By पं. अमिताभ शर्मा
जानिए रामलला के प्राण प्रतिष्ठा, रामायण की प्रमुख घटनाओं और मुहूर्त की वैज्ञानिक दृष्टि
भारतवर्ष में राम मंदिर के उद्घाटन का वह ऐतिहासिक क्षण अब केवल कुछ पलों की दूरी पर है, जिसका इंतजार न जाने कितनी पीढ़ियां करती रही हैं। 22 जनवरी को अयोध्या नगरी अपने ह्रदय सम्राट रामलला का स्वागत भव्य मंदिर में करेगी। यह क्षण सिर्फ ऐतिहासिक नहीं है बल्कि धार्मिक, सांस्कृतिक और ज्योतिषीय दृष्टि से भी स्तब्ध कर देने वाला है।
रामलला की प्राण प्रतिष्ठा 12 बजकर 29 मिनट 08 सेकंड पर आरंभ होकर 12 बजकर 30 मिनट 32 सेकंड पर संपन्न होगी। यह शुभाकांक्षाओं से भरा एक लघु मुहूर्त अवश्य है, परंतु इसकी गरिमा के आगे समय निरर्थक हो जाता है। इस दिन हिंदू पंचांग के अनुसार पौष माह की शुक्ल पक्ष की द्वादशी है, मृगशीरा नक्षत्र और मेष लग्न के साथ वृश्चिक नवांश का योग रहेगा। यह सभी संयोग शुभता की संपूर्णता को प्रकट करते हैं। प्राचीनकाल से ऐसे आयोजन हेतु मुहूर्त निकालने की परंपरा रही है, जिसमें राजनीतिक, धार्मिक, सांसारिक और सामाजिक विचार का समावेश होता रहा है। किंतु प्राचीन विद्वानों ने यह सुनिश्चित किया था कि ग्रहों-नक्षत्रों के सामंजस्य के बिना कोई बड़ा कार्य आरंभ नहीं होता।
भारतीय ज्योतिषाचार्यों ने इस अद्भुत मुहूर्त को गहन साधना, नक्षत्रों की गणना, ग्रहों की स्थिति और रामायण के शास्त्रीय तथ्यों के अध्ययन से निकाला है। हर वह प्रसंग जो रामायण या रामचरितमानस में वर्णित है, नक्षत्रों, तिथियों, योगों और ग्रहों के गहन विज्ञान पर केंद्रित रहा है। महर्षि वाल्मीकि हों या तुलसीदास, दोनों ने स्पष्ट रूप से संकेत किया है कि हर महत्वपूर्ण घटना का समय ज्योतिष के नियमों पर टिका रहा। आज के इस युग में भी यदि जीवन के प्रमुख निर्णय इसी विधि से लिए जाएं तो सफलता और मानसिक संतुलन मिलना संभव है।
नक्षत्र, तिथि, योग और ग्रह-इनका तालमेल प्राचीन भारतीय संस्कृति के हर महत्व के पल का अंग रहा है। रामायण के अधिकांश प्रसंग इसका प्रतिपादन करते हैं।
पुत्रेष्टि यज्ञ के एक वर्ष उपरांत, चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को श्रीराम का जन्म हुआ। उस समय पुनर्वसु नक्षत्र था। कर्क लग्न और उच्च स्थिति में बैठे बृहस्पति, सूर्य, चंद्र, मंगल, शुक्र, शनि जैसे ग्रह अपनी शुभता के चरम पर थे। इससे यह स्पष्ट होता है कि श्रीराम का जन्म स्वयं संपूर्ण शुभ संयोगों का प्रतीक बना।
भरत की जन्मकुंडली में मीन लग्न, पुष्य नक्षत्र का प्रभाव था। जुड़वां लक्ष्मण और शत्रुघ्न का जन्म कर्क लग्न तथा अश्लेषा नक्षत्र में हुआ। ग्यारह दिन बीतने के बाद जब नामकरण समारोह हुआ, गुरु वशिष्ठ ने चिरस्मरणीय नामकरण किया। चारों भाइयों का तेज और उपस्थिति पूर्वाभाद्रपद और उत्तराभाद्रपद तारा-सम था।
नाम | नक्षत्र | लग्न | प्रमुख ग्रह स्थिति |
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श्रीराम | पुनर्वसु | कर्क | सारे शुभ ग्रह उच्च में |
भरत | पुष्य | मीन | शुभ ग्रहों का योग |
लक्ष्मण, शत्रुघ्न | अश्लेषा | कर्क | नवांश में विशेषता |
राजा जनक के सुझाव और विद्वानों के अनुसार श्रीराम, भरत, लक्ष्मण, शत्रुघ्न का विवाह उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में हुआ। विशेष बात यह रही कि एक ही माता की संतान का विवाह एक ही समय, एक ही मुहूर्त में संभव नहीं, पर क्योंकि राम-भरत की माताएं अलग थीं और लक्ष्मण-शत्रुघ्न के नवांश भी भिन्न थे, ज्योतिषाचार्यों ने शुभ मुहूर्त प्रदान किया। इस विधि से चारों भाइयों का विवाह विविध नवांश व नक्षत्र में सफलता पूर्वक संपन्न हुआ।
भाइयों के विवाह | नक्षत्र | नवांश/विशेषता |
---|---|---|
सभी भाई | उत्तराफाल्गुनी | नवांश भिन्नता |
श्रीराम का राज्याभिषेक पुष्य नक्षत्र में तय हुआ। पुष्य को शासन, समृद्धि और शुभ कार्यों के लिए अत्यंत श्रेष्ठ कहा गया है। रामायण में उल्लेख मिलता है कि राजा दशरथ ने ऋषि वशिष्ठ से निवेदन किया-“कल पुष्य नक्षत्र है, यही राम के राज्याभिषेक हेतु सर्वश्रेष्ठ है”। इसके पीछे कारण था कि पुष्य की अवधि में किए गए कर्म चिरस्थायी और कल्याणकारी साबित होते हैं।
राज्याभिषेक की रात राजा दशरथ ने स्वप्न में अशुभ घटनाएं देखीं- उल्काओं का गिरना, दुष्ट ग्रहों की स्थिति, अनिष्ट संकेत। इन संकेतों के आधार पर उजागर होता है कि हर बड़े फैसले से पूर्व आकाश में ग्रह-नक्षत्र चेतावनी स्वरूप विशेष संकेत भेजते हैं। दशरथ ने राम को सतर्क किया कि ऐसे योग राजा के लिए संकटसूचक हैं, परंतु पुष्य नक्षत्र की उपस्थिति सबको आश्वस्त करती है।
घटना | नक्षत्र/ग्रह | ज्योतिषीय महत्व |
---|---|---|
दशरथ का सपना | पुनर्वसु, राहु, मंगल | संकट एवं चेतावनी |
अगला दिन - राज्याभिषेक | पुष्य | शुभ |
जटायु ने श्रीराम को बताया-रावण ने सीता का अपहरण विंदा मुहूर्त में किया है। शास्त्रों में वर्णित है कि ऐसे समय में जो धन अथवा वस्तु छीनी जाती है, वह अपने मूल स्वामी तक निश्चित रूप से लौट आती है। जटायु की बातें राम को आश्वस्त करती हैं कि विंदा मुहूर्त में रावण का कार्य अंततः श्रीराम की विजय का मार्ग खोलेगा।
किष्किन्धा से लंका की ओर प्रस्थान से पूर्व, श्रीराम ने संगठित वानर सेना के समक्ष स्पष्ट किया कि सूरज मध्य आकाश में है, विजय मुहूर्त और उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र है। अगले दिन हस्त नक्षत्र का प्रवेश रहेगा। यही समय यात्रा, युद्ध या महत्त्वपूर्ण कार्य प्रारंभ करने का सर्वोत्तम काल होता है।
निर्णायक अवसर | नक्षत्र | विशिष्टता |
---|---|---|
लंका गमन | उत्तराफाल्गुनी, हस्त, विजय मुहूर्त | शुभ आरंभ और विजय योग |
भारतीय साहित्य, संस्कृति और अध्यात्म में नक्षत्रों व ग्रहों का आकलन केवल धार्मिक नहीं बल्कि वैज्ञानिक भी रहा है। हर प्राकृतिक घटना, मौसम, राजकीय निर्णय और पारिवारिक समारोह उन्हीं के अनुसार तय होते थे।
आज भी हिंदू विवाह, गृहप्रवेश, नामकरण, मुंडन, उत्सव, शिक्षा की शुरुआत, व्यापार, यहाँ तक कि समाजसेवा के कार्यक्रम, सब कुछ मुहूर्तों के हिसाब से ही होते हैं। यह परंपरा केवल परंपरा नहीं बल्कि पीढ़ियों के अनुभव और अनुसंधान की नींव पर टिकी हुई है।
घटना | तिथि / नक्षत्र / योग | ज्योतिषीय विशेषता |
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श्रीराम का जन्म | चैत्र शुक्ल नवमी, पुनर्वसु | सर्वश्रेष्ठ ग्रह योग |
भरत का जन्म | पुष्य नक्षत्र, मीन लग्न | शुभ ग्रह योग |
लक्ष्मण-शत्रुघ्न जन्म | अश्लेषा नक्षत्र, कर्क लग्न | नवांश विशेषता |
चारों भाइयों का विवाह | उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र | नवांश भिन्नता |
राम-राज्याभिषेक | पुष्य नक्षत्र | श्रेष्ठ शाश्वत मुहूर्त |
सीता हरण | विंदा मुहूर्त, राहु योग | चुराई वस्तु लौटती है |
लंका जाने का समय | उत्तराफाल्गुनी, हस्त, विजय मुहूर्त | विजय प्राप्ति |
रामायण का अध्ययन स्पष्ट रूप से यह बताता है कि करियर, विवाह, शिक्षा, घर, व्यवसाय, यात्राएं और यहाँ तक कि स्वास्थ्य संबंधी निर्णय भी यदि मुहूर्त और नक्षत्रों की गणना के साथ लिए जाएं तो अधिक सकारात्मक परिणाम संभव हैं। विज्ञान और तर्क के इस युग में भी यह देखा गया है कि ज्योतिषीय गणनाओं के साथ किए गए कार्य अधिक फलदायक होते हैं।
1. राममंदिर उद्घाटन का मुहूर्त कैसे निर्धारित हुआ?
अति सूक्ष्म स्तर पर ग्रहों, नक्षत्रों, तिथि, योग, लग्न, नवांश सहित पंचांग के कई अन्य श्रेणियों को मिलाकर विद्वानों ने मुहूर्त निकाला है।
2. रामायण में नक्षत्रों का क्या महत्व है?
रामायण की प्रत्येक प्रमुख घटना-जन्म, विवाह, राज्याभिषेक, युद्ध-सबकी नींव नक्षत्र और ग्रहों के संयोग पर है।
3. क्या आज के जीवन में भी मुहूर्त इतना ही जरूरी है?
जी हां, आज भी विवाह, गृह प्रवेश, नूतन कार्य, व्यापार, शिक्षा आदि में नक्षत्रों और शुभ मुहूर्त की सलाह उपयोगी रहती है।
4. कौन-से नक्षत्रों और ग्रहों का उल्लेख रामायण में बार-बार दिखता है?
पुनर्वसु, पुष्य, अश्लेषा, उत्तराफाल्गुनी, मृगशीरा, हस्त नक्षत्र और उच्च ग्रह योगों का विशेष स्थान है।
5. क्या विवाह या अन्य समारोह के लिए भी यही गणना लाभकारी है?
निश्चित ही, विवाह, नामकरण व अन्य संस्कारों में भी इसी विधि से तिथि, नक्षत्र, मुहूर्त आदि का निर्णय सदैव लाभकारी रहता है।
सम्पूर्ण रामायण यही सिखाती है कि महत्वपूर्ण निर्णयों और उत्सवों में नक्षत्रों की गणना और मुहूर्त की तलाश केवल सांस्कृतिक या धार्मिक औपचारिकता नहीं है बल्कि गहन विद्या है। यह परंपरा वैज्ञानिक और सांस्कृतिक तर्कों से सुसंगठित है, जिसका एकमात्र लक्ष्य जीवन में स्थायित्व, विजय और संतुलन सुनिश्चित करना है।
अनुभव: 32
इनसे पूछें: जीवन, करियर, स्वास्थ्य
इनके क्लाइंट: छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश
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