By पं. अमिताभ शर्मा
इतिहास, श्रद्धा और प्रकृति के संगम पर रामायण की वे दुर्लभ जगहें, जो कथा से हटकर भी आज यात्रियों की प्रतीक्षा कर रही हैं
रामायण का नाम आते ही सबके मन में अयोध्या, रामेश्वरम और लंका की छवियां उभरती हैं। परंतु यदि महर्षि वाल्मीकि की पद्य-शैली में गहराई से उतरा जाए, तो रामायण की कथा का बहुत बड़ा भाग ऐसे स्थानों से भी जुड़ा है, जो किसी भव्य तीर्थ से नहीं, बल्कि शांत जंगलों, वीरान गुफाओं और छोटे-छोटे गाँवों-घाटियों से निकलता है। ये वे ठौर-ठिकाने हैं जहां वाल्मीकि की कथा कल्पना से निकलकर भूगोल में बस जाती है। ये स्थल उन यात्रियों और श्रद्धालुओं के लिए हैं, जो इतिहास, अध्यात्म और प्रकृति की असल गंध को जीना चाहते हैं-जहां न भीड़ है, न दिखावा, केवल पुरातन कथाओं की जीवंत झलक है।
आंध्र प्रदेश का लेपाक्षी स्थान रामायण के एक करुण प्रसंग का साक्षी है। यहीं जटायु ने सीता माता की रक्षा के लिए रावण से मल्लयुद्ध किया था और घायल होकर भूमि पर गिर पड़े थे। विशाल जटायु चित्र और 16वीं सदी का वीरभद्र मंदिर आज भी उस बलिदान का साक्ष्य है। मंदिर की अद्भुत नक्काशी और कथा का मेल इतिहास और कला-प्रेमियों के लिए निर्भूत है।
केरल की पम्पा नदी के करीब बसे इस आश्रम में शबरी की स्मृति बसी है, जिन्होंने राम के लिए प्रेमपूर्वक बेर फल चुने थे। इसे स्वाद चखकर अर्पित करना आज भी शुद्ध भक्ति का प्रतीक है। यहां का शांत माहौल, प्राकृतिक सौंदर्य और छोटा सा मंदिर यात्रियों को भीतरी श्रद्धा का अनुभव कराता है।
दक्षिणी भारत में फैला विशाल दंडकारण्य वह वन था, जहाँ अनेक वर्षों तक श्रीराम, लक्ष्मण और सीता ने वनवास बिताया। यहां शूर्पणखा-रावण प्रसंग, और अनेक वन्य घटनाओं का उल्लेख मिलता है। आज भी छत्तीसगढ़-ओडिशा-अंध्र के जंगल, झरने, और ग्रामीण जीवन में उन दिनों की छाप मिलती है।
हम्पी के समीप तुंगभद्रा नदी के किनारे स्थित यह पर्वत वह स्थल है, जहाँ श्रीराम और हनुमान की पहली मुलाकात हुई थी। यहीं सुग्रीव छिपा था और हनुमान के मिलन से रावण-वध का संकल्प जन्म लेता है। पास की अंजनेय पर्वत पर हनुमान जन्मस्थली मानी जाती है; यहां का मंदिर और वानर समूह रोमांचक है।
नागपुर से 40 किमी दूर स्थित रामटेक की पहाड़ी 'राम का टेकरी' कहलाती है। मान्यता है कि श्रीराम-सीता-लक्ष्मण यहाँ अपने वनवास के दौरान कुछ समय रुके थे। प्राचीन मंदिर, काले पत्थर की राम प्रतिमा, और मनोरम दृश्य इस स्थल को आध्यात्म और संस्कृति दोनों का संगम बनाते हैं।
उत्तर प्रदेश-मध्य प्रदेश की सीमा पर बसे चित्रकूट की पहाड़ियों में स्थित गुप्त गोदावरी गुफाएँ राम-लक्ष्मण की गुप्त सभा के प्रसंग से जुड़ी हैं। दो प्राकृतिक गुफाएँ, जिनमें एक संकरी और एक विशाल है, और भीतर बहती जलधारा यहां की सबसे बड़ी विशेषता है। भीड़-चहलपहल से दूर, यह स्थल वनजीवन के रहस्य की अनुभूति देता है।
श्रीलंका के उत्तर-पश्चिमी तट पर स्थित तलाईमन्नार वही स्थल है, जहां राम-सैन्य ने रामसेतु पार कर सबसे पहले लंका भूमि पर कदम रखा था। यहां की शांत और उजाड़ समुद्री लहरें, ’सेतुबंध’ के अवशेषों की छाया-सबकुछ आपको उस अंतिम संघर्ष की अनुभूति कराते हैं।
ये स्थल केवल एक अभियान नहीं, रामायण की सामाजिक, सांस्कृतिक और मानवीय गहराइयों का अनुभव हैं। लेपाक्षी की जटायु कथा बलिदान, शबरी का आश्रम निष्कलुषता, दंडकारण्य का विस्तार जीवन-संघर्ष की झांकी है। इन जगहों पर जाने का अर्थ-सजीव इतिहास, जंगलों और मंदिरों की छाया में श्रीराम कथा को फिर से जीना है।
इन जगहों पर जाना केवल पर्यटन नहीं-यह रामायण के पृष्ठों को अपने पैरों, अपनी आँखों, अपने अनुभव से महसूस करना है। जहाँ हवा में हनुमान का साहस है, जहां मिट्टी में रामचरित का स्पर्श है। कोई तामझाम नहीं, सादगी से भरी यात्रा-यह आपको ऐतिहासिक गौरव, प्राकृतिक आभार और अद्भुत संतुलन की अनुभूति कराएगी।
रामटेक, चित्रकूट आसानी से पहुँचने योग्य हैं। दंडकारण्य या श्रीलंका के तटीय इलाके साहसी यात्रियों के लिए हैं-बस एक अच्छा मानचित्र और मन में खोज की चाह होनी चाहिए। कोई चौदह साल का वनवास नहीं, बस एक सप्ताहांत की यात्रा भी युगों पुरानी कथा से जोड़ सकती है।
स्थान | राज्य/देश | प्रमुख विशेषता/कथा |
---|---|---|
लेपाक्षी | आंध्र प्रदेश | जटायु की वीरगाथा, वीरभद्र मंदिर |
शबरी आश्रम | केरल | शबरी की निश्छल भक्ति, पम्पा नदी के किनारे |
दंडकारण्य | छत्तीसगढ़/ओडिशा/आंध्र | वनवास भूमि, शूर्पणखा प्रसंग |
ऋष्यमूक पर्वत | कर्नाटक | हनुमान से पहली भेंट, वानर-राज सुग्रीव |
रामटेक | महाराष्ट्र | वनवास-विश्राम स्थल, प्राचीन राम मंदिर |
गुप्त गोदावरी गुफाएँ | उत्तर प्रदेश/मध्य प्रदेश | गुप्त सभा स्थल, प्राकृतिक जलधारा, निर्जन गुफाएँ |
तलाईमन्नार | श्रीलंका | रामसेतु पार कर लंका प्रवेश, ऐतिहासिक तटीय स्थान |
इन स्थानों पर यात्रा-सनातन कथा को दोहराने और अपने भीतर की खोज की यात्रा है। कौन सा स्थल आपकी अगली मंज़िल बनेगा? रामायण का इतिहास किंवदंती नहीं; वह अब भी भारत और श्रीलंका की भूमि में साँसें लेता है-कहीं पुराने वृक्षों में, कहीं साधारण गुफाओं में, कभी-कभी बहती हवा में।
इन छुपी जगहों का भ्रमण इतिहास, प्रकृति, श्रद्धा और रोमांच के प्रेमियों के लिए जैसे खजाना है-जहाँ हर कदम पर आपको रामायण के अमिट पदचिह्न दिखेंगे।
अनुभव: 32
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इनके क्लाइंट: छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश
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