्यै नमः ||
माँ ब्रह्मचारिणी प्रार्थना:
दधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलू।
देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा॥
माँ ब्रह्मचारिणी स्तुति:
या देवी सर्वभूतेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
नवरात्रि का दूसरा दिन मंगल ग्रह से जुड़ा हैजो साहस, शक्ति, संकल्प और कर्म का प्रतीक है। मंगल दोष, मंगलीक दोष या क्रोध, अधीरता आदि की स्थितियों में माँ ब्रह्मचारिणी की साधना विशेष फलदायी मानी जाती है।
ज्योतिष तालिका
पक्ष | मंगल का गुण | पूजा का लाभ |
---|---|---|
साहस, ऊर्जा | संकल्प, कार्यशीलता | आत्मविश्वास, स्वास्थ्य |
क्रोध, अशांति | अधीरता, असंतुलन | संतुलन, शांति, स्पष्टता |
मंगलीक दोष | वैवाहिक समस्या | दोष शांति, मेल |
यह दिन वृषभ राशि और शुक्र ग्रह से भी जुड़ा है; धैर्य, स्थायित्व और आकर्षण के संग शांति का पर्याय।
भरणी नक्षत्र सहनशीलता, परीक्षा और परिवर्तन का प्रतीक हैयह समय समस्याओं को तपस्या से शुद्ध करने का।
स्वाधिष्ठान (Sacral) चक्र भावना, सृजन और संतुलन का केन्द्र है। माँ ब्रह्मचारिणी की उपासना से यह चक्र जाग्रत होता है।
चक्र तालिका
चक्र | फोकस ऊर्जा | लाभ |
---|---|---|
स्वाधिष्ठान | सृजन, भावना | स्पष्टता, आत्मशक्ति |
मंगल/लाल रंग | इच्छाशक्ति | प्रेरणा, आत्मसंयम |
नवरात्रि के तीसरे दिन और देवी चंद्रघंटा के बारे में यहां पढ़ें।
पूजा तालिका
विधि/अर्पण | उद्देश्य |
---|---|
लाल फूल | मंगल शक्ति बढ़ाना |
मंत्र जाप | चित्त स्थिर, चक्र जाग्रत |
व्रत | शुद्धि, एकाग्रता |
घी का दीप | मंगल दोष शांति, सकारात्मकता |
फल, मिश्री | मिठास, शांति |
मंगलशक्ति, जोश और आत्मविश्वास की देवी।
स्वाधिष्ठान (Sacral) चक्रभावना, सृजन और संतुलन का स्रोत।
|| ॐ देवी ब्रह्मचारिण्यै नमः || - पूरे मन से जाप करें।
लाल वस्त्र या फूल प्रमुख; फल, मिश्री और घी का दीप शुभ माने जाते हैं।
संकल्प, साहस, संतुलन, ऊर्जा और आध्यात्मिक उन्नति मिलती है।
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पंचांग में मुहूर्त देखेंअनुभव: 15
इनसे पूछें: पारिवारिक मामले, आध्यात्मिकता और कर्म
इनके क्लाइंट: दि., उ.प्र., म.हा.
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